मैं भी शारजील इमाम को जानता हूं...

यह मौक़ा है सच, झूठ, मक्कारी को पहचानने का...

अगर आप आस्तिक हैं और आपके अपने अपने भगवान या अल्लाह या गुरू हैं तो आपको इसे समझने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए...अगर आप नास्तिक या जस के तस वादी हैं तो इतनी अक़्ल होगी ही कि सही और ग़लत में किसका पलड़ा भारी है...

शाहीन बाग़ से लेकर दुनिया के कोने कोने में कल गणतंत्र दिवस मनाया गया। केरल में 621 किलोमीटर और कलकत्ता में 11 किलोमीटर की मानव श्रृंखला बनाई गई। अमेरिका में कल सारे भारतीय और पाकिस्तानी तिरंगा झंडा लेकर सड़कों पर निकल आए। अमेरिकी इतिहास में विदेशियों का इतना बड़ा जमावड़ा पहली बार देखा गया। कल आधी रात में दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती और मुंबई के मदनपुरा इलाके में लोग अचानक तिरंगा लेकर धरने पर बैठ गए। निजामुद्दीन में पुलिस को उन्हें उठाने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। क्या मीडिया ने  इन सारी घटनाओं के बारे में आपको बताया...

मीडिया पर कहीं भी विस्तार से ये ख़बरें आपको दिखाई दीं? नहीं, कहीं नहीं। आप बता सकते हैं कि अगर मीडिया इसको उसी रूप में दिखाता या छापता जैसी वो हुईं तो क्या होता? आपकी धारणा या राय किसी समुदाय विशेष के बारे में बदलती। आप सोचने पर मजबूर होते कि जैसा मीडिया इनके बारे में प्रचारित करता है वैसे ये लोग नहीं हैं। क्या आपको किसी चैनल ने यह दिखाया कि कल शाहीन बाग़ में देश की एकता अखंडता को समर्पित कुछ झांकियाँ भी थीं जो राजपथ और लाल क़िले से निकलने वाली झाँकियों से कम नहीं थीं लेकिन मीडिया के लिए सिर्फ सरकारी झांकियां महत्वपूर्ण थीं, अवाम की बनाई झांकियों से उन्होंने किनारा कर लिया था।...अगर वो शाहीन बाग की झांकियां दिखाते...केरल में खास कपड़े पहनने वाले लोगों को संविधान की प्रस्तावना पढ़ते दिखाते तो आपकी धारणा और राय उन खास कपड़े वालों के लिए बदलती...लेकिन मीडिया या उसे चलाने वाला तंत्र ऐसा नहीं होने देना चाहता। 

इस छोटी सी दलील का नतीजा यह निकलकर आ रहा है कि हम जिन विषयों या चीजों या मुद्दों को लेकर अपनी कोई धारणा या राय बनाते हैं वो मीडिया और उसको संचालित कर रहे तंत्र की देन होते हैं। यानी हमारी राय या धारणा कोई और ही नियंत्रित कर रहा है। चाहे वह भारत का मीडिया हो या पाकिस्तान का या फिर अमेरिका का...सभी जगह आपको-हमको मीडिया के जरिए नियंत्रित करने का खेल चल रहा है। विदेशों में बस मीडिया इसलिए बेहतर है कि वे किसी भी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के आगे रेंगते नहीं हैं लेकिन वे पूंजीपति लोगों की नीतियों को ही संचालित कर रहे होते हैं।

...तो शाहीनबाग की झांकियों, केरल और कलकत्ता के अनोखे गणतंत्र दिवस को न दिखाने वाला मीडिया दरअसल कल क्या कर रहा था...वो शारजील इमाम की पड़ताल में जुटा था, जिसे केंद्र सरकार और उसकी हिमायती कुछ राज्य सरकारों की पुलिस ने शाहीन बाग में महिला आंदोलन शुरू कराने का मास्टरमाइंड घोषित कर दिया है। लेकिन जरा ठहरिए...शारजील इमाम को सबसे पहले सरकार समर्थक टीवी चैनल रिपब्लिक ने शाहीन बाग का मास्टरमाइंड घोषित किया था। रिपब्लिक टीवी किसका है, यह चैनल बीजेपी के सांसद वी. चंद्रशेखर का है। उनके और भी कई चैनल है, जिनमें एशियानेट प्रमुख है। कई मीडिया आउटलेट में चंद्रशेखर की हिस्सेदारी ठीक रिलायंस के मुकेश अंबानी की तरह ही है। 

शारजील इमाम को मैं भी जानता हूं। ...कैसे...जब शाहीन बाग आंदोलन शुरू हुआ और मैं वहां पहुंचा तो वहां कई पढ़े लिखे लड़के-लड़कियां मौजूद थे। जिनमें शारजील इमाम भी था। मैंने जब बताया कि मैं मीडिया से हूं तो सभी लोग एक-एक करके आंदोलन के बारे में बताने लगे। कुछ देर बाद शारजील इमाम का भाषण शाहीन बाग के मंच से शुरू हुआ। उसके भाषण का सार यह था कि हमें देश के तमाम हिस्सों में शाहीन बाग जैसा आंदोलन शुरू करना होगा...एक आदमी अपने साथ कम से कम दस लोगों को जोड़े तो आंदोलन बड़ा होता जाएगा। शाहीन बाग शुरुआत है, हमें यहां से अगर उठाया गया तो हम दिल्ली में कहीं और भी जाकर बैठ सकते हैं। हम इंडिया गेट पर बैठ सकते हैं, हम मथुरा रोड पर बैठ सकते हैं, हम कनॉट प्लेस में बैठ सकते हैं। मुद्दा ये है कि हमें अपनी आवाज सरकार को सुनानी है।... हमें असम की तरह आंदोलन शुरू करना होगा...उसने कहा असम का चक्काजाम शेष भारत से उसको अलग कर देगा क्योंकि सारा आना-जाना रुक जाएगा...। शारजील इमाम ने जिस दिन ये बातें कहीं थीं उस दिन असम में एनआरसी के खिलाफ भयानक हिंसा हुई थी और देश में कहीं भी शाहीन बाग जैसे आंदोलन शुरू नहीं हुए थे। 

एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार ने आज फेसबुक पर स्वाति मिश्रा की एक पोस्ट शेयर की है। जिसे पढ़ने की जरूरत है। उसमें शारजील इमाम के बारे में काफी कुछ बताया और समझाया गया है। इन दोनों नामों का जिक्र मैंने इसलिए किया कि ये लोग गैर मुस्लिम हैं और शारजील इमाम को इनके देखने का नजरिया वैसा है जैसा एक आम भारतीय का होना चाहिए। लेकिन मैं देख रहा हूं कि तमाम मुस्लिम बुद्धिजीवी, अपने आप को सेकुलर कहने वाले कुछ पत्रकार और फर्जी सेकुलरवादी अचानक शारजील इमाम को खलनायक बनाने पर तुल गए हैं। ऐसे जैसे वह कोई आतंकवादी हो। क्योंकि वे वही बातें कह रहे हैं जो पुलिस ने शारजील इमाम के खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज करते हुए कहीं हैं। वे लोग वही बातें कह रहे हैं जो केंद्र सरकार से लेकर कई राज्यों की भाजपा सरकारें शारजील इमाम के बारे में कह रही हैं। ...सबसे पहले शारजील इमाम के बारे में धारणा बनाने की शुरुआत रिपब्लिक टीवी ने की...और अब उस धारा में पूरा मीडिया बह गया है। किसी ने शारजील इमाम का पूरा भाषण सुनने की जहमत नहीं उठाई। लेकिन भाजपा का एक बेवकूफ प्रवक्ता शारजील के वीडियो को एडिट (संपादित) कर दिखाए तो उसे सही माना जाता है। यही कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद, अनिरबान और शहला राशिद के समय में भी हुआ था। कैसे जी न्यूज़ ने वीडियो में छेड़छाड़ करके इन्हें देशद्रोही और टुकड़े टुकड़े गैंग कहा था। लेकिन आज अगर कोई भी कन्हैया या उमर ख़ालिद समेत चारों को देशद्रोही कहता है तो उसे खुद भी शर्म आती है। ऐसा ही कुछ शारजील या एएमयू या जामिया के स्टूडेंट्स को देशद्रोही कहने पर भी होगा।

एक केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने सोमवार 27 जनवरी को दिल्ली के चुनाव प्रचार में और दिल्ली में भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे कपिल मिश्रा ने अभी कुछ दिन पहले एक जुलूस में नारे लगाए -मुसलमान गद्दारों को जूते मारो सालों को...इस नारे को किस श्रेणी में रखा जाए...क्या दिल्ली पुलिस ने कोई केस अनुराग ठाकुर या कपिल मिश्रा के खिलाफ दर्ज किया...कपिल मिश्रा ने जब ये नारे लगाए थे तब तक दिल्ली विधानसभा के चुनाव घोषित नहीं हुए थे, लेकिन चुनाव घोषित होने के बाद भाजपा ने कपिल मिश्रा को टिकट तक दे दिया...इसे क्या माना जाए...भाजपा के दिल्ली अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी ने कल चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली में कहा कि शाहीन बाग में हिंदुओं के खिलाफ नारे लग रहे हैं...लेकिन मनोज तिवारी ऐसे नारों का कोई वीडियो सार्वजनिक नहीं कर सके।...जरा सोचिए मनोज तिवारी ने ऐसा क्यों कहा होगा...क्योंकि शाहीन बाग में हवन भी हुआ, बाइबल भी पढ़ी गई और सिखों ने गुरु का लंगर भी चलाया...इसी से भाजपा को चिढ़ है। ये लोग इन चीजों के खिलाफ हैं। यह चीज इनके डीएनए में है। दो राष्ट्र का सिद्धांत सबसे पहले इनके संस्थापक यानी हिंदू महासभा (गोलवलकर-सावरकर-गोडसे) लेकर आई, जिसे जिन्ना ने लपक लिया। इन लोगों ने अंग्रेजों के समय में बंगाल में जिन्ना की पार्टी के साथ मिलकर सरकार चलाई। जिसके मुखिया श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे।

इस देश के फर्जी सेकुलरवादी जब तक शारजील इमाम और किसी अनुराग ठाकुर, किसी कपिल मिश्रा या मनोज तिवारी में भेद करना नहीं सीखेंगे तब तक गलत धारणाओं को बनाने में योगदान देते रहेंगे। शारजील इमाम जितनी काबिलियत रखने वाला इनमें से एक भी नहीं है। मैं इस बात की चुनौती देता हूं कि शारजील इमाम देशद्रोही नहीं है, वो हमारे आप जैसा देशभक्त है। लेकिन अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा या मनोज तिवारी जैसे लोग औऱ इनकी पार्टी सचमुच के देशद्रोही लोग हैं जो भारत को बांटने के काम में जुटे हैं। क्या 30-35 करोड़ की आबादी को अलग-थलग करके कोई देश तरक्की का सपना देख सकता है। क्या इतनी बड़ी आबादी को हाशिए पर रखकर आप देश को संचालित कर सकते हैं। क्या इतनी बड़ी आबादी को डिटेंशन सेंटरों में भेजने की तैयारी कर आप संविधान की रक्षा कर पाएंगे...ये सवाल हैं जो आज देश के तमाम हिस्सों में लोग सड़कों पर निकल कर पूछ रहे हैं। ...बेशक आप पुलिस या सेना के जरिए इन लोगों को कुचलने की ताकत रखते हैं, दलाल मीडिया आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है...लेकिन सड़कों पर उमड़े सैलाब की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। इस सैलाब का मास्टरमाइंड कोई शारजील इमाम नहीं है।....















 




























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