इस फ़ज़ीहत का ज़िम्मेदार कौन...क्या नरेंद्र मोदी के रणनीतिकार ?
किसान आंदोलन को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की इतनी फ़ज़ीहत कभी नहीं हुई, वह भी मोदी के कुछ सलाहकारों के बचकानेपन की वजह से। फ़ज़ीहत का सिलसिला अभी थमा नहीं है। भारत सरकार ने जवाब में कुछ नामी क्रिकेट खिलाड़ियों और बॉलिवुड के फ़िल्मी लोगों को उतारा लेकिन उसमें भी सरकारी रणनीति मात खा गई। हैरानी होती है कि मोदी के वो कौन से रणनीतिकार हैं जो रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग, मीना हैरिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की सलाह दे रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय पॉप सिंगर रिहाना (Rihanna) ने मंगलवार को किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया था। लेकिन बीजेपी आईटी सेल ने अपने तुरुप के इक्के विवादास्पद बॉलिवुड एक्ट्रेस कंगना रानौत को रिहाना के खिलाफ ट्वीट करवाकर इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच दे दिया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसान आंदोलन के समर्थन में कई हस्तियों ने ट्वीट किए।
रिहाना के समर्थन के जवाब में कंगना ने किसानों को आतंकवादी बताया और कहा कि वे किसान नहीं हैं, वे भारत को बांटना चाहते हैं। कंगना ने यह तक कह डाला कि इसका फायदा उठाकर चीन भारत पर कब्जा कर लेगा। कंगना के इस बयान पर पत्रकार अर्णब गोस्वामी, सुधीर चौधरी के अलावा किसी ने विश्वास नहीं किया।
दस करोड़ से ज़्यादा लोग रिहाना को ट्विटर पर फॉलो करते हैं, जबकि कंगना के फॉलोवर्स की संख्या तीस लाख है। जाहिर है कि कंगना से रिहाना की टक्कर कराने के बाद बीजेपी आईटी सेल का अनुमान था कि मामला फिफ्टी-फिफ्टी पर छूटेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
पर्यावरण के नोबल पुरस्कार से सम्मानित ग्रेटा थनबर्ग और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस ने बुधवार सुबह अपनी अपनी ट्वीट से हलचल मचा दी। दोनों ने किसान आंदोलन का फोटो ट्वीट के साथ लगाते हुए कहा कि हमें इनका (किसानों का) समर्थन करना चाहिए। बीजेपी आईटी सेल और उसके तमाम आनलाइन मीडिया पोर्टलों ने ग्रेटा को छोटी बच्ची बताते हुए उसके ट्वीट को महत्वहीन करने की कोशिश की। बीजेपी समर्थक मीडिया पोर्टलों ने ग्रेटा के नाम के आगे से नोबल पुरस्कार विजेता बहुत सफाई से हटा दिया। लेकिन उनकी यह चाल भी नाकाम हो गई।
रिहाना और ग्रेटा के जवाब में कंगना रानौत को उतारने के बाद भी जब भारत सरकार मुक़ाबला नहीं कर पाई तो महान क्रिकेटर कहलाने वाले सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले, विराट कोहली एंड कंपनी के अलावा महान गायिका लता मंगेशकर, अक्षय कुमार, डायरेक्टर करण जौहर समेत कई छोटे बड़े फ़िल्मी लोग मैदान में उतरे। इन लोगों ने रिहाना और ग्रेटा के बयानों को भारत के आंतरिक मामलों में दखल कहकर और इस मसले को आपसी बातचीत के ज़रिए सुलझाने की वकालत की।
हैरानी तब हुई जब हरियाणा की सीनियर आईएएस अधिकारी सुमिता मिश्रा समेत कई नौकरशाहों ने भारत सरकार के बयान को ट्वीट करना और मोदी सरकार की हाँ में हाँ मिलाना शुरू कर दिया। बहरहाल, इन सब की मजबूरियाँ समझी जा सकती हैं। जब आप दूध के धुले न हों तो हर किसी की फ़ाइल आड़े वक़्त में काम के लिए गृह मंत्रालय में तैयार कराकर रखी जाती है। सचिन तेंदुलकर की अय्याशी के क़िस्से तो फ़ौरन ही सोशल मीडिया में तैरना शुरू हो गए। क्रिकेट से करोड़ों कमाने वाले, मैच फ़िक्स कराने वाले क्रिकेटर किस मुँह से आदर्शवादी बातें करते हैं, यह अब छिपी बात नहीं है।
अमेरिका में जब वहाँ जॉर्ज फ्लायड की हत्या मात्र ब्लैक होने की वजह से की गई तो भारत में तमाम लोगों के मानवाधिकार जाग गए थे, जो ठीक भी थे। लेकिन अगर कुछ विदेशी भारतीय किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं तो यह भारत के आंतरिक मामलों में कैसे हस्तक्षेप हो गया ? विदेश से मिले हर समर्थन को देशद्रोही, खालिस्तानी, पाकिस्तानी बता देने से किसान आंदोलन को नहीं तोड़ा जा सकता। रिहाना को मुसलमान बताकर बीजेपी आईटी सेल को क्या मिला? मोदी के रणनीतिकारों को मालूम होना चाहिए कि आज की युवा पीढ़ी किसी गायक-गायिका का मज़हब नहीं तलाशती। अगर ऐसा न होता तो भारत की मैथिली ठाकुर पाकिस्तान में मशहूर न होती।
पूर्व पोर्नग्राफिक एक्ट्रेस, लेबनानी-अमेरिकी मीडिया हस्ती और वेबकैम मॉडल मिया खलीफा ने भी किसान आंदोलन का समर्थन किया था। बीजेपी आईटी सेल से जब कुछ नहीं बन पड़ा तो वे मिया खलीफा को सेक्स वर्कर, पोर्न स्टार जैसी काल्पनिक उपाधियों से सुशोभित कर बदनाम करने की कोशिश में जुट गए। लेकिन इससे हासिल क्या हुआ? आपने एफआईआर की धमकी दी, आपने ख़तरनाक विदेशी साजिश बताया लेकिन किसी भी एक्टिविस्ट ने अपना बयान वापस नहीं लिया। ग्रेटा और मीना ने तो जवाबी बयान दिया कि वे ऐसी धमकियों से चुप नहीं कराई जा सकतीं।
इंदिरा गांधी के समय में जब वह विपक्ष पर हमलावर होती थीं तो सीआईए से ख़तरा बताती थीं। मोदी राज में हर समस्या की जड़ में आईएसआई, पाकिस्तान और अब खालिस्तान है। लेकिन मोदी सरकार मात्र इतनी सी बात नहीं समझ रही कि किसान आंदोलन को वह किसी भी तरह के हथियार से काट नहीं पाएगी।
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