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मोबाइल ने जिंदगी को किस तरह कबाड़खाना बना दिया है...इस पर बहुत ज्यादा ज्ञान न देते हुए एक विडियो यहां दे रहा हूं, जिसे देखकर आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि दरअसल हम लोग किस तरफ जा रहे हैं। महानगरों में लोगों की यह शिकायत आम होती जा रही है कि एक तो आपस में रिश्तेदार मिलते तक नहीं और अगर मिलते हैं तो सारे के सारे आपस में बात करने की बजाय मोबाइल से चिपके रहते हैं...यह हकीकत है... इसी हकीकत से रूबरू कराता यह विडियो... 《低头人生》 Posted by 李金雄 on Sunday, April 19, 2015

केजरीवाल को माफ कर दो गजेंद्र भाई

गजेंद्र सिंह ने क्या वाकई फसल चौपट होने पर खुदकुशी की...यह सवाल कल से मन में कौंध रहा था। क्योंकि मैंने जब टीवी फुटेज और बाद में फोटोग्राफर मित्र सुनील कटारिया द्वारा घटनास्थल से खींचे गए फोटो देखे तो यह शंका बढ़ गई कि इस खुदकुशी का संबंध फसल चौपट होने से नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी की राजनीति से मोह भंग होने से जुड़ा मामला है। राजस्थान से आई आज कुछ मीडिया रपटों ने मेरे इस शक की पुष्टि कर दी है। गजेंद्र सिंह ने तीन पार्टियों भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अब आम आदमी पार्टी में अपनी मंजिल तलाश की। उन्होंने विधानसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़ा। यह शख्स सपा का जिला अध्यक्ष भी रहा। हिंदुस्तान टाइम्स ने दौसा में गजेंद्र सिंह के घर अपने रिपोर्टर को भेजकर पूरी जानकारी मंगाई। जिसे पढ़ने और कल शाम को फुटेज और फोटो देखने के बाद मेरा नजरिया इस खुदकुशी को लेकर बदला। मैं आपको कुछ कारण गिनाता हूं जो उनके परिवार के हवाले से मीडिया में आए हैं – -     उनके परिवार के पास खेती की अच्छी खासी जमीन है लेकिन उनके पिता अभी भी सारे फैसले लेते हैं क्योंकि उनका यह लड़का गजेंद्र सि

जिन्ना की आस छोड़ो...वो नहीं आएगा...

वाकई भारतीय मुसलमान बेपेंदी के लोटे हैं, जब पाकिस्तान बन रहा था, तब वहां गए नहीं...घर वापसी भी नहीं की...अब भुगतो...वोट देने के लायक भी नहीं रहोगे...नसबंदी भी करवानी पड़ेगी...यार सिग्नल पकड़ो...कानून तुम्हारे साथ नहीं...अदालतें भी तुम्हें नापसंद करती हैं...हाशिमपुरा- नरोदापाटिया से तुम्हें भगाया जाता है, तुम फिर लौटकर वहीं आ जाते हो...कभी पिल्ले बन जाते हो तो कभी टोपी पहनाने पहुच जाते हो...इस्लामिक आतंकवाद का कलंक तुम्हारे माथे पर है...शाकाहारी बनने में क्या बुराई है...मांस तो अब उनके खाने की चीज है जिनके लिए इसका खाना कभी एडवेंचर था, झूठ है तो बरेली वाले त्रिपाठी जी से पूछ लो...जालंधर वाले शर्मा जी से पूछ लो...आखिर क्या चाहते हो...जाओ, यार भाग जाओ पाकिस्तान...यहां रहकर क्या करोगे...या फिर नाम बदल लो...तुम इस्तेमाल किए जाने के लिए बने हो, यूज एंड थ्रो...सेकुलर शब्द गाली है, उसे अपने सीने से चिपकाए बैठे हो... देखो हिटलर के वक्त का जर्मनी याद करो...सब नाजी अंध राष्ट्रभक्त हो गए थे...गैस चैंबर तैयार थे...कत्लेआम की साजिश चारों तरफ से थी...अब राष्ट्रभक्तों का जमाना है...तुम्हारा क

मैडम किरन बेदी, बुखारी के फतवे के पीछे कौन था

किरन बेदी को बीजेपी वाले समझा क्यों नहीं रहे...वह अपनी हार से उबरने का नाम नहीं ले रही हैं। अपनी हार के लिए बीजेपी और इसके नेताओं को जिम्मेदार ठहराने के बाद उन्होंने अपनी हार में एक और फैक्टर मुस्लिम वोटों का न मिलना भी जोड़ दिया है और कहा है कि जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के फतवे की वजह से अंतिम समय में दिल्ली के कृष्णानगर इलाके में रहने वाले मुसलमानों का वोट उन्हें नहीं मिला, जिस वजह से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। चुनाव से पहले किरन का शुमार देश के तेज-तर्रार पुलिस अधिकारियों में था। जैसे ही बीजेपी ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने वाला न्यौता दिया, उनकी छवि पर सबसे पहला हमला यहीं से हुआ। आईपीएस विकास नारायण राय ने जनसत्ता में एक लेख लिखा जिसमें बहुत बारीकी से किरन का विश्लेषण किया गया। राय को मैं काफी दिनों से जानता हूं और वह भारतीय पुलिस सेवा में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। उन्होंने लिखा था कि किरन बेदी भारतीय लोगों के बीच में एक जीवित मिसाल बन गई थी लेकिन बीजेपी ने उन्हें अपने लिए इस्तेमाल कर उनकी छवि पर बट्टा लगा दिया है। किरन के बाद भारतीय