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बाजार के आस्तिकों का कोरोना युद्ध

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तेलंगाना का एक मशहूर मंदिर है, नाम है भद्राचलम मंदिर। यहां हर #रामनवमी वाले दिन यानी आज के दिन सीता-राम कल्याण समारोह होता है। वह कार्यक्रम आज भी हुआ। इसमें #कोरोना को दूर भगाने के लिए भगवान से प्रार्थना की गई।...जानते हैं इस मंदिर में इस बहुत बड़ी पूजा के दौरान #तेलंगाना के दो मंत्री भी परिवार सहित शामिल हुए। पूरा मंदिर पुजारियों, दोनों मंत्रियों के परिवारों और उनके इर्द-गिर्द के चमचों, टीवी कैमरा चलाने वाले और पत्रकारों से भरा हुआ था। मैं #भद्राचलम_मंदिर में आज हुई पूजा की आलोचना नहीं करूंगा। मैं भद्राचलम और निजामुद्दीन मरकज में हुई घटना की तुलना नहीं करना चाहता हूं। चाहे वो #निजामुद्दीन_मरकज में जमा हुए तबलीगी जमात के मुसलमान हों या फिर आज तेलंगाना के भद्राचलम मंदिर में जमा हुए लोग हैं या उस दिन #अयोध्या में योगी की गोद में #रामलला की स्थापना के समय सैकड़ों लोगों का जमावड़ा हो....ये सारे के सारे कट्टर धर्मांध लोगों का ही जमावड़ा है। ऊपर वाले ने मुझे दो ही आंखें दी हुई हैं। उन्हीं दो आंखों से मैं ये सारे दृश्य देख रहा हूं।  लेकिन बड़ा सवाल य

दिल्ली जनसंहार में लुटे-पिटे लोग ही अब मुलजिम हैं...

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#दिल्ली_रक्तपात या #दिल्ली_जनसंहार_2020 की दास्तान खत्म होने का नाम नहीं ले रही है... अकबरी दादी (85) के बाद अब सलमा खातून दादी (70) की हत्या ने मेरे जेहन को झकझोर दिया है। मैंने गामड़ी एक्सटेंशन में तीन मंजिला बिल्डिंग में जिंदा जला दी गई 85 साल की अकबरी दादी की कहानी सोशल मीडिया पर लिखी थी...लेकिन अब एक और बुजुर्ग महिला सलमा खातून का नाम भी #दिल्ली_में_हुई_हिंसा या #जनसंहार में सामने आया है।... सोच रहा हूं कि उन इंसानों का दिमाग कैसा रहा होगा जिसने सलमा खातून और अकबरी की जान ली होगी...क्या हत्यारी #दंगाइयों_की_भीड़ को अपनी मां या दादी का चेहरा याद नहीं रहा होगा...आप लोग मेरी मदद कीजिए कि असहाय, निहत्थी महिला को  एक भीड़ अपनी आंखों के सामने कैसे कत्ल करती होगी...उस भीड़ के दिल-ओ-दिमाग में ऐसा क्या रहता होगा...उत्तेजना के वे कौन से क्षण होते हैं जब भीड़ एक असहाय महिला या पुरुष का कत्ल कर देती है।...कुछ इन्हीं हालात में दंगाइयों ने अंकित शर्मा, दलबीर नेगी और रत्नलाल का कत्ल किया होगा...क्या भीड़ नाम के आधार पर, कपड़ों के पहनावे के आधार पर कत्ल को अंजाम देती है...बताइए..

60 दिन का आंदोलनबाग - शाहीनबाग

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शाहीनबाग आंदोलन 60 दिन पुराना हो गया है। जहरीले चुनाव से उबरी दिल्ली में किसी आंदोलन का दो महीने जिंदा रहना और फिलहाल पीछे न हटने के संकल्प ने इसे आंदोलनबाग बना दिया है। ऐसा आंदोलनबाग जिसे तौहीनबाग बताने की कोशिश की गई, लेकिन शाहीनबाग की हिजाबी महिलाओं ने तमाम शहरों में कई सौ शाहीनबाग खड़े कर दिए हैं। बिना किसी मार्केटिंग के सहारे चल रहे महिलाओं के इस आंदोलन को कभी धार्मिक तो कभी आयडेंटिटी पॉलिटिक्स (पहचनवाने की राजनीति) बताकर खारिज करने की कोशिश की गई। लेकिन आजाद भारत में मात्र किसी कानून के विरोध में हिजाबी महिलाओं का आंदोलन इतना लंबा कभी नहीं चला।  #शाहीनबाग_में_महिलाओं_का_आंदोलन  15 दिसंबर  2019  से शुरु हुआ था। आंदोलन की शुरुआत शाहीनबाग के पास #जामिया_मिल्लिया_इस्लामिया में समान नागरिकता कानून (#सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (#एनआरसी) के खिलाफ छात्र-छात्राओं के आंदोलन पर पुलिस लाठी चार्ज के खिलाफ हुई थी। शाहीनबाग की महिलाओं के नक्श-ए-कदम पर #बिहार में गया , उत्तर प्रदेश में #लखनऊ, #इलाहाबाद और #कानपुर तो पश्चिम बंगाल में कोलकाता में इसी तर्ज पर महिलाएं इसी मुद्दे पर ध

शाहीनबाग : डॉक्टर - मरीज संवाद

दिल्ली एनसीआर का एक शहर... मरीज़: डॉक्टर साहब, आपके नर्सिंग होम में भी कोरोना वायरस की दवा मिलने का पोस्टर लगा देखा अभी बाहर। डॉक्टर: हाँ, वो एक डॉक्टर हमारे यहाँ बैठती हैं। हमने उनको चैंबर किराये पर दे रखा है। लेकिन पता नहीं क्यों कोरोना के मरीज़ आ ही नहीं रहे हैं। मरीज: अरे, डॉक्टर साहब ऐसा न कहें। शुभ बोलिए। न आएँ तो अच्छा है। डॉक्टर: आएँगे कहाँ से...सारे कोरोना वायरस तो शाहीनबाग में बैठे हैं।...शाहीनबाग कोरोना वायरस है। मरीज़: डॉक्टर साहब, कोरोना वायरस तो मुझे नेता लगते हैं। यह पूरा देश नेताओं की शक्ल में कोरोना वायरस बनकर हमें खत्म कर रहा है। हमें बाँट रहा है। हमें तोड़ रहा है। हम टैक्स पेयर्स को जज़्बाती बनाकर नेता नाम का वायरस हमें ही मार रहा है। डॉक्टर: आप नहीं समझोगे। शाहीनबाग में बैठे कोरोना वायरस ज्यादा ख़तरनाक हैं। ...लाओ, पर्चा दो। क्या नाम है आपका...? एक अन्य मरीज़ का प्रवेश... दूसरा मरीज़: डॉक्टर साहब, मेरे किनारे वाले दाँत में बहुत दर्द हो रहा है। निकलवाने में कितना पैसा लगेगा? डॉक्टर: बिना देखे नहीं बता सकता। दाँत किस तरह का है। देखकर ही पैसे बताऊँग

मैं भी शारजील इमाम को जानता हूं...

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यह मौक़ा है सच, झूठ, मक्कारी को पहचानने का... अगर आप आस्तिक हैं और आपके अपने अपने भगवान या अल्लाह या गुरू हैं तो आपको इसे समझने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए...अगर आप नास्तिक या जस के तस वादी हैं तो इतनी अक़्ल होगी ही कि सही और ग़लत में किसका पलड़ा भारी है... शाहीन बाग़ से लेकर दुनिया के कोने कोने में कल गणतंत्र दिवस मनाया गया। केरल में 621 किलोमीटर और कलकत्ता में 11 किलोमीटर की मानव श्रृंखला बनाई गई। अमेरिका में कल सारे भारतीय और पाकिस्तानी तिरंगा झंडा लेकर सड़कों पर निकल आए। अमेरिकी इतिहास में विदेशियों का इतना बड़ा जमावड़ा पहली बार देखा गया। कल आधी रात में दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती और मुंबई के मदनपुरा इलाके में लोग अचानक तिरंगा लेकर धरने पर बैठ गए। निजामुद्दीन में पुलिस को उन्हें उठाने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। क्या मीडिया ने  इन सारी घटनाओं के बारे में आपको बताया... मीडिया पर कहीं भी विस्तार से ये ख़बरें आपको दिखाई दीं? नहीं, कहीं नहीं। आप बता सकते हैं कि अगर मीडिया इसको उसी रूप में दिखाता या छापता जैसी वो हुईं तो क्या होता? आपकी धारणा या राय किसी समुदाय विशेष के

क्या एनपीआर ही एनआरसी है, क्या शक्तिमान ही गंगाधर है

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एनपीआर जो है वो एनआरसी से ख़तरनाक कैसे है... आज हमने काफ़ी वक्त एनपीआर को समझने में लगाया, जिसके बारे में सरकार ने कल विस्तार से जानकारी दी थी... जब आप एनपीआर को पढ़ना शुरू करेंगे तो आपको सब कुछ अच्छा और आसान लगेगा लेकिन अगर आप उस लाइन को भी सरसरी तौर पर पढ़ कर आगे बढ़ गए तो समझिए आप सरकार के इरादे नहीं भाँप पाए... केंद्र सरकार ने कहा कि आपकी सारी जानकारियों का सत्यापन एक रजिस्ट्रार स्तर का कोई अधिकारी करेगा। उसकी पुष्टि के बाद आप का नाम और नागरिकता एक रजिस्टर में दर्ज हो जाएगा। इस एनपीआर का यही नियम सबसे ख़तरनाक है। हमने असम में देखा कि 19 लाख लोगों के नाम नागरिकता कानून से बाहर कर दिए गए। ये 19 लाख वो लोग हैं जिन्होंने दस्तावेज़ तो जमा कराये लेकिन उनमें कोई न कोई कमी निकालकर उनकी एंट्री को ख़ारिज करके उन्हें विदेशी बता दिया गया। इनमें 13 लाख हिंदू और 6 लाख मुसलमान हैं। इसी वजह से असम के लोग एनआरसी और एनपीआर का विरोध कर रहे हैं।  केंद्र सरकार #एनपीआर में बॉयोमीट्रिक (आपकी ऊँगली और हथेली के नि़शान) लेगी या नहीं लेगी, इसे साफ़ नहीं कर रही है। कभी कहती है ल