आजतक बहुत घटिया चैनल है...क्या सचमुच
यह कैसे तय होगा कि कौन सा न्यूज चैनल सबसे अच्छा है और फलां सबसे
खराब...यह कैसे तय होगा कि कौन से खबरिया चैनल का पत्रकार सबसे अच्छा है और फलां
सबसे खराब...क्या किसी खबरिया चैनल को घटिया कह देने से आप मेरी बात मान लेंगे...
केंद्रीय मानव संसाधन (एचआरडी) मंत्री स्मृति इरानी को लेकर आजतक चैनल
ने इसी सोमवार को एक शो दिखाया जिसका शीर्षक था – स्मृति की परीक्षा। इस शो में
रिपोर्टर के सवाल औऱ बीजेपी समर्थकों द्वारा रिपोर्टर के खिलाफ नारेबाजी ने इस बहस
को फिर जन्म दे दिया है कि क्या टीवी न्यूज के पत्रकारों को अपने गिरेबान में
झांकने का वक्त आ गया है। उस शो में आजतक के रिपोर्टर अशोक सिंघल ने स्मृति से ऐसा
सवाल पूछा जो महिलाओं की गरिमा के खिलाफ था औऱ सीधे-सीधे स्मृति के चरित्र पर चोट
करता था। उनका सवाल था –
नरेंद्र मोदी ने सबसे कम उम्र की मंत्री बनाया आपको,
एचआरडी जैसा बड़ा पोर्टफोलियो दिया और डिग्री का भी विवाद है, आप ग्रैजुएट हैं या
अंडर ग्रैजुएट...लेकिन क्या खूबी लगी आपमें...क्या वजह थी...
बात इससे पहले आगे बढ़ाई जाए, उससे पहले साफ
कर दूं कि मैं किसी पार्टी या नेता विशेष का समर्थक नहीं हूं। मेरे मित्र जो मुझसे
पहले से वाकिफ हैं, इसे जानते हैं लेकिन ये लाइन इसलिए दोहरा रहा हूं कि जो पहली
बार पढ़ेंगे, उन्हें भी इसकी जानकारी होनी चाहिए।
...तो आपने अशोक सिंघल का सवाल पढ़ लिया
होगा, जो उन्होंने स्मृति इरानी से पूछा। वाकई यह सवाल आपत्तिजनक है। अगर आजतक और
उसका रिपोर्टर यही सवाल स्मृति से उनके फौरन मंत्री बनने के बाद पूछते तो शायद समझ
में आता कि उचित अवसर पर पूछा गया। लेकिन आज तक को एक साल बाद होश आया, ऐसा सवाल
करने का। लेकिन एक साल पहले बीजेपी सरकार बनने के वक्त तो इसी रिपोर्टर के हवाले
से आजतक पर खबर चल रही थी कि सिर्फ आजतक ही यह बता रहा है कि कौन-कौन मंत्री
बनेगा, किसको क्या मिलेगा। लेकिन ऐसी खबरों को नरेंद्र मोदी ने पटखनी दे दी और जो
चेहरे सामने आए, उसका अंदाजा मीडिया को भी नहीं था।
आजतक रिपोर्टर के बेतुके सवाल पर स्मृति ने
बहुत ही बचकाने ढंग से जवाब दिया। उन्होंने दर्शकों में बैठे अपने बीजेपी समर्थकों
को ललकारा और कहा कि वे इसे देखें...समर्थक मोदी-मोदी की धुन बजाकर चिल्लाने लगे।
रिपोर्टर और उनकी सहयोगी महिला रिपोर्टर वहां से दुम दबाकर निकल गए।
इस घटना के बाद फेसबुक और टिवटर पर समर्थकों
और विरोधियों की फौज निकल पड़ी और मामले को शालीनता की सीमा से आगे ले गए। आजतक
में कभी नौकरी करते थे। दीपक शर्मा वहां से नौकरी छोड़ने के बाद खबरों का पोर्टल
इंडिया संवाद चला रहे हैं और नारा दे रहे हैं कि देश से भ्रष्टाचार हटाकर रहेंगे,
नई पत्रकारिता देंगे...वगैरह...वगैरह। दीपक ने अपनी फेसबुक वॉल पर स्मृति के खिलाफ
और सिंघल के समर्थन में लंबा-चौड़ा भाषण लिख मारा। हो सकता है, इसे उन्होंने अपने
न्यूज पोर्टल पर भी लगाया हो।
पहले, दीपक शर्मा के बारे में थोड़ा
जानिए...इस शख्स को आजतक वाले बहुत बड़ा खोजी पत्रकार और आतंकवाद व डी कंपनी (दाउद
इब्राहीम) का एक्सपर्ट बताते थे। आजतक ने इनके हवाले से बहुत लंबे समय तक डी कंपनी
पर कार्यक्रम दिखाकर अपनी टीआरपी बढ़ाई। यह शख्स रोजाना चिल्ला-चिल्लाकर दाऊद के
यहां-वहां छिपे होने की जानकारी देता था। दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल की कई फर्जी
कारगुजारियों को इस शख्स ने बढ़ाचढ़ाकर आजतक पर पेश किया...यह मेरा आरोप है कि ऐसे
कार्यक्रम एक समुदाय विशेष को बेइज्जत करने, नीचा दिखाने के लिए, बीजेपी को
संतुष्ट करने के लिए पेश किए जाते रहे...आजतक उन्हें दिखाता रहा। इस रिपोर्टर या
उस चैनल ने कभी सच्चाई जुटाने और तथ्यों की पड़ताल की कोशिश नहीं की।
...दीपक शर्मा की फेसबुक वॉल पर आजतक के
समर्थन में लिखे गए उनके भाषण या पोस्ट पर लोगों की जो प्रतिक्रिया आई, वह पढ़ने
योग्य है। तमाम खबरिया चैनलों के लिए यह खतरे की घंटी है कि अगर अब भी नहीं सुधरे
तो हालात बदतर होंगे।
यहां एक घटना का जिक्र जरूरी है। बीजेपी
शासित हरियाणा के फरीदाबाद जिले में दंगा हुआ। अटाली गांव के मुसलमान अपनी जान
बचाकर बल्लभगढ़ थाने में आ पहुंचे। देशभर का मीडिया इस घटना को कवर कर रहा है।
एनडीटीवी इंडिया के रवीश कुमार उस गांव में पहुंचे, थाने में पहुंचे और जो रिपोर्ट
पेश की, उसकी सोशल मीडिया पर इतनी तारीफ हुई और हो रही है कि उसे बताना विषय से
भटकना होगा। मैंने चैनल पर वह रिपोर्ट नहीं देखी थी लेकिन जब वह यूट्यूब पर आई तो देखने
के बाद मैं रवीश की काबलियत की तारीफ किए बिना न रह सका। हालांकि कुल मिलाकर रवीश
भारत के सबसे बेहतरीन टीवी पत्रकार हैं।...कहने का आशय यह है कि एक तरफ तो अशोक
सिंघल, दीपक शर्मा जैसों की पत्रकारिता है तो दूसरी तरफ रवीश कुमार की पत्रकारिता
है।
किसी चैनल की टीआरपी कैसे तय हो...मेरा मानना
है कि यह पब्लिक पर छोड़ देना चाहिए कि वह टीवी पत्रकारिता की कसौटी को कैसी
मापेगी न कि कोई तथाकथित कंपनी टीआरपी-टीआरपी का खेल खेलती और आप खुद को देश का
नंबर 1 चैनल बताते रहें।
कुछ टीवी चैनलों के मालिक हर तरह की
धंधेबाजी, सौदेबाजी करके जिस तरह चैनल चला रहे हैं और कभी-कभार पुरस्कार भी पा
जाते हैं...उन्होंने टीवी पत्रकारिता को दांव पर लगा दिया है।
इसे पढ़ने के बाद टीवी के तमाम पत्रकार यही
कहेंगे या नतीजा निकालेंगे कि चूंकि यूसुफ किरमानी प्रिंट जर्नलिज्म से हैं तो
उन्हें टीवी चैनल में कभी नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने अपना गुस्सा इस बहाने उतारा
है। लेकिन इस संबंध में मैं कोई सफाई नहीं देने वाला...भाई लोग कुछ भी मतलब और
मकसद निकालते रहें। मेरे कई मित्र और सहपाठी टीवी में हैं, लेकिन वे सभी टीवी की
मौजूदा एंकर जमात या तथाकथित टीवी जर्नलिस्ट स्टार्स की तरह नहीं हैं और न इतना
राग अलापते हैं। सुधरो...मित्रो सुधरो। यह प्रिंट बनाम टीवी पत्रकारिता की लड़ाई
नहीं है, यह जवाबदेही की लड़ाई है। मिशनरी पत्रकारिता मत करो, कर भी नहीं
पाओगे...लेकिन आत्मनिरीक्षण तो करो। गलती कहां हुई और आगे कैसे रोका जा सकता है...
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