गर्म हवा...
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनके जन्म दिन पर समपर्पित मेरी यह कविता, जिसे खास तौर पर मैंने आज ही
लिखी...
लिखी...
गर्म हवा...
बापू हम शर्मिंदा
हैं तेरे कातिल जिंदा हैं
पहनते हैं खादी,
जुमलेबाजी में उम्दा हैं
कहता है खुद को
अहिंसा का पुजारी
लेकिन जान ले रहा
इंसान की दुराचारी
बापू हम शर्मिंदा
हैं तेरे कातिल जिंदा हैं...
कितनी गर्म हवा चल
रही है अपने देश में
गली-गली हत्यारे घूम
रहे हैं साधू के वेश में
बापू हम शर्मिंदा
हैं तेरे कातिल जिंदा हैं...
कर्ज है सिर पर, बेड़ी
है किसान के पांव में
बड़े साहब ला रहे
हैं इंटरनेट, फेसबुक गांव में
बापू हम शर्मिंदा
हैं तेरे कातिल जिंदा हैं...
दाभालोकर, पनसारे
शहीद हो गए सच की राह में
अभी और आएंगे कई
मसीहा शहादत की चाह में
बापू हम शर्मिंदा
हैं तेरे कातिल जिंदा हैं...
राम-रहीम अब न बोले
तो कब बोलोगे, अब न निकले घरों से तो कब निकलोगे
मिटा दो खुद को हर
जुल्म के खिलाफ, वरना बाद में तो हाथ मलते रह जाओगे
बापू हम शर्मिंदा
हैं तेरे कातिल जिंदा हैं...
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