बापू...तिरंगे की आड़ में
...बापू तुम भूले नहीं होगे वह 30 जनवरी ...आज का ही दिन ...जब तुमको एक मानसिकता ने गोलियों से छलनी किया था...
...बापू तुम्हें रंज भी होगा...उस मानसिकता ने अब असंख्य गोडसे पैदा कर दिए हैं...
...बापू गोडसे की संतानें तुम्हारी अहिंसा से ज़्यादा ताक़तवर हो गई हैं...वह तिरंगा लेकर हर कृत्य कर रहे हैं... वो रोज़ाना उस मानसिकता का क़त्ल कर रहे जो तुम छोड़कर गए थे...
...बापू गोडसे की संतानों के लिए बेरोज़गारी, भुखमरी, ग़रीबी, नस्लीय हिंसा, अल्पसंख्यकों का नरसंहार, आदिवासियों का दमन, कॉरपोरेट की लूट, छुआछूत, दलित उत्पीड़न आदि कोई मुद्दे नहीं हैं।
...और बापू क्या तुम राष्ट्रभक्त न थे। ...गोडसे की संतानें जो फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद लेकर आईं हैं क्या हम उसे मान लें...उनका हर मुद्दा इसी पर शुरू और इसी पर खत्म हो जाता है।
...बापू यह देश भूल गया कि अंग्रेज़ों को भगाने के बाद दूसरी लड़ाई अंग्रेज़ों के पिट्ठुओं से होनी थी...होनी थी उन असंख्य गोडसे से जो आज गली-गली एक अलग झंडा और डंडा लेकर घूम रहे हैं।
....बापू उन्होंने तिरंगे की आड़ ले रखी है। वह अपना हर जुर्म तिरंगे की आड़ में छिपा रहे हैं। ...बापू कभी कभी वह एक पशु लेकर भी आते हैं और उसकी सींग से वार करते हैं।...
...बापू तुमने तो उन्हें काफ़ी सहिष्णु बताया था...कल के भारत की तक़दीर बताया था...लेकिन बापू वे सब गुड़गोबर निकले...अपनी ही डाली को काट रहे...अपनों को ही मार रहे...
...बापू तुम यूसुफ़ के ज़िक्र पर फ़िक्र न करना...तुम बस वैष्णव जन गाते रहना...अभी समर शेष है...बचा है जो वो विशेष है...हम गोडसे से लड़ेंगे और जीतेंगे...तुम बस वैष्णव जन गाते रहना...
-यूसुफ़ किरमानी, 30 जनवरी, 2018
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