बिंदी के मोहपाश में फंसी एक अमेरिकी लेखिका

आजकल अनेक अमेरिकी लोग भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर उसके प्रचार-प्रसार में लग गए हैं। ब्रिटनी जॉनसन उनमें से एक हैं। अपनी किताब 'कलर फॉर किड्स' से चर्चा में आईं ब्रिटनी आजकल भारतीय बिंदी को अमेरिका में लोकप्रिय बनाने के लिए अपने ढंग से सक्रिय हैं। ब्रिटनी ने यूसुफ किरमानी को दिए ई-मेल इंटरव्यू में भारतीय संस्कृति और अपने बिंदी आंदोलन पर खुलकर बात की... ब्रिटनी का यह इंटरव्यू शनिवार (26 जून 2010) को नवभारत टाइम्स में संपादकीय पेज पर प्रकाशित किया गया है। इसे वहीं से साभार लिया जा रहा है।
अमेरिका में आजकल योग और भारतीय जीवन पद्धति की काफी चर्चा है। इसकी कोई खास वजह?
मैं भारतीय संस्कृति और योग की कहां तक तारीफ करूं। यह बहुत ही शानदार, उत्सुकता पैदा करने वाली और आपको व्यस्त रखने वाली चीजें हैं। आप जानकर हैरान होंगे कि न्यू यॉर्क शहर में योग इतना पॉपुलर है कि जब किसी संस्था को योग टीचर की जरूरत होती है तो दो सौ लोग उसके ऑडिशन में पहुंचते हैं। कीर्तन म्यूजिक के तो कहने ही क्या। मेरे जैसे बहुत सारे अमेरिकी ड्राइव करते हुए कार में कीर्तन सुनते हैं और गुनगुनाते हैं। योग क्लास रोजाना जाना हमारी दिनचर्या में शामिल हो गया है। मैं तो इससे इतनी ज्यादा प्रेरित हूं कि योग टीचर बन गई। इससे दिलोदिमाग लचीला बनता है। अपने प्रति रवैया तो बदलता ही है, हम दूसरों के प्रति भी सहिष्णु और दयालु होते हैं। सही मायने में भारतीय संस्कृति और योग जैसी चीजें अमेरिकी लोगों को उनकी रोजमर्रा जिंदगी के लिए गिफ्ट की तरह हैं।

आप तो अमेरिका की संस्कृति में पली-बढ़ी हैं। योग के बाद अचानक बिंदी की तरफ आपका झुकाव कैसे हुआ?
पहले योग, फिर आयुर्वेदिक दवाएं, कीर्तन म्यूजिक और हां अब बिंदी के प्रति मेरा झुकाव साफ है। मैं तो इन सभी को भारतीय संस्कृति की ओर से एक गिफ्ट मानती हूं...। परंपरागत भारतीय बिंदी लगाने का जो तरीका है, उसको मैंने यहां नए तरीके से पेश किया है। मैंने जिस योगा बिंदी (Yoga Bindi)को डिजाइन किया है, वह आज के फैशन सीन के मद्देनजर किया गया है। योगा बिंदियां साइज में बड़ी हैं और शरीर के किसी भी हिस्से में उन्हें लगाया जा सकता है। अमेरिका में टैटू और गोरी कलाइयों पर न जाने क्या-क्या बनवाने का फैशन जोरों पर है। मेरा मानना है कि योगा बिंदी (Yoga Bindi), जो आपकी स्किन को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती, उस टैटू से कहीं ज्यादा खूबसूरत है। इसे लगाने के लिए इंजेक्शन की भी जरूरत नहीं पड़ती। यह टैटू के मुकाबले ज्यादा कलरफुल और मजे वाली चीज है।
क्या आप अमेरिका में बिंदी को इसके कल्चर का हिस्सा बनाने के लिए आंदोलन छेड़ने का इरादा रखती हैं?
हां बिल्कुल। मैं एक बिंदी बुक (Bindi Book)भी लिख रही हूं। मैंने योगा बिंदी को ओमेगा और कृपालु आनंद आश्रम में पेश भी किया है। उत्तर पूर्व अमेरिका में बहुत बड़े योग कॉन्फ्रेंस सेंटर हैं। सितंबर में मैं क्लोरेडो में होने वाली योगा जर्नल कॉन्फ्रेंस में जा रही हूं और योगा बिंदी को राष्ट्रीय स्तर पर लॉन्च करूंगी। मेरा मकसद है योगा बिंदी को लोकप्रिय बनाना, जो माथे पर लगाने के अलावा बॉडी स्टाइल की बिंदी (Body Style Bindi)भी है। मैं तो चाहती हूं कि सभी महिलाएं बिंदी लगाएं, बेशक वह अमेरिकी ही क्यों न हों।

दीपक चोपड़ा ने अमेरिका में जिस तरह योग और भारतीय जीवन पद्धति को पॉपुलर किया, उसे आप किस रूप में देखती हैं?
मैं दीपक चोपड़ा से काफी प्रभावित हूं। उनकी वजह से यूएस में योग और भारतीय कल्चर को पहचान मिली। बहुत साल पहले जब दीपक यूएस के सबसे लोकप्रिय टीवी शो ओपेरा विनफ्रे शो (Opera Winfray Show)में आए थे, तब मैंने उनको देखा था। जब उन्होंने अपनी किताब और अन्य चीजों पर बोलना शुरू किया तो मुझे लगा कि यह सब पूरी तरह सच है और मेरी सोच के करीब है। उसके बाद मैं उनकी फैन बन गई। मैंने अपनी किताब में दीपक को याद किया है।
अपनी किताब (Color4Kids)में आपने ब्लैक बच्चों को, जिन्हें भारतीय अपने नजदीक पाते हैं, क्यों फोकस किया?
मैं तो हर बच्चे को खूबसूरत मानती हूं, स्पेशल मानती हूं और मेरा मानना है कि उन्हें भी वही सम्मान और मान्यता मिलनी चाहिए जिसे सोसायटी के बाकी लोग चाहते हैं। चाहे वे बच्चे यूएस के हों, भारत के या फिर इथोपिया के। इन सभी देशों के बच्चों को गौर से देखिए, उनके बाल, उनकी आंखें और स्किन टोन क्या अलग लगते हैं? मेरी किताब बहुत ही सिंपल है जो बताती है कि किस बच्चे पर कौन सा रंग जमेगा और इससे वह बच्चा खुद को परफेक्ट मानते हुए उसे उसी रूप में स्वीकार करेगा। ऐसा नहीं है कि सिर्फ गोरी चमड़ी वाले बच्चों पर कोई रंग जमता है। जब मैं इस किताब को छपवाने के लिए पब्लिशर्स के पास भटक रही थी तो उन्होंने भी यह सवाल किया था। सभी उस काले रंग वाली लड़की की तरफ आकर्षित हुए थे जो मेरी किताब के कवर पर थी, किसी ने उस गोरे लड़के का जिक्र नहीं किया जो मेरा बेटा है। वह उस कवर पर एक कोने में था।

टिप्पणियाँ

شہروز ने कहा…
दिनों बाद आपकी पोस्ट दिखी.खूब श्रम किया है इस पोस्ट पर.
वक़्त हुआ करे तो हमज़बान भी देख आया करें!!
अपने यहा तो बिन्दी साम्प्रदायिक है .
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बिन्दी या तिलक का धर्म से कोई संबंध नहीं। यह श्रंगार का मामला है। इस्लाम इसे इसीलिए वर्जित भी करता है।
हिन्दीवाणी ने कहा…
दिनेश जी, आपने उचित ही जवाब दिया है। धीरू जी जैसे लोग इसे धर्म या सांप्रदायिकता से इसे क्यों जोड़ना चाहते हैं। हम लोग अपने समय का इतिहास कलमबंद कर रहे हैं। अगर एक पूंजीवादी देश में भारतीय संस्कृति को बिंदी के कारण लोकप्रियता मिल रही है तो उस संदेश को सभी लोगों तक पहुंचाने में क्या बुराई है।
धीरू जी ने लगता है अभी पूरे भारत का भी भ्रमण ठीक से नहीं किया है। उन्हें पूर्वांचल के कुछ इलाकों का दौरा करना चाहिए जहां मुस्लिम महिलाएं बाकायदा बिंदी लगाती हैं और उसके खिलाफ अभी किसी ने फतवा जारी नहीं किया है। धर्म हर किसी का व्यक्तिगत मामला है। अगर इस्लाम ने किन्हीं वजहों से इसे वर्जित किया है जो उसके अपने कारण होंगे। जो लोग उस धर्म को मानते हैं, उन्हें उसे मानने दें, आप अपना धर्म मानते रहें। इसमें बीच में सांप्रदायिकता कहां से आ रही है।
-भाई शहरोज, आप सही कह रहे हैं। आजकल टिप्पणियों से ही हाजिरी मानी जाती है। बहरहाल, हमलोग तो हमजबान होने के साथ-साथ हमख्याल भी हैं तो वहां आना-जाना वैसे भी लगा रहता है।
Minoo Bhagia ने कहा…
बिंदी का सम्बन्ध ' third eye ' से होता है | मन को अन्दर तक देख पाना ही है ... '' सत्यम शिवम् सुन्दरम ''
Ek ziddi dhun ने कहा…
योग सहिषणु और दूसरों के प्रति दयालु बनाता है, अपने योगगुरुओं की हरकतों से तो ऐसा नहीं लगता. अमेरिकी ऐसे हो जाएं तो अच्छा. वर्ना तो यह धंधा पूंजीवाद को भा रहा हैताकि लोग मु्द्दों से भटके रहें।

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