ज्योति संग की खूबसूरत खलिश
यह लेख नवभारत टाइम्स की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है। मैं इसे वहां से साभार अपने इस ब्लॉग के लिए ले रहा हूं। उस शख्स को मैं पिछले दो दशक से तो जानता ही हूं। उसके व्यक्तित्व के कई आयाम हैं। कुछ से मैं रूबरू रहा। यूं ही तमाम कहानियों और किताबों पर चर्चा करने के दौरान एक दिन उसकी कहानियों की किताब पहला उड़ने वाला घोड़ा आई और वह उस किताब के साथ गायब हो गया।...वक्त बीत गया। ज्योति संग रचना कर्म से लेकर रंग कर्म में जुटे रहे। मैं भी कई शहरों की खाक छानकर जब वापस दिल्ली पहुंचा तो दोबारा मुलाकात हुई ज्योति संग से। उसने तो खबर नहीं दी लेकिन दूसरे लोगों ने बताया कि ज्योति संग की गजलों की किताब खूबसूरत खलिश आने वाली है। पर, किताब जब मेरे हाथ आई तो मैं दंग था, एक तरफ हिंदी में गजल और दूसरी तरफ उसी का उर्दू में अनुवाद। मुझे यह तो मालूम था कि ज्योति संग के पिता उन लाखों रिफ्यूजी लोगों में शामिल थे जो भारत-पाकिस्तान बंटवारे के वक्त उजड़कर भारत में आए और उन लोगों को दिल्ली के आसपास बसाया गया था। लेकिन मुझे यह नहीं मालूम था कि इस शख्स को उर्दू से जुनून की हद तक लगाव है। किताब के पन्ने पलटे तो प