पहचानिए शब्दों की ताकत को


अगर न होते शब्द

लेखक - सागर कौशिक  

लेखक का परिचय - सागर कौशिक दरअसल टीवी से जुड़े हुए पत्रकार हैं और जब-तब लिखते भी रहते हैं। उनका मानना है कि कुछ ऐसा लिखा जाए जो समाज के लिए भी सार्थक हो। उनके मुताबिक लोगों तक कुछ सकारात्मक बातें पहुंचाने के लिए वह कलम और कैमरे का इस्तेमाल करते हैं। उम्मीद है कि उनका यह लेख आपको पसंद आएगा।
संपर्क - 361, गली नं. 12, वेस्ट गुरु अंगद नगर, लक्ष्मी नगर, दिल्ली-110092


बुजुर्गों की एक कहावत है: लात का घाव तो भर जाता है, नहीं भरता तो बातों का घाव! बातें, जो शब्दों से बनती है! शब्द, जिनसे इतिहास बनता है! शब्द, जिनसे जहां प्यार झलकता है, वहीं नफरत भी जन्म लेती है! शब्द, जो अपने आप में पूरे जहान को समेट लेता है, प्यार का इजहार भी तो इन्हीं शब्दों से ही होता है!  - जब बच्चा पहली बार बोलता है तो लगता है तीनों जहां की खुशियां जैसे सिमट कर मांकी झोली में गिर आई हैं! प्रेमिका भी तो अपने प्रेम का इजहार करने के लिए शब्दों का ही तो सहारा लेती है।

लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि इन शब्दों की अपनी एक ताकतभी होती है। जैसे समय को कभी किसी ने नहीं देखा होता और बड़े से बड़ा पहलवान भी उसके सामने धराशायी हो जाता है, ठीक ऐसे ही शब्दों को भी किसी ने कभी नहीं देखा होता और इतिहास के इतिहास ये शब्द बना जाते हैं! इन्हीं शब्दोंने ही महाकाव्यों गीता’, ‘रामायण’ ‘महाभारत’ ‘कुरानबाइबिल की रचना की। अगर ये शब्द नहीं होते तो शायद इतिहास भी न होता!
देखा आपने शब्दों की ताकत का चमत्कार! एक बहुत ही प्रसिद्ध कव्वाली की याद आ रही है, जिसका अर्थ है मानव जब इस धरती पर जन्म लेता है, तब से मृत्युपर्यंत लकड़ीउसका साथ नहीं छोड़ती, परन्तु लकड़ी  तो उसके शरीर का साथ नहीं छोड़ती, लेकिन शब्दतो मृत्यु के बाद भी उसका साथ नहीं छोड़ते! लोग संसार में आ कर तो चले जाते हैं, परन्तु उनके कहे शब्दही तो इतिहास बन कर संसार को चलायमान बनाए रखते हैं।

शब्द, जो हमें कभी प्यार करते हैं, कभी रूलाते हैं, कभी हंसाते हैं, कभी डराते हैं, कभी दोस्त को दुश्मन बना देते हैं तो कभी दुश्मनी दोस्ती में बदल डालते हैं। क्या मजेदार बात है कि स्वयं अस्तित्वहीन होकर सारे संसार को चलाते रहते हैं। जो स्वयं अस्तित्वहीन होते हैं, मगर अस्तित्व की तरह अपनी ताकतरखते हैं। इनकी ताकत क्या होती है, इसके लिए एक बहुत ही प्रसिद्ध कहानी है, जो हमने तब समझ ली होती तो शायद हमारे समाज का वह हाल न होता, जो आज हो रहा है।

एक बहेलिया था, जिसके पास दो तोते थे। वह उन्हें बाजार में बेचने के लिए गया। ग्राहक उससे उन दोनों तोतों के दाम पूछते तो एक का दाम नगण्य और दूसरे का अनमोल बताता। एक सभ्य ग्राहक ने जब उससे इसका कारण जानना चाहता तो उसने जवाब दिया, ‘खुद ही तोतों से पूछ लो।उसने जब नगण्यदाम वाले तोते से कुछ कहना चाहा तो उस तोते ने जवाब देने से पूर्व ही उसको गालियों से तोल दिया, जब कि अमूल्यदाम वाले तोते ने पूरे स्वागत-सत्कार के साथ उसकी बातों का जवाब दिया। तब बहेलिए ने बताया कि ये नगण्य दाम वाला तोता डाकुओं का साथी रहा, जबकि ये अमूल्यदाम वाला तोता साधु-संतों का साथी रहा है।

इस कहानी का सार केवल यही है कि वे शब्द, ,जो हम गुस्से में अथवा प्यार में बोलते हैं, उसका प्रभाव हमारे आसपास के वातावरण को भी दूषित अथवा स्वच्छ बना देता है। हमारे कहे हुए शब्द अथवा अपशब्द हमारे मुख से निकल कर समाप्तनहीं होते, बल्कि वे हमारे इस समाज की आबोहवा में घुल जाते हैं। हमारे घर की दीवारों में वे जज्ब हो जाते हैं। हमारे घर के वातावरण में वे घुल-मिल जाते हैं और जब हम उस घर के वातावरण में सांस लेते हैं तो वे हमारे शरीर पर वही दुष्प्रभाव छोड़ते हैं, जैसे हमने वातावरण में उन्हें छोड़ा था। ये वातावरण ही तो था कि एक तोता नगण्यदाम वाला बन गया और दूसरा अमूल्य

इन शब्दों को वातावरण में लाने में जो सबसे सहायक सिद्ध होती है, वह है हमारी जिह्वï, जिसके लिए गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं:
तुलसी जिह्वïा बावरी,
कह गई सरग पाताल।
आप तो कह भीतर गई,
जूती खात कपाल॥
तो ये है शब्दों की ताकत। इन्हें पहचानो और अपने आसपास के वातावरण को दूषित होने से बचाओ।
 

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