- यूसुफ किरमानी हिन्दू धर्म सचमुच बहुत लचीला और सहनशील है। यहाँ हिन्दू के साथ धर्म शब्द का इस्तेमाल जानबूझकर किया गया है। हालाँकि हिन्दू कोई धर्म नहीं है लेकिन भारत में हिन्दू की पहचान अब धर्म के रूप में ही होने लगी है। लेकिन हिन्दू धर्म से निकला कैलासा (Kailasa) तो बहुत ही अजब-गजब है। हिन्दू धर्म (Hindu Dharma) के लचीले होने की वजह से कैलासा का जन्म हुआ। कैलासा की कहानी दिलचस्प है। The Kailasa Story... बेंगलुरु या बंगलौर में एक बाबा नित्यानंद था (थे)। क़रीब एक दर्जन लड़कियों ने रेप की शिकायत कर दी। बाबा नित्यानंद भारत छोड़कर भाग निकला। उसने कहीं एक टापू ख़रीदा है जिसका नाम यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ कैलासा है। यानी यूएसके। कुछ कुछ अमेरिका जैसी फ़ीलिंग वाला देश। यह टापू इक्वाडोर के पास कहीं बताया जा रहा है। कैलासा की नागरिकता के लिए आवेदन माँगे गए हैं। इसकी साइट पर अंग्रेज़ी में लिखा गया है कि भारत के सभी प्रताड़ित हिन्दू कैलासा नामक देश की नागरिकता ले सकते हैं। लेकिन शर्त है कि आप प्रताड़ित हिन्दू हों। जो अघोषित नियम है, उसके मुताबिक़ नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या जैसी बैकग्राउंड और
Mafia Don Atiq Ahmed and his brother Ashraf live murder on camera in Allahabad - यूसुफ किरमानी अतीक और अशरफ़ की हत्या करने वालों के नाम लवलेश तिवारी, सनी सिंह और अरूण मौर्य हैं। नाम फिर से पढ़िए। नाम में कुछ नहीं रखा है। जो है वो जाति है। इन तीनों अपराधियों में जाति नाम का ग़ज़ब का संतुलन है। नाम फिर से पढ़िए। यूपी सरकार ने अतीक-अशरफ़ हत्याकांड की जाँच के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक जाँच समिति बनाई है। इस समिति में कौन-कौन हैं- जांच समिति के अध्यक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस अरविंद कुमार त्रिपाठी, सदस्यों में रिटायर्ड जस्टिस बृजेश कुमार सोनी और पूर्व डीजीपी सुबेश कुमार सिंह हैं। जाँच समिति के तीनों नाम फिर से पढ़िए। फिर हत्या करने वाले तीनों आरोपियों के नाम पढ़िए ...और फिर उन्हें मिलाकर पढ़िए। जाँच रिपोर्ट का सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि वो क्या होगी। जातिवाद सत्य है। धार्मिक नारे सत्य हैं। वैसे, यह लेख अपराधियों या जाँच समिति के लोगों की जाति पर नहीं है। यह लेख अतीक पर है और उस सिस्टम पर है, जिसमें अतीक जैसे मोहरे तैयार होते हैं। अतीक-अशरफ़ की हत्या का जिन तीनों पर आरो
दुनिया में अलग-अलग तरह के युद्ध या संघर्ष हो रहे हैं। गाजा से लेकर भारत तक परिस्थितियां बस अलग-अलग हैं। अगर कहीं संवैधानिक संस्थाएं नष्ट हो रही हैं तो उन्हें बचाने का संघर्ष अलग होगा। लेकिन फिलहाल गाजा के संघर्ष पर बात हो रही है। अभी तक वहां 18,200 फिलिस्तीनी नागरिक मारे गए हैं, जिनमें आठ हजार से ज्यादा तो बच्चे और महिलाएं हैं। यहां तक कि वहां कवि, लेखक, पत्रकार चुन-चुन कर मारे जा रहे हैं। यूसुफ किरमानी का यह लेख एक ऐसे ही कवि पर केंद्रित है। जिसके बारे में दुनिया को जानना जरूरी है। - यूसुफ किरमानी इजराइल-हमास युद्ध ( Israel-Hamas War) में गाजा का हाल आप पढ़ रहे होंगे। क्या आपकी नजर से रिफत अलारेर (Refaat Alareer) नाम गुज़रा है ? रिफत अलारेर लोकप्रिय फिलिस्तीनी कवि थे जो इजराइल-हमास युद्ध में गाजा में गुरुवार 6 दिसंबर 2023 को मारे गए। मैं यह लेख आपके लिए उस घटना के कई दिनों बाद लिख पा रहा हूं। गाजा में अब हर दिन मौतें हो रही हैं और शेष दुनिया के लिए वो सामान्य मौतें हो गई हैं। दुनिया के शेष हिस्से के लिए जैसे गाजा की मौतों का कोई अर्थ ही न हो। रिफत के एक शब्द की वजह से
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