संदेश

शंभू – रसूल संवाद-ए-राजस्थान

कल मुझे जब नींद आई बदलते ही करवट पर देखा तब ख्वाब मैंने शंभू रोते हैं खड़े पर्वत पर हिमालय की ऊंची चोटी पर तंग पड़ी फिर बारिश ऐसी बोले शंभू, क्या बतलाऊं एक जाहिल ने रची है साजिश ऐसी कि गुस्सा है मुझे, मेरे मन में आग उठती है ऐसा जुल्म हुआ है कि कराहट की आह उठती है गुजर उसी दम हुआ वहीं से रसूले खुदा का देखा महादेव को तो किया सलाम दो जहां का बोले शंभू, आवाज भारी किए, नमन हो ऐ रसूल हक में आपके मेरा आदर हो कुबूल परेशान देख हाल उनका, फिर मोहम्मद ने फरमाया ऐ देवों के देव, क्यूं है तुम्हारी आवाज में गम समाया बोले शंभू, ऐ रहबर-ए-हक, हक से बयां करो पाक दहन से अपने सच को रवां करो देखा तुमने, क्या किया धरती पर उस जालिम ने आज कत्ल किया, जलाया, एक नातवां-ओ-बेकस को आज दुख है मुझे की मेरा नाम लिये वो जालिम बैठा है उम्मत का तुम्हारी निशां मिटा देगा, ऐसा वो कहता है बोले रसूल, ऐ शंभू जमीन की तो रोज यही कहानी है इंसान ने कत्ल ओ जुल्म करने की जो ठानी है आज नाम तुम्हारा है तो कल फिर मेरा होगा अंधेरा ही अंधेरा है, देखो कब सवेरा होगा खैर, दुआ करो कि बची ...

राजस्थान पत्रिका...संघ परिवार और शेष मीडिया

राजस्थान के प्रमुख अख़बार राजस्थान पत्रिका ने भाजपा शासित राजस्थान सरकार यानी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को खुली चुनौती देते हुए वसु्ंधरा से जुड़ी सारी ख़बरों के बहिष्कार का फ़ैसला लिया है। यह उस क़ानून का विरोध है जिसके ज़रिए वसुंधरा मीडिया का गला घोंट देना चाहती है। यह उस क़ानून का विरोध है जो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ किसी भी जाँच के लिए सरकार की अनुमति को आवश्यक बताता है। कोई भी एजेंसी तब तक करप्शन के मामलों की जाँच नहीं कर सकेगी जब तक सरकार उसकी जाँच के लिए लिखित अनुमति न दे दे। इस दौरान इसकी मीडिया रिपोर्टिंग पर भी रोक रहेगी। राजस्थान पत्रिका को आरएसएस समर्थक अख़बार माना जाता है लेकिन इस अख़बार ने जिस तरह का स्टैंड अब लिया है वह क़ाबिले तारीफ़ तो है लेकिन हैरानी भी पैदा करता है। क्योंकि मेरा व्यक्तिगत अनुभव इस अख़बार को लेकर काफ़ी कटु रहा है। 1993 में मैंने यहाँ नौकरी के लिए आवेदन भेजा तो मुझे जयपुर बुलाया गया। उस समय मैं लखनऊ में था और नवभारत टाइम्स तब बंद हो गया था। जयपुर पहुँचने पर मेरा स्वागत हुआ और राजस्थान पत्रिका के समाचार संपादक ने मुझसे कहा कि हम लोग टेस्ट व...

भारत के ट्रंप भक्त अमेरिका से कुछ तो सीखें...

है कोई माई का लाल भारत में...जो ऐसा कर सके... जब आप लोग भारत में जीएसटी का मरसिया पढ़ रहे थे और भारत में देशभक्ति की ठेकेदार भारतीय जनता पार्टी पंजाब की गुरदासपुर सीट लगभग दो लाख के अंतर से हारने का मातम मना रही थी, ठीक उसी वक्त अमेरिका के वॉशिंगटन पोस्ट अखबार में एक विज्ञापन छपा। ...यह महज विज्ञापन नहीं था, इसने सुबह-सुबह अमेरिकी लोगों को दांतों तले ऊंगली चबाने पर मजबूर कर दिया। वॉशिंगटन पोस्ट के इस विज्ञापन में कहा गया था कि अगर कोई राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप के खिलाफ मुकदमा चलाने का सुबूत देगा तो उसे 10 मिलियन डॉलर यानी एक करोड़ का इनाम मिलेगा। यह विज्ञापन हस्टलर पत्रिका के प्रकाशक लैरी फ्लायंट की ओर से था। विज्ञापन में कहा गया था कि अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव होने में अभी तीन साल बाकी हैं, तब तक ट्रंप अमेरिका का कबाड़ा कर देगा। इसने न सिर्फ विदेशी नीति बल्कि घरेलू आर्थिक नीति को बर्बाद कर दिया है, इसने अमेरिका में गृह युद्ध की स्थिति पैदा कर दी है। इसकी नीतियों से अमेरिका को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। मुझे अमेरिका में छपे इस विज्ञापन की जरा भी सूचना नहीं थी। मेरे एक अ...

कहानी - घृणा ... मोक्ष

लेखक ः एस. रजत अब्बास किरमानी दुष्यंत को मरे हुए एक महीना हो चुका था। उसकी बीवी धरा एक महीने से न ढंग से खा पाई थीे न ढंग से सो पाई थी, बस आंसुओं से उसके होने का पता चलता था। लोग तो यह तक सोच चुके थे कि जिस दिन आंसू बंद हुए, उस दिन धरा की आँखें भी बंद हो जाएंगी। इसीलिए उसके रोने पर कोई नहीं टोकता। हालांकि सब उसे सब्र रखने और ढारस देने की कोशिश करते मगर सब बेकार ही चला जाता। लोगों के बीच हैरानी की बात यह नहीं थी कि दुष्यंत की मौत कैसे हुई, हैरानी इस बात पर थी कि किस वक़्त और किस मौके पर हुई। धरा का अब एक बेटा रह गया था, श्रवण। उसकी हाल ही में सुधा से शादी हुई थी। मगर लोग कहते हैं कि शादी सही महुर्त पर नही हुई। दुष्यंत, अपने बेटे की ही शादी में चल बसा। ग़ौर ओ फ़िक्र इस बात पर है कि बेटे-बहू के सातवें फेरे लेते ही उसका दम निकला। कुछ लोगों ने यह तक मजाक बनाया कि उधर बेटा की नई जिंदगी शुरू हुई और इधर बाप दूसरी दुनिया में जिंदगी शुरू करने चला गया। धरा अपने बेटे से इस बात पर खफा थी कि बाप के मरने के वक़्त उसने बस एक बार पीछे मुड़ कर देखा और फिर एक बेहिस की तरह पंडित को शादी की प...

आतंकवाद के बीज से आतंकवाद की फसल ही काटनी पड़ेगी

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- स्वामीनाथन एस. ए. अय्यर, सलाहकार संपादक, द इकोनॉमिक टाइम्स   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी आतंकवाद को नियंत्रित करने और इसे खत्म करने पर काफी कुछ कहते रहते हैं। लेकिन आतंकवाद की सही परिभाषा क्या है ? डिक्शनरी में इसकी परिभाषा बताई गई है – अपना राजनीतिक मकसद पूरा करने के लिए खासतौर पर नागरिकों के खिलाफ हिंसा और धमकी का गैरकानूनी इस्तेमाल। इस परिभाषा के हिसाब से जो भीड़ बीफ ले जाने की आशंका में लोगों को पीट रही है और जान से मार रही है, वह लिन्चिंग मॉब (जानलेवा भीड़) दरअसल आतंकवादी ही हैं। कश्मीर में भी जो लोग इस तरह पुलिसवालों की हत्या कर रहे हैं वह भी वही हैं। जान लेने वाली यह सारी भीड़ अपने धार्मिक-राजनीतिक मकसदों के लिए नागरिकों के खिलाफ गैरकानूनी हिंसा का सहारा ले रही है। यह सभी लोग आतंकवादी की परिभाषा के सांचे में फिट होते हैं। हालांकि बीजेपी में बहुत सारे लोग इससे सहमत नहीं होंगे। वह कहेंगे कि हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई हैं और बीफ विरोधी हिंसा को समझने की जरूरत है। कश्मीर में हुर्रियत भी मारे गए पुलिसवालों की मौत पर घड़ियाली आंसू बहाएगी और कहेगी कि भारत...

नफरतों के कारोबार के खिलाफ लोग सड़कों पर

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अब रोके से न रुकेगा यह सैलाब भारत की यही खूबसूरती है कि फूट डालो और राज करो वाली चाणक्य नीति से राज चलाने वालों को समय-समय पर मुंहतोड़ जवाब देती है। भारत ने 28 जून को सिर्फ दिल्ली या मुंबई में ही यह जवाब नहीं दिया, बल्कि लखनऊ, पांडिचेरी, त्रिवेंद्रम, जयपुर, कानपुर, भोपाल...में भी नफरतों का कारोबार करने वालों को जवाब देने के लिए लोग भारी तादाद में जुटे।...यह आह्वान किसी राजनीतिक दल या सामाजिक संगठन का नहीं था, बल्कि एक फेसबुक पोस्ट के  जरिए लोगों से तमाम जगहों पर #जुनैद, #पहलू खान, #अखलाक अहमद, रामबिलास महतो की हत्या के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने के लिए कहा गया था। ...लोग आए और #सांप्रदायिक गुंडों को बताया कि देखो हम एक हैं...हम तुम्हारी फूट डालो और राज करो वाली #चाणक्य नीति से सहमत नहीं हैं...यानी Not In My Name (#NotInMyName) आइए विडियो और फोटो के जरिए जानें और देखें कि लोगों ने किस तरह और किन आवाज में अपना विरोध दर्ज कराया... जंतर मंतर दिल्ली पर हुए कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें...

मैं चलती ट्रेन में आतंक बेचता हूं...

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मैं उन्माद हूं, मैं जल्लाद हूं मैं हिटलर की औलाद हूं मैं धार्मिक व्यभिचार हूं मैं एक चतुर परिवार हूं मैं चलती ट्रेन में आतंक बेचता हूं मैं ट्रकों में पहलू खान खोजता हूं मैं घरों में सभी का फ्रिज देखता हूं मैं हर बिरयानी में बीफ सोचता हूं मैं एक खतरनाक अवतार हूं मैं नफरतों का अंबार हूं मैं दोधारी तलवार हूं मैं दंगों का पैरोकार हूं मैं आवारा पूंजीवाद का सरदार हूं मैं राजनीति का बदनुमा किरदार हूं मैं तमाम जुमलों का झंडाबरदार हूं मैं गरीब किसान नहीं, साहूकार हूं मुझसे यह हो न पाएगा, मुझसे वह न हो पाएगा और जो हो पाएगा, वह नागपुरी संतरे खा जाएगा फिर बदले में वह आम की गुठली दे जाएगा  मेरे मन को जो सुन पाएगा, वह "यूसुफ" कहलाएगा  ........कवि का बयान डिसक्लेमर के रूप में........ यह एक कविता है। लेकिन मैं कोई स्थापित कवि नहीं हूं। इस कविता का संबंध किसी भी राजनीतिक दल या व्यक्ति विशेष से नहीं है। हालांकि कविता राजनीतिक है। हम लोगों की जिंदगी अराजनीतिक हो भी कैसे सकती है। आखिर हम लोग मतदाता भी हैं। हम आधार कार्ड वाले लोगों के आस...