संदेश

जिंदगी की दास्तां कैसे लिखें

चित्र
इधर कई दिनों से लिखने की बजाय मैं पढ़ रहा था। खासकर गजलें और कविताएं। यहीं आपके तमाम ब्लॉगों पर। मैं मानता हूं कि तमाम बड़े-बड़े लेख वह काम नहीं कर पाते जो किसी शायर या कवि की चार लाइनें कर देती हैं। समसामयिक विषयों पर कलम चलाने वाले कृपया मेरी इस बात से नाराज न हों। क्योंकि इससे उनकी लेखनी का महत्व कम नहीं हो जाता। लेकिन यकीन मानिए की गजल या कविता से आप सीधे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। आपको लगता है कि यह शायर की यह बात आपकी गजल को कहीं छू गई। गजल और कविता के ब्लॉगों की सर्फिंग के दौरान एक बात जो मैंने खासतौर से महसूस की कि शायरों की एक बड़ी जमात मौजूदा दौर के हालात पर बेबाकी से अपनी कलम चला रही लेकिन उसकी तुलना में हिंदी में यह काम जरा कम ही हो रहा है। मैं यहां हास्य के नाम पर मंच पर फूहड़ कविताई करने वालों की बात नहीं कर रहा जो दिहाड़ी के हिसाब से किसी भी विषय पर कुछ भी लिख मारते हैं। उम्मीद है कि इससे अगली पोस्ट में मैं दो ऐसे शायरों से आपका परिचय कराऊं जो बेहद खामोशी से अपने रचना संसार में लगे हुए हैं। हाल ही में इनकी दो पुस्तकों का विमोचन भी हुआ, जिसके बहाने मुझे इनके बारे में और ज

कुछ तो शर्म करो

चित्र
अब वह दिन दूर नहीं जब आप किसी राजनीतिक पार्टी से अगर उसकी सभा या रैली में सवाल करेंगे तो उस पार्टी के वफादार कार्यकर्ता आपको पीटने से परहेज करेंगे। आपकी जुर्रत को राजनीतिक दल अब बर्दाश्त नहीं करेंगे। वह राजनीतिक पार्टी (Political parties)जो खुद को सत्ता के बिल्कुल नजदीक समझ रही है और जिसने अपना पीएम इन वेटिंग भी बहुत पहले घोषित कर दिया है, यह उसी पार्टी का हाल है जो अपने खिलाफ होने वाले प्रतिकूल सवालों को बर्दाश्त करने का माद्दा खो चुकी है। आप सही समझे यहां बात बीजेपी की ही हो रही है। राजधानी में इधर दो घटनाएं हुईं जो अखबारों में बहुत मामूली जगह ही पा सकीं लेकिन दोनों घटनाएं अपने आप में बहुत गंभीर हैं। दिल्ली के पुष्प विहार इलाके में शनिवार शाम को बीजेपी की एक सभा हुई। इस इलाके से बीजेपी प्रत्याशी सुरेश पहलवान चुनाव लड़ रहे हैं। उस सभा को पुष्प विहार इलाके के लोग बड़े ही चाव से सुन रहे थे। तब तक सब गनीमत रहा, जब तक बीजेपी नेता स्थानीय मुद्दों बीआरटी कॉरिडोर, भ्रष्टाचार, महंगाई, बढ़ते अपराध को लेकर शीला दीक्षित सरकार को कोसते रहे। लेकिन इसके बाद इन लोगों ने सभा में मुसलमानों को देश वि

एक छात्र का मुझसे बारीक सवाल

चित्र
भारतीय लोकतंत्र में क्या दिनों-दिन गिरावट आ रही है? यह सवाल मुझसे 12वीं क्लास के एक छात्र ने आज उस वक्त किया, जब मैं किसी सिलसिले में उसके स्कूल गया था और एक टीचर ने मुझसे एक पत्रकार के रूप में उस छात्र से परिचय करा दिया। फिर उसने अचानक अमेरिका का उदाहरण दे डाला कि तमाम अमेरिकी दादागीरी के बावजूद हर राष्ट्रपति चुनाव में वहां की जनता अमेरिकी लोकतंत्र को और मजबूत करती हुई दिखाई देती है जबकि भारत में हर चुनाव के साथ इसमें गिरावट देखी जा रही है। मैंने उस छात्र को विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश को लेकर इस तरह की राय न बनाने की सलाह दी और कुछ बताना चाहा। लेकिन उसके अपने अकाट्य तर्क थे। उसका कहना था कि आप लोग कब तक झूठ बोलते रहेंगे। उसने कहा कि ऐसा कोई चुनाव याद दिलाइए जब भारत में जाति और धर्म के नाम पर वोट न मांगे गए हों? क्या यहां यह संभव है? सच यह है कि इस देश की सत्ता जिन लोगों के हाथों में होनी चाहिए, वे हाशिए पर हैं। भारत एक गरीब देश है लेकिन कोई गरीब, दलित या मुसलमान इस देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सका? मैंने उसे एपीजे अब्दुल कलाम, हामिद अंसारी (मौजूदा उपराष्ट्रपति), डा. जाकिर हुसैन

एक शिकायत चिट्ठाजगत वालों से

चित्र
यह क्या है मेरे भाई? मैंने नीचे की पोस्ट हिंदी अंग्रेजी में मिलाकर की लेकिन पिंग करने पर आपने उसे अपने ताजा चिट्ठों की सूची में नहीं दिखाया। माना कि आप सिर्फ हिंदी के लिए ही समर्पित हैं लेकिन इस तरह के चिट्ठों को स्वीकार करने में आपका स्टैंडर्ड तो नहीं गिरेगा? अब तो समय हिंदी अंग्रेजी के मिलजुल कर (देखो भाई लोग गाली मत देने लगना, हमें भी हिंदी से उतना ही प्यार है जितना आपको है) चलने का है। दरअसल, इस तरह का सहारा लेने की जरूरत कभी-कभी तब पड़ती है जब आप अपना नजरिया किसी खास मुल्क के लोगों को पढ़ाना चाहते हैं। चूंकि मेरा ब्लॉग अमेरिका में काफी खोला और पढ़ा जा रहा है, इसलिए मैंने यह कदम उठाया। अन्यथा अपना इरादा खालिस हिंदी में ही बात करने का रहता है। बहरहाल, यह गलती अगर मेरी ही है तो भी चिट्ठाजगत वालों को इस पर विचार तो करना चाहिए कि क्या यह संभव है। अगर यह संभव नहीं है तो कुछ और उपाय सोचा जाएगा। मैंने यह पोस्ट यहां सार्वजनिक इसलिए भी की शायद किसी और को भी इससे दो-चार होना पड़ा हो। अन्यथा यह बात तो मैं चिट्ठा जगत को ई-मेल के जरिए लिख भेजता। बहरहाल, अब गेंद उनके पाले में है।