भारत के ट्रंप भक्त अमेरिका से कुछ तो सीखें...
है कोई माई का लाल भारत में...जो ऐसा कर सके...
जब आप लोग भारत में जीएसटी का मरसिया पढ़ रहे थे और भारत में देशभक्ति
की ठेकेदार भारतीय जनता पार्टी पंजाब की गुरदासपुर सीट लगभग दो लाख के अंतर से
हारने का मातम मना रही थी, ठीक उसी वक्त अमेरिका के वॉशिंगटन पोस्ट अखबार में एक
विज्ञापन छपा। ...यह महज विज्ञापन नहीं था, इसने सुबह-सुबह अमेरिकी लोगों को
दांतों तले ऊंगली चबाने पर मजबूर कर दिया।
वॉशिंगटन पोस्ट के इस विज्ञापन में कहा गया था कि अगर कोई राष्ट्रपति
डोनॉल्ड ट्रंप के खिलाफ मुकदमा चलाने का सुबूत देगा तो उसे 10 मिलियन डॉलर यानी एक
करोड़ का इनाम मिलेगा। यह विज्ञापन हस्टलर पत्रिका के प्रकाशक लैरी फ्लायंट की ओर
से था। विज्ञापन में कहा गया था कि अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव होने में अभी
तीन साल बाकी हैं, तब तक ट्रंप अमेरिका का कबाड़ा कर देगा। इसने न सिर्फ विदेशी
नीति बल्कि घरेलू आर्थिक नीति को बर्बाद कर दिया है, इसने अमेरिका में गृह युद्ध
की स्थिति पैदा कर दी है। इसकी नीतियों से अमेरिका को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।
मुझे अमेरिका में छपे इस विज्ञापन की जरा भी सूचना नहीं थी। मेरे एक
अमेरिकी पत्रकार मित्र ने फोन पर मजाक किया कि क्या भारत में वहां के प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई शख्स इस तरह का सार्वजनिक विज्ञापन छपवा सकता है और कोई
अखबार उसको छापने को राजी हो जाएगा।...फिर उसने उस मजाक के पीछे की कहानी बताई कि
अमेरिका में आज यह भी हो गया।
मैंने उस दोस्त को बताया कि भारत में यह नामुमकिन सी
बात है कि कोई मोदी को खुलेआम इस तरह से चुनौती दे।...अगर कोई तैयार भी हो जाए तो
भी कोई अखबार शायद ही ऐसा साहस कर पाए...जिस देश में मोदी के खिलाफ लिखने पर
संपादकों की नौकरी जा रही हो, जिस देश में मोदी के खिलाफ सोशल मीडिया पर लिखने पर
केस दर्ज किए जा रहे हों, वहां भला किस अखबार में ऐसी हिम्मत है कि वह महंगे से
महंगे रेट पर ऐसा विज्ञापन नहीं छापेगा।
खैर, अब दूसरी बात। आप लोगों को याद होगा कि ट्रंप के सत्ता संभालते
ही अमेरिका के बाद अगर कुछ लोगों ने सबसे ज्यादा खुशी मनाई थी, वह भारत में
दक्षिणपंथी मानसिकता के लोग ही थे। वजह साफ थी कि ट्रंप ने सत्ता संभालते ही कुछ
इस्लामिक देशों को आतंकवादी बता कर उनके नागरिकों के अमेरिका आने-जाने पर बैन लगा
दिया। उसने सारी लड़ाई को अमेरिका बनाम इस्लाम रुख दे दिया। ट्रंप ने अश्वेत लोगों
में असुरक्षा की भावना पैदा कर दी।
यहां भारत में प्रचंड बहुमत लेकर आई भाजपा को
ट्रंप की नीतियां रास आ गईं। दोनों का एजेंडा एक जैसा ही था। लेकिन अमेरिका के
लोगों को यह पसंद नहीं आया। वह यह नहीं चाहते थे कि अमेरिकी दादागीरी के नाम पर
ट्रंप भी दूसरे देशों को टारगेट पर लेकर अमेरिकी इजराइली हथियार लाबी के हथियार
बिकवाएं। लोग खिलाफ हो गए। अमेरिका में इतने बड़े-बड़े प्रदर्शन हुए कि वह इतिहास
में दर्ज हो गए।
भारत में सत्ता संभालते ही भाजपा ने सरकार चलाने की बजाय गौरक्षक दल
खड़े कर दिए और उसके नाम पर खुली गुंडागर्दी को सरकारी संरक्षण तक दे दिया गया।
बीच-बीच में पैंतरेबाजी और जुमलेबाजी के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयंभू
गौरक्षकों पर टिप्पणियां कीं लेकिन अगले ही दिन आरएसएस ने अपनी टिप्पणियों से
स्वयंभू गौरक्षकों के हौसले बढ़ा दिए। नोटबंदी, जीएसटी, तीन तलाक और न जाने कितने
ऐसे बेहूदा और बेसिरपैर के मुद्दे खड़े कर दिए कि भारत का प्रबुद्ध वर्ग धीरे-धीरे
मोदी और भाजपा की इस चालाकी को समझने लगा है।
...हालांकि भाजपा भक्त या उनकी पार्टी
के लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि सरकार के प्रति असंतोष अपने चरम पर पहुंच
गया है और 2019 में फिर से सरकार बनाने का सपना चकनाचूर हो चुका है।...धरातल पर स्थितियां
बेशक ऐसी न दिखती हों लेकिन संकेत साफ है। पंजाब के गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव सीट
पर लगभग दो लाख वोटों से हार यही बताती है, वरना यह हार 10-20 हजार से भी हो सकती
है। देश की तमाम सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में भाजपा और आरएसएस से जुड़ा छात्र संगठन
एबीवीपी लगातार हार रहा है। ताजा नतीजा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से आया है जहां
एबीवीपी को सिर्फ एक सीट मिली है।...इसके बावजूद भाजपा या संघ को युवकों में बढ़
रहा असंतोष दिखाई नहीं दे रहा है।
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