महान अडानी जी...वगैरह


देश विकास के रास्ते पर बढ़ चला है। अच्छे दिन लाने के लिए एक से बढ़कर एक फैसले किए जा रहे हैं। तमाम फैसलों को मिलाकर हम एक ऐसे भारत का निर्माण करने जा रहे हैं, जहां जनता को मनरेगा, कोयला, स्पेक्ट्रम जैसे घोटालों से निजात दिलाने की कोशिशें शुरु हो गई हैं। केंद्र का सबसे ताजा फैसला इस विकास को और रफ्तार देने जा रहा है...

क्या आप अडाणी या अडानी (Adani) को जानते हैं...शायद कुछ सिरफिरे हों, जो न जानते हों। संक्षेप में ये है कि ये गुजरात के बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं और देश की तरक्की के लिए खुद को समर्पित कर चुके हैं। केंद्र का ताजा फैसला इन्हीं के बारे में है...

*महाराष्ट्र के विदर्भ के गोंडिया जिले में अडानी ग्रुप के पावर प्लांट (Power Plant) के लिए केंद्र सरकार ने 148.59 हेक्टेयर वन भूमि (Forest Land) मंजूर कर दी है। यहां पर 1980 मेगावॉट का पावर प्लांट अडानी ग्रुप लगाएगा। 2008 से प्रोजेक्ट लटका हुआ था लेकिन केंद्र में नई सरकार आने के बाद 28 अगस्त 2014 को प्रोजेक्ट को पहले मंजूरी दी गई, फिर 20 अक्टूबर 2014 को केंद्रीय पर्यावरण (Enviornment) और वन मंत्रालय ने भी इसे मंजूर कर लिया। मंत्रालय को उस इलाके में वन क्षेत्र के पेड़ काटे जाने और उसकी जगह पावर प्लांट लगाने पर कोई आपत्ति नहीं है। आठ साल पहले मंत्रालय यह सोच नहीं पाया, उसकी अक्ल पर तरस आता है...

तमाम आला सरकारी अधिकारी इस बात पर लज्जित नजर आए कि महाराष्ट्र में चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण केंद्र सरकार और वो लोग इस प्रोजेक्ट को पहले मंजूर नहीं कर सके। वैसे, अडानी ग्रुप ने अधिकारियों के इस रवैए पर जरा भी ऐतराज नहीं जताया है। जहां 8 साल तक इस दिन का इंतजार करना पड़ा, अब सिर्फ एक महीने की देरी से क्या फर्क पड़ता है...


आप सोच रहे होंगे लेखक यूसुफ किरमानी का दिमाग फिर गया है, इस तरह के विषय पर कहीं लेख लिखे जाते हैं, ये तो खबर है। इस पर लेखक बेकार का राग अखबारी (Newspaper Raga) छेड़े हुए है।...अरे भाई, अडानी जी ने एक तरह से देश पर कितना उपकार किया है। बिजली कितनी जरूरी है, इसे सिर्फ या तो यह सरकार समझ सकी है या फिर अडानी जी...वगैरह...

कोयला संकट की वजह से वैसे भी बिजली संकट बना हुआ है, अब अगर हरे-भरे पेड़ों की जगह पावर प्लांट न लगा तो बिजली संकट कैसे दूर होगा। जब ये हरे-भरे वन कटेंगे, तभी तो शहरों में कंक्रीट के जंगल उगेंगे न...आप लोग समझते क्यों नहीं भाई...। बताइए, लोग विकास भी नहीं चाहते। जरा सी बात का हवाई जहाज बना देते हैं...पेड़ तो कहीं भी लगाए जा सकते हैं। ...लेकिन पावर प्लांट तो उसी जमीन पर लगेगा, जहां अडानी जी की कंपनी को सूट करेगा। अगर वह इस जमीन पर नहीं लगाएंगे तो किसी न किसी जमीन पर लगाएंगे ही। इससे रत्ती भर फर्क नहीं पड़ता कि वहां से सैकड़ों वन श्रमिकों या वन प्राणियों को इधर-उधर छिपना पड़ेगा या जान से हाथ धोना पड़ेगा। ऐसे कितने लोग होंगे...100-200 लोग...सोचिए इस पावर प्लांट से जो बिजली पैदा होगी, वह लाखों नहीं तो कम से कम हजारों घरों को रोशन करेगी, हमारे मॉल जगमग रहेंगे। बाजार भी चढ़ेगा, विकास इसी को तो कहते हैं।...ये चमक कमजोर पड़ी नहीं कि बाजार (Share Market) में मनहूसियत छा जाएगी। अडानी जी इस चमक को बचाए रखने में कितने महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं देश के लिए, कम से कम अगले गणतंत्र दिवस पर किसी पद्म पुरस्कार के लिए तो हकदार हैं।


सरकार के इस फैसले पर अगर आपकी राय नकारात्मक है, तो उससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन आपके मुंह से कांग्रेस या यूपीए एजेंट होने की बदबू जरूर आएगी। उनके तमाम गुर्गों की सूंघने की शक्ति इतनी तेज है कि वे कांग्रेसी एजेंटों को फौरन सूंघ लेते हैं। इसलिए बेहतरी इसी में है कि आप किसी भी फैसले पर नकारात्मक राय न बनाएं और न ही उसे व्यक्त करें। वरना कांग्रेस एजेंट का दाग लग जाएगा। ब्लैक मनी (Black Money) न आए तो न आए...आप नकारात्मक राय न बनाएं। सकारात्मक रहें...एक दिन तो आएगी...क्या पता 2019 तक आ जाए...    

  *यह खबर मुंबई मिरर में प्रकाशित हुई है। पूरी खबर इस लिंक पर है - http://www.mumbaimirror.com/mumbai/cover-story/Centre-clears-370-acre-forest-land-for-Adanis-Gondia-power-project/articleshow/44912873.cms

नोट - यह लेख नवभारत टाइम्स अखबार की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है, जहां मेरे अन्य लेख पढ़े जा सकते हैं और पाठकों की राय जानी जा सकती है। 

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