अरे, वो बदनसीब इंसान...
...गोया कि आप नसीब से प्रधान सेवक बने हैं यानी आपके भाग्य में लिखा
था कि आप एक दिन प्रधान सेवक बनेंगे जरूर ।...तो उस कर्म का क्या होगा जो जिसके
लिए किसी भाग्य की जरूरत नहीं पड़ती। जिसका ज्ञान अब स्कूलों में पढ़ाने की बात आपके
एक राज्य का प्रधान चौकीदार कर रहा है। कह रहा है गीता दर्शन पढ़वाउंगा स्कूलों
में। वो गीता दर्शन जिसमें भाग्य नहीं कर्म की बात कही गई है।
...सचमुच बहुत कमजर्फ और नामूकल इंसान है वो अदना सा मामूली आदमी जो
बदनसीबी के साथ आया है। बदनसीबी उसके साथ-साथ चल रही है और प्रधानसेवक और उसकी
सेना ऐसे बदनसीबों से घबराई हुई है। न उगलते बन रहा है और निगलते बन रहा है। सचमुच
ये बदनसीब लोग बहुत हठधर्मी होते हैं...नतीजा बेशक सिफर रहे लेकिन नानी याद दिला
देते हैं।
...देखो-देखो उस शख्स ने फेसबुक पर क्या चुटकी ली है, लिखता है 10 साल
बाद एक बदनसीब देश का प्रधान सेवक। कुछ इस तरह कहेगा कि ...मैं इस बदनसीब देश का
प्रधान सेवक गैर सेकुलर संविधान की शपथ लेकर कहता हूं कि वाकई इस देश के लोग
बदनसीब थे जिनका मैं प्रधान सेवक रहा। ये लोग इस काबिल थे ही नहीं कि एक नसीब वाले
को बतौर प्रधान सेवक झेल सकें।
प्रधानसेवक का सीधा संवाद...आप से
...मित्रो, मुझे एक नसीब वाली पार्टी ने इस दंगल में उलझा दिया है।
समझ नहीं आ रहा कि इस दंगल को मैं कैसे फतह करूं। इस बदनसीब देश में है कोई जो
मेरी मदद को आए। मेरे प्रधान सेनापति ने जब विकास की वेदी पर उसे कुर्बानी के लिए
भेजा तो उसकी मंशा साफ थी। वो तो यही चाहता था कि हारे तो विकास की वेदी पर...जीते
तो नसीब वाले की वजह से। पर, मुझे क्या पता था कि बदनसीब देश वाले चालाकी से मुझे
इस दंगल में उलझा देंगे। कोसता हूं उस घड़ी को जब मैंने प्रधान सेनापति की सारी
बातें मान ली थीं।
...मेरे एक-एक शब्द पर लोग ध्यान दे रहे हैं। मफलरमैन और मैडम कुछ भी
कहकर निकल जाएं, उनको कोई कुछ नहीं कहता। अब देखिए जब मैंने कहा कि पेट्रोल औऱ
डीजल के दाम प्रधानसेवक के आने के बाद कम हुए तो इसमें मैंने गलत क्या
कहा...सोचिए...सोचिए...आखिर मैंने कुछ तो आप लोगों का फायदा कराया। अगर मैं यह
फायदा भी न देता तो आप लोग क्या कर लेते लेकिन इस मुद्दे पर ...नी...नी... जी की
पूरी सहमति के बाद ही फैसला लिया गया और अब हर महीने आप लोगों की जेब में 1500
रुपये बच रहे हैं या नहीं। यह उन्हीं ...नी...नी...जी की कृपा है, मैं तो निमित्त
मात्र हूं।
...मुझे पता है देर सवेर यह मफलरवाला और तथाकथित बुद्धिजीवी मुझे
क्रोनी कैप्टलिजम के नाम पर घेरेंगे। कमबख्त पता नहीं कहां से यह शख्स इस शब्द को
तलाशकर लाया है कि उसी को गाए जा रहा है। पहले जब वो भले आदमी प्रधानसेवक थे, तब
भी इसने इस शब्द का इस्तेमाल किया था और पूरे देश ने मान लिया था कि वाकई भ्रष्ट
लोग ही सरकार चला रहे हैं और अब यह शख्स पब्लिक के दिमाग में यह बैठाने में जुटा
है कि यह सरकार भी ...नी...नी...जी के कब्जे में है।
...वह शख्स कहता है कि सरकार ढाई लोग चला रहे हैं। चलो मान लेते
हैं...यह भी एक तो मैं हुआ, एक मेरा मुंह लगा प्रधान सेनापति हुआ लेकिन भाई आधे
में कौन है...यह अंदाजा मैं नहीं लगा पा रहा हूं। मैं साफ किए देता हूं कि इसमें
वह यूपी वाला भैया नहीं है, उसको मैंने ठीक से चुप करा दिया है, एक वो साड़ी वाली
महिला, उसको तो उसके विभाग के फैसलों का पता नहीं होता....और उन बुढ्ढों को तो मैं
पहले ही चुप करा चुका हूं तो आखिर आधे में कौन लोग हैं...कहीं ये ...नी....नी...जी
की तरफ तो इशारा नहीं है...
....मैं इसका पता लगाता हूं, तब तक आप लोग धैर्य बनाए रखें और प्रधान
सेवक के संवाद को आप तक पहुंचाने के लिए मेरे इस चाटुकार पत्रकार को भी झेलते रहें।
(पाठको...यह संवाद उन पाठकों के लिए है जो राजनीतिक घटनाक्रम से पूरी
तरह वाकिफ हैं। जिन्हें इसका संदर्भ नहीं समझ आया हो, वो टीवी देखने की बजाय अखबार
पढ़ा करें और सारी राजनीति को लेकर जागरूक बनें। देश में एक वैचारिक संकट लाया जा
चुका है। मीडिया जब अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है तो ऐसे ही मंचों पर अब बातचीत
कुछ इसी अंदाज में हुआ करेगी...शर्त इतनी है कि आप लोग जागरूक रहें। ओछी भावनाओं
में बहने का वक्त नहीं है...जय भारत )
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