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आतंकवादियों को पहचानो

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मुंबई (Mumbai) जल रही है और तमाम राजनीतिक दल राज ठाकरे को हीरो बनाने में लगे हुए हैं। वह पार्टियां जो ठाकरे के खिलाफ आवाज उठा रही हैं उनके स्वर भी इतने मुखर नहीं है। पिछले एक साल से यह शख्स अपनी राजनीतिक दुकानदारी चमकाने के लिए मुंबई सिर्फ मराठियों का राग छेड़े हुए है। इस बार इसकी शुरुआत फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के घर पर पथराव करके और फिर उनकी पत्नी जया बचच्न के खिलाफ घटिया बयानबाजी से हुई। उन्हें चूंकि अभी मुंबई में अभिषेक बच्चन को स्टैंड कराना है तो वे ठाकरे खानदान से बैर मोल नहीं ले सकते, इसलिए माफी-तलाफी के बाद बात खत्म हो गई। लेकिन इसके बाद से ठाकरे खानदान की बदमाशी बढ़ गई। ठाकरे खानदान के लिए अलगाववादी आंदोलन (separatist movement )चलाना नया नहीं है। उन्हें ऐसे आंदोलनों की खेती करना आता है। बाल ठाकरे से लेकर राज ठाकरे और बीच में उद्धव ठाकरे तक इतिहास गवाह है कि इस खानदान ने मुंबई को बांटने के अलावा कुछ नहीं किया। इस बात पर बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है कि मुंबई सबकी है। उसकी तरक्की में यूपी-बिहार से गए लोगों का उतना ही हाथ है जितना वहां के मराठियों का। यह इसी तरह की बयानबाजी ह

मुसलमान को उसके हाल पर छोड़ दीजिए

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दिल्ली के जामिया नगर इलाके में बटला हाउस एनकाउंटर (batla house encounter) को लेकर राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं। एनकाउंटर के कुछ दिनों तक तो राजनीतिक दल खामोश रहे और इस दौरान बटला हाउस और आजमगढ़ के तमाम मुसलमान आतंकवादी (muslim terrorist) और पाकिस्तानी करार दे दिए गए। अभी जब दिल्ली समेत कुछ राज्यों में चुनाव की घोषणा हुई और जिसे लोकसभा से पहले मिनी आम चुनाव कहा जा रहा है, राजनीतिक दलों ने मुसलमानों का दिल जीतने के लिए इस मुद्दे को उठा दिया। कांग्रेस और बीजेपी को छोड़कर सभी ने एनकाउंटर की न्यायिक जांच की मांग कर डाली। सबसे मुखर समाजवादी पार्टी नजर आई। इसके नेता अमर सिंह ने पहले तो एनकाउंटर में मारे गए या शहीद हुए (आप जो भी कहना चाहें) दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के परिवार को दस लाख रुपये का चेक देने में अपनी फजीहत कराई। मैं समझता हूं कि समाजवादी पार्टी औऱ अमर सिंह की ओर से यह विवाद जानबूझकर पैदा किया गया, जिससे यूपी के मुसलमानों को संदेश दिया जा सके। इसके बाद अमर सिंह तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी को लेकर बटला हाउस इलाके में पहुंचे और रात को एक रैली कर घटना की न्या

नीलम तिवारी की खुदकुशी के बहाने

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यह पोस्ट जब मैं आज लिखने बैठा हूं तो माहौल बहुत गमगीन है। इसलिए नहीं कि मेरे साथ, मेरे परिवार, मेरे मित्रों या सहयोगियों के साथ कोई ऐसी-वैसी बात हुई है। दरअसल, कायदे से इसे तो मुझे कल ही लिखना चाहिए था लेकिन कल मैं इतने रंजो-गम (grief and sorrow)में था कि लिखने की ताकत न जुटा पाया। नीलम तिवारी, यही नाम था उसका। राजधानी दिल्ली के द्वारका इलाके में नीलम ने दो दिन पहले खुदकुशी (suicide)कर ली। अखबारों में खुदकुशी की खबरें कितनी जगह पाती हैं, यह आप लोगों को मालूम है। लेकिन यह खुदकुशी की खबर अलग थी और सिर्फ नवभारत टाइम्स में इसे पहले पेज पर जगह मिली थी। नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर पंकज त्यागी ने इस खबर को फाइल करते हुए लिखा था कि आर्थिक मंदी (recession) से जुड़ी राजधानी दिल्ली में खुदकुशी की यह पहली खबर है। पंकज की खबर में कहा गया था कि आईसीआईसीआई बैंक में काम करने वाली नीलम तिवारी लोन दिलाने का काम करती थीं लेकिन आर्थिक मंदी की वजह से उनका यह काम बंद हो चुका था। लोग लोन नहीं ले रहे थे। नीलम द्वारका के एक प्लैट में अपनी बूढ़ी मां और १३ साल की बेटी नेहा के साथ रह रही थीं। उनके पत

यह संकट और आज के सवाल

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अमेरिकी आर्थिक मंदी (US recession) का जिक्र इस ब्लॉग पर पहले किया जा चुका और उससे जुड़ी भारतीय कंपनियों (Indian companies) के प्रभावित होने की बात उसमें कही गई थी। जब मैं यह पोस्ट लिखने बैठा तो तस्वीर पर छाई धुंध धीरे-धीरे साफ होने लगी है और तमाम बुरी खबरों से आपका सामना भी हुआ होगा। भारत में आई आर्थिक मंदी की सबसे पहली मार उड्डयन उद्योग (aviation idustry) पर पड़ी है यानी वो कंपनियां जो हवाई जहाज उड़ाने के लिए अभी दो-चार साल पहले ही मैदान में उतरी थीं। शराब का कारखाना चलाने वाले, चिटफंड कंपनियां चलाने वाले अचानक हवाई जहाज में यात्रियों को ढोने वाली कंपनी खोलकर बैठ गए। जनता का पैसा था। इनके काम आ गया। प्राइवेट बैंक लोन देने के लिए तैयार बैठे थे। किसान को बिना घूस दिए लोन नहीं मिलता औऱ यहां प्राइवेट बैंक के ceo नई खुली कंपनियों के सीईओ को घूस खिलाने को तैयार थे कि लोन ले ले, हवाई जहाज खरीद लो। भारत के लोगों को सपने बेचो। फिर एक दिन उसको तहस-नहस कर डालो। भारत को मुट्ठी में बंद करने की जो हसीन शुरुआत देश के कुछ बड़े औद्योगिक घरानों (big industrial houses) ने की थी, उससे अंधो को भी चारो तर