संदेश

जिन्ना की आस छोड़ो...वो नहीं आएगा...

वाकई भारतीय मुसलमान बेपेंदी के लोटे हैं, जब पाकिस्तान बन रहा था, तब वहां गए नहीं...घर वापसी भी नहीं की...अब भुगतो...वोट देने के लायक भी नहीं रहोगे...नसबंदी भी करवानी पड़ेगी...यार सिग्नल पकड़ो...कानून तुम्हारे साथ नहीं...अदालतें भी तुम्हें नापसंद करती हैं...हाशिमपुरा- नरोदापाटिया से तुम्हें भगाया जाता है, तुम फिर लौटकर वहीं आ जाते हो...कभी पिल्ले बन जाते हो तो कभी टोपी पहनाने पहुच जाते हो...इस्लामिक आतंकवाद का कलंक तुम्हारे माथे पर है...शाकाहारी बनने में क्या बुराई है...मांस तो अब उनके खाने की चीज है जिनके लिए इसका खाना कभी एडवेंचर था, झूठ है तो बरेली वाले त्रिपाठी जी से पूछ लो...जालंधर वाले शर्मा जी से पूछ लो...आखिर क्या चाहते हो...जाओ, यार भाग जाओ पाकिस्तान...यहां रहकर क्या करोगे...या फिर नाम बदल लो...तुम इस्तेमाल किए जाने के लिए बने हो, यूज एंड थ्रो...सेकुलर शब्द गाली है, उसे अपने सीने से चिपकाए बैठे हो... देखो हिटलर के वक्त का जर्मनी याद करो...सब नाजी अंध राष्ट्रभक्त हो गए थे...गैस चैंबर तैयार थे...कत्लेआम की साजिश चारों तरफ से थी...अब राष्ट्रभक्तों का जमाना है...तुम्हारा क

मैडम किरन बेदी, बुखारी के फतवे के पीछे कौन था

किरन बेदी को बीजेपी वाले समझा क्यों नहीं रहे...वह अपनी हार से उबरने का नाम नहीं ले रही हैं। अपनी हार के लिए बीजेपी और इसके नेताओं को जिम्मेदार ठहराने के बाद उन्होंने अपनी हार में एक और फैक्टर मुस्लिम वोटों का न मिलना भी जोड़ दिया है और कहा है कि जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के फतवे की वजह से अंतिम समय में दिल्ली के कृष्णानगर इलाके में रहने वाले मुसलमानों का वोट उन्हें नहीं मिला, जिस वजह से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। चुनाव से पहले किरन का शुमार देश के तेज-तर्रार पुलिस अधिकारियों में था। जैसे ही बीजेपी ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने वाला न्यौता दिया, उनकी छवि पर सबसे पहला हमला यहीं से हुआ। आईपीएस विकास नारायण राय ने जनसत्ता में एक लेख लिखा जिसमें बहुत बारीकी से किरन का विश्लेषण किया गया। राय को मैं काफी दिनों से जानता हूं और वह भारतीय पुलिस सेवा में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। उन्होंने लिखा था कि किरन बेदी भारतीय लोगों के बीच में एक जीवित मिसाल बन गई थी लेकिन बीजेपी ने उन्हें अपने लिए इस्तेमाल कर उनकी छवि पर बट्टा लगा दिया है। किरन के बाद भारतीय

सलमान रश्दी का कूड़ा और भालचंद्र निमाड़े

सलमान ऱश्दी की बौखलाहट समझ में आती है। तमाम तरह का कूड़ा लिखने के बाद भारत में जब उन्हें पहचान नहीं मिली तो वह मराठी लेखक भालचंद्र निमाड़े को गाली देने पर उतर आए। निमाड़े को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की घोषणा के बाद रश्दी बौखला गए। किसी भी लेखक को दूसरे लेखक के काम का आकलन करने का अधिकार है। निमाड़े का आकलन है कि सलमान ऱश्दी और वी. एस. नॉयपाल जैसे लेखकों ने पश्चिमी देशों का प्रचार किया और उनका लेखन उस स्तर का नहीं है...इसमें क्या गलत है लेकिन इसके बदले अगर दूसरा लेखक पलटकर गाली देने लगे तो आप इसे क्या कहेंगे।...मैं साहित्यकार नहीं हूं लेकिन साहित्य की समझ जरूर रखता हूं। सलमान रश्दी या भारत में चेतन भगत सरीखे लेखक अंग्रेजी में जो चीजें परोस रहे हैं, उससे कहीं बेहतर भालचंद्र निमाड़े का लेखन है।...भारत की क्षेत्रीय भाषाओं में रश्दी औऱ चेतन भगत जैसा कूड़ा करकट लिखने वालों से कहीं बेहतर उपन्यासकार मौजूद हैं। ...और तो और अरुंधति राय का लेखन रश्दी या चेतन भगत के स्तर से बहुत ऊंचा और बड़ा है। रश्दी औऱ नॉयपाल ने अपने लेखन में वह सब बेचा जो पश्चिमी देशों को गरीब देशों के बारे में जानना और सुनना प

मोदी जीतें या फिर केजरीवाल...देश जरूर पूछेगा सवाल

बिना किसी भूमिका के कुछ वजहों से दिल्ली के चुनावी दंगल में अरविंद केजरीवाल की जीत क्यों हो, इसको बताना जरूरी लग रहा है...औऱ इनमें से किसी एक की जीत होने पर सवाल तो पूछे ही जाते रहेंगे...यह किसी टीवी चैनल की अदालत नहीं है जहां सब कुछ मैनेज कराकर सवाल पूछे जाते है...जनता की अदालत का सामना बार-बार करना पड़ेगा... - दिल्ली के चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल किसने बनाया...आपने इसे क्यों नहीं इसे एक छोटे से राज्य का सामान्य सा विधानसभा चुनाव मानकर क्यों नहीं लड़ा। देश के प्रधानमंत्री की इज्जत एक मामूली से विधानसभा चुनाव में दांव पर लगाने की जरूर क्या थी, किरन बेदी की इज्जत पूरे देश में एक तेजतर्रार महिला आईपीएस की रही है लेकिन अफसोस की इस चुनाव ने इस इमेज को तार-तार कर दिया...और यह सब उस महान रणनीतिकार के कारण हुआ जिसे चारों केसरिया रंग देखने की आदत पड़ गई है... -बीजेपी और इसके ब्ल्यू आइड ब्वॉय नरेंद्र मोदी को पिछले लोकसभा चुनाव में पूरे देश ने भारी बहुमत से जिताकर लोकसभा में भेजा। पिछले 8 महीनों से यह देश इस बात का इंतजार कर रहा है कि सरकार कुछ ठोस पहल करेगी लेकिन बदले में पब्लिक