मुशर्रफ और भारतीय मुसलमान
भारतीय मीडिया की यह विडंबना है कि अगर कोई मीडिया हाउस अच्छा काम करता है तो दूसरा उसे दिखाने या छापने के लिए तैयार नहीं होता। हिंदी मीडिया में तो यह स्थिति तो और भी बदतर है। अभी इंडिया टुडे का एक कॉनक्लेव हुआ, जिसमें पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व मिलिट्री डिक्टेटर परवेज मुशर्फ भी आए। उस कॉनक्लेव में जो कुछ हुआ, उसकी रिपोर्टिंग अधिकांश मीडिया हाउसों ने नहीं की। खैर वह तो अलग मुद्दा है लेकिन मुशर्रफ साहब ने जो कुछ कहा और जो उनको जवाब मिला, वह सभी को जानना चाहिए।
पाकिस्तान में तो लोकतंत्र कहीं गुमशुदा बच्चे की तरह हो गया है, इसलिए वहां के नेता अक्सर भारत में आकर अपना गला साफ कर जाते हैं। मुशर्रफ ने अपने भाषण में भारत और पाकिस्तान की तुलना मिलिट्री रेकॉर्ड, आईएसआई और रॉ (रिसर्च एनॉलिसिस विंग, भारत) के मामले में कर डाली। दोनों ही देशों की मिलिट्री को कोसा। दोनों देशों में सुरसा की मुंह की तरफ फैल रहे आतंकवाद पर भी घड़ियाली आंसू बहाए। यहां तक सब ठीक था लेकिन जब उन्होंने भारतीय मुसलमानों की तुलना पाकिस्तान के मुसलमानों से की तो गजब ही हो गया। मेरा और मेरे जैसे तमाम लोगों को इसका अनुमान नहीं था। लेकिन राज्यसभा सदस्य और जमात-ए-उलमाए हिंद के नेता महमूद मदनी उठकर खड़े हो गए और उन्होंने मुशर्रफ की जमकर खबर ली। मुशर्रफ ने दरअसल यह कहा था कि भारतीय मुसलमानों को अलग-थलग कर दिया गया है, यहां वे सुरक्षित नहीं हैं। उनके मुकाबले पाकिस्तान में मुसलमान ज्यादा महफूज और खुशहाल हैं। आए दिन दंगे-फसाद होते हैं। महमूद मदनी ने मुशर्रफ को लगभग लताड़ते हुए कहा कि उन्हें यह बात कहने का हक कम से कम भारत की सरजमीं पर नहीं है। उन्हें पाकिस्तान की राजनीति की शुरुआत यहां से नहीं करनी चाहिए। यहां के मुसलमानों को मुशर्रफ जैसों की हमदर्दी की जरूरत नहीं है। कृपया करके वह भारतीय मुसलमानों को बांटने का काम न करें। अगर उनका कोई मसला होगा तो वे यहीं पर आपस में सुलझा लेंगे। वैसे हम भी जानते हैं कि पाकिस्तान में क्या हालात हैं।
यह सब सुनकर मुशर्रफ पर घड़ों पानी पड़ गया और वे बहुत देर तक सामान्य नहीं रह पाए। मुशर्रफ ने यह सब क्यों कहा और मदनी ने उस पर जो पलटवार किया, उसे सही परिपेक्ष्य में समझने की जरूरत है।
दरअसल, पाकिस्तान में वही नेता ज्यादा पॉपुलर माना जाता है जो भारतीय मुसलमानों की तंगहाली को बयान करे और उसे मुद्दा बनाए। क्योंकि पाकिस्तान के लोग अब भी अपने आप को यहां के मुसलमानों से जुड़ा पाते हैं लेकिन भारतीय मीडिय़ा के एक वर्ग ने जिस तरह से तस्वीर का एक ही पहलू दिखाने का बीड़ा उठा रखा है तो पाकिस्तान में भी वहां का मीडिया ऐसी ही हरकत कर रहा है। भारतीय मुसलमानों से जुड़ी किसी भी घटना को वहां बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने की आदत बन गई है। पिछले दिनों मुंबई में जब आतंकवादी हमला हुआ और भारत ने जिस तरह पाकिस्तान को कूटनीतिक मंच पर नंगा किया, उसके उलट पाकिस्तानी मीडिया उसे इस तरह पेश करता रहा कि सारी साजिश भारत में रची गई। अभी जब श्रीलंका के क्रिकेट खिलाड़ियों पर पाकिस्तान में हमला हुआ तो वहां के मीडिया ने भारत पर उंगली उठा दी। हालांकि बाद में पाकिस्तानी हुकूमत ने बयान देकर इसका खंडन किया। ...तो मुशर्रफ ने पाकिस्तान में लोकप्रियता हासिल करने के लिए भारत में आकर इस तरह का बयान देने की कोशिश की। मुशर्रफ को असल में उम्मीद यह है कि बहुत जल्द पाकिस्तान में सेना फिर से सत्ता पर कब्जा करेगी और तब उनकी भूमिका शुरू होगी। उनके द्वारा पाकिस्तानी सेना की बागडोर जिस व्यक्ति के हाथ में सौंपी गई है, वह नमक का हक अदा करने के लिए इतना ख्याल तो मुशर्रफ का रखेगा ही। इसलिए मुशर्रफ ने इस मौके को गंवाया नहीं।
मदनी ने जो कुछ कहा, वह भी सोलह आने सच है।
भारतीय मुसलमानों की अगर कोई समस्या है तो वे यहीं पर सुलझा लेंगे। यह ठीक है कि गुजरात जैसे नरसंहार को लेकर लोगों को एक मौका मिला है और वे भारतीय मुसलमानों को जब-तब उसकी याद दिलाते रहते हैं लेकिन क्या गुजरात को ही रोते रहने से सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। वहां की घटनाओं के लिए बीजेपी नेताओं को जो रक्त रंजित चेहरा इतिहास में दर्ज हो चुका है, वह मिटेगा नहीं। यह भी हो सकता है कि कल को बीजेपी को केंद्र में सत्ता की बागडोर मिल जाए तो भी वे गुजरात की घटनाओं के मामले में इतिहास का पुनर्लेखन नहीं कर पाएंगे। यह नामुमकिन है। लेकिन इसके लिए भारतीय मुसलमानों को किसी मुशर्रफ जैसे हमदर्द की जरूरत नहीं है।
टिप्पणियाँ
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सही कहा आपने। जब तक हिंदुस्तान को गाली न दे वहां का सियासतदां हुकूमत नहीं कर सकता। पर यह भी एक अजीब बात है- जबकि वहां का नागरिक हिंदुस्तान के प्रति कोई बैर नहीं रखता और बहुत से तो अपने सीने में यहां की पुरानी यादें संजो कर रखते है।