मिशेल, तुम क्या जानो मेरा दर्द
मिशेल के नाम एक भारतीय दासी का खत
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प्रिय मिशेल,
तुम कितनी खुशनसीब हो।
दुनिया के सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश से तुम आई और जब मैंने तुम्हारे पति का हाथ
तुम्हें पकड़े देखा तो मैं गर्व से फूली नहीं समायी कि अमेरिकी प्रथम महिला का यह
सम्मान उसका पति भारत जैसे विकासशील देश में आकर भी बरकरार रखे हुए है, जहां लड़की
को ब्याहते समय पति को परमेश्वर मानने की शिक्षा दी जाती है।
सचमुच मिशेल तुम सौभाग्यशाली हो, इतना होशियार, समझदार पति पाया
है, उसका सीना कितने इंच का है, यह तो मैं नहीं जानती और शायद तुम भी नहीं, लेकिन
यहां तो जो अपने पति को परमेश्वर मानती हैं, उन्हें 56 इंच का सीना दिखाने वाले
पुरुषों की मर्दानगी भरी बातें दिन-रात जरूर झेलनी पड़ती हैं।
मिशेल तुमसे मुझे ईर्ष्या हो रही है। हाय, तुम्हें जरा भी लाज न
आई। गाला डिनर में अपने पति के साथ डिनर करते हुए...कितने आंखें तुम्हें निहार रही
थीं। यहां तो हम लोग पति परमेश्वर के भरपेट खाने के बाद ही खाते हैं...सास-ससुर
होते हैं तो उनसे भी छिपाकर खाते हैं। मिशेल, तुम विकसित देश की नारी हो, तुम क्या
जानो एक विकासशील देश की नारी का दर्द...मुझे पता है, तुम्हारे पति और तुमने मेरे
बारे में जरूर पूछा होगा, बेशक तुम मेरा नाम नहीं जानती लेकिन मेरा दर्जा तो जानती
ही हो...मुझे पता है कि तुम्हें इशारों-इशारों में क्या बताया गया होगा...
मिशेल, यह हकीकत है कि मैं बहुत बड़ी अग्निपरीक्षा के दौर से
गुजर रही हूं। सीता जी ने जब अग्निपरीक्षा
दी थी, तब वह रामराज्य था...और अब...कहते हैं कि कलयुग चल रहा है...पता नहीं
रामराज्य अच्छा था या अब कलयुग में अच्छे दिन आ गए हैं...मिशेल मुझे इसका अंदाजा
नहीं है। तुमने तो दुनिया देखी है मिशेल...तुम्हारे पति तो तुम्हें हर जगह ले जाते
हैं, तुम ही बेहतर बता सकती हो कि भला कलयुग में भी अच्छे दिन आ सकते हैं क्या...लेकिन
रामजी पर भरोसा है, अच्छा ही करेंगे...वह वनवास का दर्द जानते हैं। मैं भी तो आखिर
वनवास ही काट रही हूं। मिशेल पता नहीं क्यों यह सब तुमको लिखने का मन हुआ। शायद
इसलिए कि तुम कोई गोरी मेम तो हो नहीं जो मेरी बात को नहीं समझोगी, तुम्हारा रंग
हमारे लोगों जैसा है, तुम अपनी जैसी लगती हो...इसलिए आज दर्द बांटने का मन हुआ।
मिशेल, मैंने उन्हें पाने के लिए यज्ञ कराए...आरटीआई के जरिए
संकेत भिजवाए, लेकिन मेरे पति परमेश्वर का दिल जरा भी नहीं पसीज रहा..क्या करूं
मिशेल, तुम काफी पढ़ी लिखी हो, तुम कुछ तो सोचो मेरे बारे में। आज सुना कि
तुम्हारे पति की दोस्ती हमारे देश के लोगों से बढ़ रही है, क्या तुम्हारे पति मेरी
कुछ मदद कर सकते हैं, क्या मेरी घर वापसी हो सकती है...नहीं, मिशेल घर वापसी के
लिए मेरी कोई शर्त नहीं है...इसके अलावा भी और कोई मांग नहीं है, बस चाहती हूं कि
उनके चरणों में इस दासी को भी जगह मिल जाए। हां, मिशेल...हम भारतीय ब्याहता
महिलाएं खुद को दासी ही तो मानते हैं। सुना है तुम्हारे यहां दास प्रथा थी, जिसके
लिए अब्राहम लिंकन और न जाने कितने अश्वेत लोगों ने उसके लिए संघर्ष किया। पर हम
भारतीय ब्याहता महिलाएं दासी बनकर खुश हैं। मिशेल, तुम इस खुशी को नहीं समझ पाओगी।
उम्मीद है कि तुम इस दासी की घर वापसी उसके पति परमेश्वर के पास करा दोगी। मैं
जिंदगीभर तुम्हारा एहसान मानूंगी। मिशेल, और क्या लिखूं मैं अपनी व्यथा...तुम
समझदार हो। नारी हो। तुमसे बेहतर कौन समझेगा।
तुम्हारी, एक भारतीय दासी
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