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मोहर्रम और आज का मुसलमान

इस बार मोहर्रम और दशहरा साथ-साथ पड़े। यानी बुराई के खिलाफ दो पर्व। संस्कृतियों का अंतर होने के बावजूद दोनों पर्वों का मकसद एक ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि मोहर्रम बुराई पर अच्छाई की जीत के बावजूद दुख का प्रतीक है, जबकि दशहरा बुराई के प्रतीक रावण को नेस्तोनाबूद किए जाने की वजह से खुशी का प्रतीक है।   कुछ साल पहले ईद और दीवाली आसपास पड़े थे। उसकी सबसे ज्यादा खुशी बाजार ने मनाई थी। कनॉट प्लेस में मेरी जान पहचान वाले एक दुकानदार ने कहा था कि काश, ये त्यौहार हमेशा आसपास पड़ते। मैंने उसकी वजह पूछी तो उसने कहा कि पता नहीं क्यों अच्छा लगता है। बिजनेस तो अच्छा होता ही है लेकिन देश भी एक ही रंग में नजर आता है। ...मैंने दोनों त्यौहारों पर इतना कमा लिया है, जितना मैं सालभर भी नहीं कमा पाता। इस बार दोनों पर्व इस बार ऐसे वक्त में साथ-साथ आए जब पूरी दुनिया हर तरह की बुराई से लड़ने के लिए नया औजार खोज रही है। पुराने कारगर औजार पर या तो उसका यकीन नहीं है या उसकी नजर नहीं है। दशहरा और मोहर्रम धार्मिक होने के बावजूद सांस्कृतिक रंग से सराबोर हैं। दशहरा पर लगने वाले मेलों में जाइए तो आपको वहा...

पाकिस्तान में ऐसे लोग भी हैं

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मानवाधिकार आय़ोग पाकिस्तान के डायरेक्टर आई. ए. रहमान का लेख वहां चर्चा में है नोट ः मेरा यह लेख आज नवभारत टाइम्स, लखनऊ में ग्लोबल पेज पर छप चुका है। जिसका हेडिंग है - लीक से हट कर बोलते हैं रहमान भारत-पाकिस्तान के बिगड़ते रिश्तों में मीडिया की भूमिका अहम हो गई है। पाकिस्तान के आग उगलते न्यूज चैनल और रक्त रंजित हेडिंग से भरे हुए वहां के अखबारों के बीच पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के डायरेक्टर आई.ए. रहमान का लेख चर्चा का विषय बन गया है। रहमान के लेख को पाकिस्तान के लोकप्रिय अखबार डान ने अंग्रेजी और उर्दू में पहले पेज पर एंकर प्रकाशित किया है। बता दें कि डान अखबार की स्थापना पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। ऐसे वक्त में जो उम्मीद भारत सरकार यहां के मीडिया से लगाए बैठी है, वही उम्मीद पाकिस्तान सरकार वहां की मीडिया से लगाए बैठी है। लेकिन डान ने कई मायने में कमाल कर दिया है। डान टीवी ने भारत के रक्षा विश्लेषक सी. उदय भास्कर को पैनल में लाकर और उनकी बात बिना किसी काट-छांट के अपने दर्शकों को दिखा देना, निश्चित रूप से पाकिस्तान सरकार और वहां की आर्मी को पसं...