पाकिस्तान में ऐसे लोग भी हैं
मानवाधिकार आय़ोग पाकिस्तान के डायरेक्टर
आई. ए. रहमान का लेख वहां चर्चा में है
नोट ः मेरा यह लेख आज नवभारत टाइम्स, लखनऊ में ग्लोबल पेज पर छप चुका है। जिसका हेडिंग है - लीक से हट कर बोलते हैं रहमान
भारत-पाकिस्तान के बिगड़ते रिश्तों में
मीडिया की भूमिका अहम हो गई है। पाकिस्तान के आग उगलते न्यूज चैनल और रक्त रंजित
हेडिंग से भरे हुए वहां के अखबारों के बीच पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के डायरेक्टर
आई.ए. रहमान का लेख चर्चा का विषय बन गया है। रहमान के लेख को पाकिस्तान के
लोकप्रिय अखबार डान ने अंग्रेजी और उर्दू में पहले पेज पर एंकर प्रकाशित किया है।
बता दें कि डान अखबार की स्थापना पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने की
थी।
ऐसे वक्त में जो उम्मीद भारत सरकार यहां
के मीडिया से लगाए बैठी है, वही उम्मीद पाकिस्तान सरकार वहां की मीडिया से लगाए
बैठी है। लेकिन डान ने कई मायने में कमाल कर दिया है। डान टीवी ने भारत के रक्षा
विश्लेषक सी. उदय भास्कर को पैनल में लाकर और उनकी बात बिना किसी काट-छांट के अपने
दर्शकों को दिखा देना, निश्चित रूप से पाकिस्तान सरकार और वहां की आर्मी को पसंद
नहीं आया होगा। ये बात उसी रात यानी 29 सितंबर की है, जब दोनों देशों के चैनलों
में एक शोर सा मचा हुआ था और लग रहा था कि असली युद्ध इन चैनलों पर लड़ा जा रहा
है। पाकिस्तान के और भी बहुत से संजीदा पैनलिस्ट इस बात पर चिंतित नजर आ रहे थे कि
भारतीय कश्मीर के नाम पर पाकिस्तान आखिर कब तक कट्टर मौलवियों को बढ़ावा देता
रहेगा। इन मौलवियों की वजह से कश्मीर की असली बात पीछे छूट गई है और ये लोग चंदा
जमाकर मलाई उड़ा रहे हैं।
टीवी पर खबरें आती हैं और वो बाद में हटा ली
जाती हैं। उन्हें कोई याद नहीं रख पाता लेकिन रहमान का लेख डान के पहले पेज पर
हमेशा के लिए महफूज हो गया है। उन्होंने पाकिस्तान की नई पीढ़ी के लिए लिखा है कि
उसके लिए भारत-पाक के पुराने रिश्तों को जानना क्यों जरूरी है और जो आज हालात हैं,
वैसे पहले कभी नहीं रहे। जबकि हम दो युद्ध भी लड़ चुके हैं। वो लिखते हैं कि एक
वक्त था जब 1971 में दोनों देशों में युद्ध होने के बाद जब पाकिस्तानी सैनिकों ने
सरेंडर कर दिया तो एक भारतीय ब्रिगेडियर जो पाकिस्तानी ब्रिगेडियर के साथ पढ़ा
होने की वजह से जानता था, उसे अलग ले गया। उसे ड्रिंक की आफर की और कहा कि आप
लोगों ने ये क्या कर डाला...भारतीय ब्रिगेडियर चाहता तो बहुत खुशी मना सकता था
लेकिन उसके चार लफ्जों ने बताया कि जीतने के बावजूद वो ब्रिगेडियर और उसकी यूनिट
के हालात पर दुखी था।
...पाकिस्तान के शायरों, लेखकों, एक्टरों, एक्ट्रेसेज को जो
प्यार-मोहब्बत भारत में मिलती है, वो पाकिस्तान में दुर्लभ है। पाकिस्तान के शायर
भारत में मुशायरों में जाते हैं तो उनके लिए वहां पलकें बिछा दी जाती हैं। नुसरत
फतेह अली खान कैसे करोड़ों भारतीयों के दिलो-दिमाग में छाए हुए हैं....कैसे आबिदा
परवीन को सुनने के लिए दिल्ली के कनॉट प्लेस में भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी। ...कैसे
राजा गजनफर अली ने पाकिस्तान-भारत की सरकारों को बाध्य किया कि एक क्रिकेट मैच
अमृतसर में कराया जाए, जिसे दोनों देशों के लोग एकसाथ देखें। वो मैच हुआ और लाहौरी
युवक अमृतसर में उन अनजान सिख परिवारों में मेहमान बने, जिनसे कभी पहले वो मिले ही
नहीं थे। सिख परिवारों ने पाकिस्तान से आए लोगों की मेहमाननवाजी में कोई कसर नहीं
छोड़ी।...कैसे अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तो पाकिस्तान के काफी
पत्रकार उनको कवर करने के लिए दिल्ली पहुंचे। ऐसे कई उदाहरण उन्होंने दोनों तरफ के
गिनाए हैं। भारत के कुछ मौजूदा पत्रकारों का जिक्र करते हुए उनकी तारीफ भी की गई
है।
रहमान मौजूदा हालात का जिक्र करते हुए
कहते हैं कि आज हालात ये हैं कि पाकिस्तान में कोई युवक अगर क्रिकेटर विराट कोहली
की तारीफ करता है तो हुकूमत कट्टरपंथियों के दबाव में उसे जेल भेज देती है। वो
लिखते हैं कि ऐसे हालात दोनों तरफ अचानक नहीं बने हैं। इसके लिए सरकारी एजेंसियों
ने दिन-रात मेहनत की है। दोनों तरफ के मीडिया की गलती ये है कि वो ऐसी सरकारी
एजेंसियों का बिना सोचे समझे खिलौना बन गए। उनका कहना है कि दोनों तरफ का मीडिया
इन हालात को और बिगाड़ सकता है और सुधार भी सकता है। खासतौर पर उन्होंने
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संदर्भ में ये बात कही है।
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