गले में खिचखिच...विक्स न खाना

क्या विक्स का इस्तेमाल करते हैं...जरूर करते होंगे। बच्चे को खांसी आई नहीं कि उसके गले पर या तो विक्स मल दी गई या फिर उसे विक्स की गोली चूसने को दे दी गई। लेकिन अब विक्स का इस्तेमाल न करें। इस प्रोडक्ट को बनाने वाली कंपनी प्रॉक्टर एंड गैंबल (पी एंड जी) ने अमेरिका में अपनी इस दवा को वापस ले लिया है यानी कंपनी इस दवा को अब अमेरिकन बाजार में नहीं बेचेगी। इस कंपनी ने सिर्फ विक्स ही नहीं बल्कि अपना एक और प्रॉडक्ट 24 लिक्वि कैप्स बोनस पैक भी वापस ले लिया है। पर...भारत समेत दुनिया के विकासशाली देशों यानी गरीब देशों में दोनों दवाओं को वापस नहीं लिया गया।

क्यों वापस लिया विक्स को
प्रॉक्टर एंड गैंबल (Procter and Gamble)ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा है कि इस दवा को इसके दावे के अनुरूप नहीं पाया गया। कंपनी ने विक्स (Vicks) के पैकेट पर लिखा था कि यह दवा 12 साल से कम उम्र के बच्चों पर काफी तेजी से असर करती है। लेकिन कंपनी ने पाया कि ऐसा नहीं है। इसका असर बच्चों पर नहीं होता। ठीक यही नतीजा क्वि कैप्स के साथ भी निकला। कंपनी ने अपनी रिलीज में यह भी कहा कि उसने खुद ही पहल करते हुए दोनों दवाओं को वापस लिया है। यानी उसने पहल को भी अमेरिकन लोगों के बीच भुनाने का पूरा इंतजाम किया है। संकेत यह देने की कोशिश की जा रही है कि यह कंपनी कितनी ईमानदार है कि इसने अपने दो प्रोडक्ट बेहतर नतीजे न आने पर वापस ले लिए। हकीकत यह है कि अमेरिका में फूड एंड ड्रग कंट्रोलर अथॉरिटी के नियम इतने कड़े हैं कि उसके आगे कंपनियों के दावों की असलियत खुल जाती है। यह अथॉरिटी ऐसी दवाओं और वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाते देर नहीं करती। इसके अलावा वहां इस क्षेत्र में कई एनजीओ भी सक्रिय हैं जो लगातार ऐसी वस्तुओं पर नजर रखते हैं और अथॉरिटी को सूचना देते रहते हैं। वैसे भी वहां की अथॉरिटी की वेबसाइट पर जाकर कोई भी आदमी किसी भी प्रोडक्ट की शिकायत कर सकता है।

मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने के बाद भारत जिस अमेरिकी गुलामी की तरफ बढ़ रहा है, प्रॉक्टर एंड गैंबल की घटना उसकी जीती जागती मिसाल है। यह अमेरिकी कंपनी है और करीब 80 देशों में इसकी शाखाएं हैं यानी वहां भी पी एंड जी की यूनिट है जो इस फॉर्मूले के आधार पर विक्स और 24 लिक्वि कैप्स बनाती है। इन 80 देशों की शाखाओं में करीब 1 लाख 35 हजार लोग नौकरी करते हैं।

भारत में इस समय हर छोटी से लेकर बड़ी जिस भी चीज का इस्तेमाल आप करते हैं, उनमें कहीं न कहीं किसी भी रूप में अमेरिकन हस्तक्षेप बरकरार है। यानी टाटा नमक की तरह अमेरिका हमारे हर निवाले में मौजूद है। खासकर दवाओं के मामले में तो यह आश्चर्यजनक ढंग से मौजूद है। याद कीजिए टीवी पर आपने जब पहली बार विक्स का विज्ञापन देखा था तो वह क्या था – गले में खिचखिच...विक्स की गोली लो खिचखिच दूर करो। कितना अपील करता था यह विज्ञापन आपको। लेकिन अब जब उसकी असलियत सामने आई है तो हम लोग मुंह चुराने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते। विक्स को वापस लेने की खबर मुझे अमेरिकन मीडिया से मिली है, भारतीय मीडिया में मुझे यह खबर नजर नहीं आई है। हो सकता है कि एकाध अंग्रेजी अखबारों ने इसे कहीं संक्षेप में लगाया भी हो। कहने का आशय यह है कि भारत के एक बहुत बड़े वर्ग तक यह खबर कभी नहीं पहुंच पाएगी कि विक्स और 24 लिक्वि कैप्स अब अमेरिका में नहीं बेची जाएगी। लोग हमेशा की तरह खिचखिच दूर भगाने के लिए विक्स खाते रहेंगे।

नाम में फर्क
अमेरिका में विक्स को विक्स डे क्विल कोल्ड एंड फ्लू के नाम से बेचा जाता है। भारत में यह विक्स वेपोरब, विक्स कफ ड्रॉप्स, विक्स एक्शन 500 प्लस के नाम से बेचा जाता है। पी एंड जी के जो अन्य पॉपुलर प्रॉडक्ट पूरी दुनिया में बिकते हैं वे हैं- पैंपर्स, टाइड, एरियल, आलवेज, विहस्पर, पैंटीन, मैच 3, बाउंटी, डॉन, गेन, प्रिंगेल्स, चारमिन, डाउनी, लेनोर, इयाम्स, क्रेस्ट, ओरल-बी, ड्यूरासेल, ओले, हेड एंड शोल्डर, वेल्ला, जिलेट आदि। इनमें से आपने जरूर किसी न किसी प्रोडक्ट का इस्तेमाल भारत में भी किया होगा।


कोई एक दवा नहीं
विक्स या 24 लिक्वि कैप्स कोई एक दवा नहीं है जिसका अमेरिकी चेहरा अलग है और भारत जैसे गरीब देशों के लिए उसका पैमाना अलग है। तमाम ऐसी प्रतिबंधित दवाएं जो अमेरिका में नहीं बेची जा सकतीं, वह भारत में खुलेआम बिकती हैं। यहां के डॉक्टर दवा कंपनियों से गिफ्ट और टूर के कूपन लेकर उन दवाओं को खरीदने की सिफारिश (रेकमेंड) करते हैं।

सिफला एक भारतीय कंपनी है। अभी जब स्वाइन फ्लू फैला तो उसने एक बहुत ही कारगर दवा टेमीफ्लू भारतीय मार्केट में उतारी। चूंकि स्वाइन फ्लू सबसे पहले अमेरिका में फैला तो वहां की सरकार ने सबसे पहले वहां की कंपनियों से स्वाइन फ्लू की दवा के बारे में पड़ताल की। सभी ने हाथ खड़े कर दिए। सिफला ने अमेरिकन सरकार को बताया कि उसके पास बहुत ही कारगर दवा है। अमेरिका ने सिफला को दवा सप्लई का आर्डर दे दिया। वहां दवा पहुंचने की देर थी कि एक अमेरिकन कंपनी ने इससे मिलती-जुलती दवा बनाकर पेटेंट का दावा कर दिया। खैर वह केस सिफला ने जीता और अब टेमीफ्लू के मामले में उसका डंका बज रहा है। यहां भारत में टेमीफ्लू की सप्लाई के लिए सिफला को भारत सरकार से बार-बार गुहार लगानी पड़ी कि हमारी दवा खरीद लो और पब्लिक में बांट दो। यह उदाहरण मैंने सिर्फ इसलिए दिया कि अगर किसी अमेरिकी कंपनी को भारत सरकार के पास यह दवा बेचनी होती तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), यूनीसेफ, रोटरी क्लब जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं उसकी पैरोकारी में उतर आतीं। लेकिन सिफला की पैरोकारी किसी ने नहीं की, यहां तक कि भारतीय मीडिया ने भी नहीं। न यहां न वहां।

अब देखना है कि पी एंड जी भारत में विक्स और 24 लिक्वि कैप्स की बिक्री कब बंद करती है या फिर नए नाम के साथ उसे उतारती है।

...और अगर आपको गले की खिचखिच दूर ही करनी है तो गरम पानी में तुलसी, अदरक और मामूली सा नमक डालकर उसका गलाला करें और उस पानी को पी लें। आपकी खिचखिच जरूर दूर हो जाएगी।

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
amit @ aap ek sachhe deshbhakt hai
आपके इस लेख ने आँखें खोल दीं .....
अजय कुमार झा ने कहा…
बहुत ही चिंताजनक बात है ये तो ...आपने जानकारी दी बहुत आभार
सार्थक आँख खोलू पोस्ट।
आभार।
आक्रामक और छलपूर्ण मार्केटिंग सफलता की गारंटी बन चुकी है। सफलता चाहिए ही ऐट एनी कॉस्ट। अमेरिका में नहीं तो भारत में। कम्पनियाँ तो करेंगी ही । प्रश्न यह है कि भारत भी ऐसे प्रभावी और कड़े क़ानून क्यों नहीं बना और लागू कर सकता? षड़यंत्र सा लगता है..
Minoo Bhagia ने कहा…
किर्मानी जी आपकी बात सही है , परन्तु क्या हमारे यहाँ वो रिसर्च फेसिलिटी है जो अमेरिका में है ? कल चेतन भगत का एक लेख पड़ा था मैंने कि भारत में लोग सिर्फ मूर्तियों और माल्स के विकास पर ध्यान देते हैं | क्या किसी ने भी अच्छे विश्वविध्यालय बनाने की सोची है , मेरा मतलब है कि सुविधाएं मुहैया कराने के बारे में सोचा है ?
नए नए IIT खोलते जा रहे हैं, लेकिन क्या उनमें फेकल्टी है ? अच्छे से अच्छे संस्थानों में बच्चों के लिए चिकित्सा सुविधाएं सिर्फ नाम मात्र को हैं |
प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खुलते जा रहे हैं , जिनमें प्रोफ़ेसर अक्सर नहीं रहते , सिर्फ नाम के लिए होते हैं | ऐसी परिस्थितियों में विद्यार्थी क्या पढ़ेगा और क्या रिसर्च करेगा ?
विक्स की गोली तो बहुत छोटी चीज़ है , आप देखें कि सर्विकल कैंसर के टीके पहले कहाँ बनते हैं ? भारत में आते आते इन्हें एक साल लग गया |
Anurag Geete ने कहा…
ज्ञानवर्धन लेख, आपको धन्यवाद.

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