आइए मिलबांटकर खाएं

क्या आप मिलबांटकर खाने में यकीन रखते हैं। नहीं रखते तो समझिए आपकी जिंदगी बेमानी है। हो सकता है आपकी मुलाकात मिलबांटकर खाने वालों के गिरोह से हुई हो। चाहे प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से। कोई ताज्जुब नहीं कि आप भी इसमें शामिल रहे हों। क्योंकि मैं भी तो इसमें शामिल हूं। मैं कैसे मान लूं कि मेरे अलावा बाकी सारे या आप ही राजा हरिश्चंद्र की औलाद हैं और मिलबांटकर खाने में यकीन नहीं रखते।

अगर आपने मिलबांटकर खाना शुरू नहीं किया है तो शुरू कर दें। अब भी समय है। हालांकि कई लोग चुपचाप इस काम को अंजाम देना चाहते हैं लेकिन समयचक्र बदल चुका है। अगर आपके मिलबांटकर खाने की बात सार्वजनिक नहीं हुई है तो भी मुश्किल में पड़ेंगे। जरा अपने दफ्तर के माहौल को याद कीजिए। जो अफसर या बाबू राजा हरिश्चंद्र की औलाद बनने की कोशिश करता है बड़े अफसर या बड़े बाबू के तमाम गुर्गे उसका मुर्गा बनाकर खा जाते हैं। वह अजीब सी मुद्रा लिए दफ्तर में आता है और शाम को उसी तरह विदा हो जाता है। सारे काम का बोझ उसी पर रहता है। जो लोग मिलबांटकर खाने वाले गिरोह में शामिल होते हैं वे सुबह-दोपहर-शाम रोजाना मिलबांटकर कहकहे लगा रहे होते हैं। उनके बदन से किसी महंगे इत्र की खुशबू आ रही होती है या फिर ब्रैंडेड कपड़ों (Branded Cloths) से चाल-ढाल बदली हुई होगी।

आप कहेंगे जमाना बदल चुका है। नई पीढ़ी टेक सैवी (Tech Savvy ) है। वह जितना कमाती है, उससे ज्यादा खर्च करने में यकीन रखती है। ब्रैंडेड वस्तुएं उसके रोम-रोम में बसी हुई होती हैं। आप सही कह रहे हैं लेकिन वह तो मिलबांटकर खाने वालों के ही साम्राज्य की पैदाइश है न। मल्टीनैशनल कंपनियां (MNC) हों या फिर इंडियन मल्टीनैशनल (India MNC) हों। कहां नहीं है ऐसे लोगों का गिरोह। हां उसे नाम बदलकर थोड़ा सम्मान के साथ इस तरह भी कह सकते हैं – मिलबांटकर खाने वालों का कॉरपोरेट वर्ल्ड (Corporate World)। वह सीधे कॉलेज-यूनिवर्सिटी से लड़के-लड़कियों को सेलेक्ट कर अपने गिरोह में शामिल करता है। उन्हें पहले तो कॉरपोरेट कल्चर (Corporate Culture) और इस देश के बाकी कल्चर का अंतर समझाया जाता है। फिर उसे मैदान में उतारा जाता है। अब अगर वह कॉलसेंटर (Call Centre) की टंटपुंजिया नौकरी में नहीं है और साफ्टवेयर (Software) बनाने के काम में लगाया गया है तो उसे बताया जाता है कि इन्फोसिस (Infoysis)कंपनी का साफ्टवेयर उड़ाकर क्लोन करना है और उसमें दो नई कमांड देकर उसे आईबीएम (IBM) का बना देना है। यह इसका उल्टा भी हो सकता है यानी आईबीएम का उड़ाकर इन्फोसिस का बना देना। सत्यम (Satyam) का किसी में मत लगाना, किसी दबे पड़े स्कैम (Scam) में फंसने का जोखिम हो सकता है।

यह गिरोह सिर्फ आईटी कंपनी तक ही सीमित नहीं है। जीवन के हर क्षेत्र में उसका दखल है। मीडिया (Media) को ही ले लीजिए। वह किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे की खबर सीधे उसके पैड पर छापने के लिए तैयार नहीं है। हां उसी नत्थू खैरे ने अगर किसी पीआर कंपनी (PR CO.) को हायर कर लिया है और उस पीआर कंपनी की बाला उस प्रेसनोट को लेकर मीडिया हाउस तक पहुंच जाती है तो खबर बनकर रहेगी। क्योंकि नत्थूखैरे की ब्रैंड वैल्यू वह पीआर कंपनी तय करती है।...बाबू पेड न्यूज (Paid News) का जमाना है। हर चीज स्पांसर है। कान चाहे जैसे पकड़ो।
मिलबांटकर खाने वाले कॉरपोरेट ने ऐसी पीढ़ी की आंख में धूल झोंकने के लिए नया दे दिया है वर्क अल्कोहिलक (Work Alcoholic ) । यानी वह शराब बेशक न पीता हो लेकिन उसे बड़े प्यार से काम के बोझ की शराब पिलाई जाती है। बेचारे एक टेक सैवी के बारे में पिछले दिनों खबर आई कि पिज्जा कल्चर (Pizza Culture) ने उन्हें कैसे कैंसर (Cancer) के कगार पर पहुंचा दिया। अब इस शनीचर को खबर आई कि वह चल बसे। पूरे श्मशान घाट में सिर्फ और सिर्फ उनके वर्क अल्कोहलिक होने की चर्चा रही।

ऐसा नहीं है कि मिलबांटकर खाने वाले कॉरपोरेट ने इनके मनोरंजन के लिए कोई इंतजाम नहीं किया। उसने इनके आसपास ऐसा माहौल बनाया कि यह लोग सिर्फ और सिर्फ खाने-पीने के बारे में बातें करें। उसे सुबह-सुबह टीवी पर मौर्या शेरटन होटल में नाश्ता परोसने का दृश्य दिखाने से लेकर अखबार में चांदनी चौक में फुटपाथ पर बेचने वाले राधेश्याम की थर्ड क्लास कचौड़ी तक के बारे में बताया जाता है। इससे भी बात नहीं बनी तो उसे थाईलैंड से लेकर ऊंटी तक के देशाटन पैकेज के बारे में बताया जाता है। उसे बताया जाता है कि यह पैकेज सिर्फ वर्क अल्कोहलिक लोगों के लिए है क्योंकि जो वेतन उन्हें मिलता है, सिर्फ वे ही इसे अफोर्ड कर सकते हैं। बाकी लोग पतली गली से निकल लें। यानी राजा हरिश्चंद्र की औलादों के बारे में कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है।

हो सकता है कि आप के पास यक्ष प्रश्न हो। कैसे खाएं...मेरे पास तो मौका ही नहीं है। भई ऐसे लोग उस कहानी को क्यों नहीं याद करते जिसकी ड्यूटी समुद्र के किनारे लहरें गिनने की थी और उसने उसमें भी जुगाड़ तलाश लिया था। वह उसी मछुआरे को लहरों की सही गिनती बताता था जो मछुआरा उसे दो मछली देने का वादा करता। इस तरह वह एक-दो किलो मछली का जुगाड़ कर लेता और बाजार में बेच देता था। कैश जेब में। बस, मेरे पास तो इसी तरह की गैरपंचतंत्र वाली कहानियां हैं भइये, इसी में से मिलबांटकर खाने का जुगाड़ तलाश लो। शेष वीरूभाई अंबानी की औलादों से पूछ लो।

टिप्पणियाँ

सटीक कताक्ष है बधाई\ आपके हिन्दी नाल ब्लाग पर कमेन्ट नही हो रहा। धन्यवाद।
شہروز ने कहा…
बेहद तीक्ष्ण कटाक्ष ! आप अच्छा लिख रहे हैं.हमज़बान गाहे बगाहे देख लिया करें

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