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दो चेहरे - मनमोहन सिंह और बाल ठाकरे

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भारत के दो चेहरे इस समय दुनिया में देखे जा रहे हैं। एक तो चेहरा मनमोहन सिंह का है और दूसरा बाल ठाकरे का। मनमोहन सिंह भारत में आतंकवाद फैलाने वाले पाकिस्तान से युद्ध नहीं चाहते तो बाल ठाकरे का कहना है कि अब हिंदू समुदाय भी आतंकवादी पैदा करें। देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो चाहते हैं कि पाकिस्तान से भारत निर्णायक युद्ध करे। इन्हीं में से •कुछ लोग ऐसे भी हैं जो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कायर बताने तक • से नहीं चूक रहे। यानी अगर मनमोहन सिंह पाकिस्तान को ललकार कर युद्ध छेड़ दें तो वे सबसे बहादुर प्रधानमंत्री शब्द से नवाजे जाएंगे। यानी किसी प्रधानमंत्री की बहादुरी अब उसके युद्ध छेड़ने से आंकी जा रही है। उसने बेशक अर्थशास्त्र की मदद से भारत का चेहरा बदल दिया हो लेकिन अगर वह पाकिस्तान से युद्ध नहीं लड़ सकता तो सारी पढ़ाई-लिखाई बेकार। उस इंसान की शालीन भाषा उसे कहीं का नहीं छोड़ रही है। हालांकि हाल के दिनों में इस मुद्दे पर काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है। लेकिन यह बहस खत्म नहीं हुई है। इसी बहाने राजनीतिक वाकयुद्ध भी शुरू हो गया है और तमाम पार्टियां

मेरा जूता है जापानी

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यह सच है कि मुझे कविता या गजल लिखनी नहीं आती। हालांकि कॉलेज के दिनों में तथाकथित रूप से इस तरह का कुछ न कुछ लिखता रहा हूं। अभी जब एक इराकी पत्रकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति पर जूता फेंका तो बरबस ही यह तथाकथित कविता लिख मारी। इस कविता की पहली लाइन स्व. दुष्यंत कुमार की एक सुप्रसिद्ध गजल की एक लाइन – एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो – की नकल है। क्योंकि मेरा मानना है कि बुश जैसा इंसान (?) जिस तरह के सुरक्षा कवच में रहता है वहां तो कोई भी किसी तरह की तबियत लेकर पत्थर नहीं उछाल सकता। पत्थर समेत पकड़ा जाएगा। ऐसी जगहों पर तो बस जूते ही उछाले जा सकते हैं, क्योंकि उन्हें पैरों से निकालने में जरा भी देर नहीं लगती। मुझे पता नहीं कि वह किसी अमेरिकी कंपनी का जूता था या फिर बगदाद के किसी मोची ने उसका निर्माण किया था लेकिन आज की तारीख में वह जूता इराकी लोगों के संघर्ष और स्वाभिमान को बताने के लिए काफी है। इतिहास में पत्रकार मुंतजर जैदी के जूते की कहानी दर्ज हो चुकी है। अब जरा कुछ क्षण मेरी कविता को भी झेल लें – (शायर लोग रहम करें, कृपया इसमें रदीफ काफिया न तलाशें) - कब तक चलेगी झूठ की दुकान - यूसुफ कि

बुश पर जूते पड़े या फेंके गए ? जो भी हो – यहां देखें विडियो

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दुनिया के तमाम देशों में लोग अमेरिका खासकर वहां के मौजूदा राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश से इतनी ज्यादा नफरत करते हैं कि उनका चेहरा तक नहीं देखना चाहते। मैंने भी आपकी तरह वह खबर अखबारों में पढ़ी लेकिन बुश पर इराक में जूते फेंकने का विडियो जब YouTube पर जारी हुआ तो मैंने सोचा कि मेरे पाठक भी उस विडियो को देखें और उन तमाम पहलुओं पर सोचें, जिसकी वजह से अमेरिका आज इतना बदनाम हो गया है। इराक में बुश के साथ जो कुछ भी हुआ, वह बताता है कि लोग इस आदमी के लिए क्या सोचते हैं। जिसकी नीतियों के कारण अमेरिका आर्थिक मंदी के भंवर में फंस गया है और विश्व के कई देश भी उस मंदी का शिकार बन रहे हैं। जिस व्यक्ति ने बुश पर जूते फेंके वह पत्रकार है और उनका नाम मुंतजर अल जैदी है। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि उन्होंने अच्छा किया या बुरा किया लेकिन जैदी का बयान यह बताने के लिए काफी है कि अगर किसी देश की संप्रभुता (sovereignty) पर कोई अन्य देश चोट पहुंचाने की कोशिश करता है तो ऐसी ही घटनाएं होती हैं। जैदी ने अपना गुस्सा जताने और अपनी बात कहने के लिए किसी हथियार का सहारा नहीं लिया है। खाड़ी देशों के तेल पर कब्जा करने के

चंदन का गुलिस्तां

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  अंग्रेजी का पत्रकार अगर हिंदी में कुछ लिखे तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। मेरे मित्र चंदन शर्मा दिल्ली से छपने वाले अंग्रेजी अखबार Metro Now में विशेष संवाददाता हैं। तमाम विषयों पर उनकी कलम चलती रही है। कविता और गजल वह चुपचाप लिखकर खुद पढ़ लिया करते हैं और घर में रख लिया करते हैं। मेरे आग्रह पर बहुत शरमाते हुए उन्होंने यह रचना भेजी है। आप लोगों के लिए पेश कर रहा हूं। गुलिस्तां कहते हैं कभी एक गुलिस्तां था मेरे आशियां के पीछे हमें पता भी नहीं चला पतझड़ कब चुपचाप आ गया गुलिस्तां की बात छोड़िए वो ठूंठो पर भी यूं छा गया गुलिस्तां तो अब कहां हम तो कोंपलो तक के लिए तरस गए -चंदन शर्मा