देश में दलालों की जुगलबंदी
भारतीय लोगों की दुनिया रिलायंस की मुट्ठी में कैद हो चुकी है...
देश की संसद में जो तमाशा चल रहा है, उसके लिए कहीं न कहीं जनता भी जिम्मेदार है। वरना मीडिया की औकात नहीं है कि वह आपको सही जानकारी न दे। यानी अगर आप लोग खबरों वाले चैनल देखना, न्यूज वेबसाइट पर जाना और कुछ अखबार पढ़ना बंद कर दें तो मीडिया ने भारत सरकार से दलाली की जो जुगलबंदी कर रखी है, वह बेनकाब हो जाएगी।
विपक्षी पार्टियां लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे रही हैं और स्पीकर सुमित्रा महाजन तरह-तरह के बहाने लेकर प्रस्ताव का रखा जाना रोक रही हैं। क्योंकि प्रस्ताव पर बहस होनी है, सभी दलों को बोलने का मौका मिलेगा, सरकार और भाजपा इससे भाग रहे हैं।
पिछले हफ्ते यह प्रस्ताव लाया गया था, तब संसद में होहल्ले का बहाना बनाया गया। सोमवार यानी कल खुद भाजपा ने जयललिता की पार्टी एआईडीएमके के साथ मिलकर हल्ला मचवा दिया। सुमित्रा महाजन को बहाना मिल गया। फिर से अविश्वास प्रस्ताव का रखा जाना रोक दिया गया...सोमवार को लोकसभा में जबरन मचाया जा रहा शोर इस बात की गवाही दे रहा था कि वह प्रायोजित शोर है और सिर्फ अविश्वास प्रस्ताव रोकने के लिए ऐसा किया जा रहा है।
किसी भी मीडिया ने सरकार की इस हरकत पर चर्चा करने की जरूरत नहीं समझी। लेकिन जनता भी तो वही चाहती है। जनता की जागरूकता की कमी की वजह से देश में ऐसा मीडिया तंत्र खड़ा हो गया है जो अंततः जनता के मूल अधिकारों के खिलाफ ही जा रहा है। जबकि मीडिया का पूरा मायाजाल सिर्फ और सिर्फ आपके टीवी देखने, अॉनलाइन खबरों को देखने और कुछ अखबार पढ़ने के दम पर खड़ा किया गया है। अगर आप अपनी यह आदत छोड़ दें तो मीडिया की औकात सामने आ जाएगी। लेकिन आप लोग ऐसा करने वाले नहीं हैं और यह मीडिया आने वाले समय में आपको और भी ज्यादा नियंत्रित करने वाला है। न आपको सही सूचनाएं मिलेंगी और न आप खबरों के पीछे चलने वाले खेल जान सकेंगे। कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया की मर्जी से आप न तो कुछ देख पाएंगे और न पढ़ पाएंगे।
रिलायंस का खेल देखो
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अंबानी खानदान ने आज रिलायंस बिग टीवी का अॉफर लॉन्च किया है। यह काफी उत्तेजक है। आपको रिलायंस सिर्फ 500 रुपये में पूरे साल डीटीएच (डायरेक्ट टू होम) के जरिए सारे चैनल दिखाएगा। शुरुआत में जो हजार या बारह सौ रुपये लिए जाएंगे वो भी आपको तीन साल बाद वापस मिल जाएंगे या एडजस्ट कर लिए जाएंगे। रिलायंस बिग टीवी छोटे अंबानी यानी अनिल अंबानी का है। बड़ा अंबानी यानी मुकेश अंबानी भी इस क्षेत्र में कूदने की तैयारी कर रहा है या फिर भाई की कंपनी को ही खरीद लेगा।
आप इस खेल को समझ पा रहे हैं या नहीं ...
चलिए समझते हैं। सारे चैनल को लगभग मुफ्त में मुकेश और अनिल मिलकर दिखाएंगे। सारे न्यूज चैनलों में दोनों भाइयों में से किसी न किसी के शेयर हैं। मुकेश करीब सौ से ज्यादा चैनलों के सीधे मालिक हैं। अब अगर किसी न्यूज चैनल को मार्केट में खुद को बने रहना है या चाहता है कि उसे देखा जाए तो उसे अंबानी बंधु में से किसी एक की छतरी के नीचे आना होगा। ...आप जिन कुछ चैनलों को बहुत अच्छा मानते हैं या बेहतर मानते हैं, उन तक में अंबानी बंधुओं के शेयर हैं। यह खबर पुरानी है, फिर भी याददाश्त में जिंदा रखने के लिए दोहरा देते हैं कि टीवी 18 ग्रुप को किस तरह मुकेश अंबानी ग्रुप ने खरीदा और रातोंरात 700 पत्रकारों की नौकरी चली गई। कई सारे चैनल मार्केट में जिंदा रहने के लिए रिलायंस से लोन तक ले लेते हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप जो बिड़ला घराने का इतना बड़ा साम्राज्य है। जिसे उनकी बेटी शोभना भरतिया चलाती हैं। इस ग्रुप तक में रिलायंस की हिस्सेदारी हो चुकी है।
इसका नतीजा यह निकलेगा कि टाटा स्काई, एयरटेल जैसे डीटीएच खत्म हो जाएंगे या फिर मार्केट में उनकी हिस्सेदारी कम हो जाएगी। जी न्यूज वालों का डिश टीवी में इतनी औकात नहीं कि वह रिलायंस से टकरा सके। रिलायंस से कोई भी टकरा नहीं पाएगा, कम से कम मौजूदा सरकार के रहते हुए।
रिलायंस जियो इंटरनेट डेटा सस्ता करके आपको 24 घंटे व्यस्त रखने का इंतजाम पहले ही कर चुका है। आप घर में हों या रास्ते में हों...बस हरदम रिलायंस द्वारा नियंत्रित कंटेंट के कब्जे में कब्जे में रहेंगे। जब शैतान किसी का यह हाल कर देता है तो जो वह चाहता है, आपको वही करना पड़ेगा। जो सूचना वह देगा, उसी पर आपको यकीन करना पड़ेगा। भारत में अब जो विदेशी कंपनी इस क्षेत्र में उतरेगी, वह भी बिना रिलायंस की मर्जी के कुछ नहीं कर सकेगी। भारतीय लोगों की दुनिया रिलायंस की मुट्ठी में कैद हो चुकी है।
क्या आपको यह सूचना मिली
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क्या आप लोगों को पता है कि अबकी बार आप लोगों ने जो सरकार चुनी थी, उसने संसद में हाल ही में फाइनैंस बिल चुपचाप पास करा लिया। एक भी राजनीतिक दल ने इसका विरोध नहीं किया। जब देश तीन लोकसभा चुनाव नतीजों की बहस में उलझा हुआ था, तभी इस हरकत को अंजाम दिया गया।
इस हरकत को बहुत घिनौने ढंग से अंजाम दिया गया। इस जानकारी को मैं गिरीश मालवीय जी की कलम से साझा कर रहा हूं...
फाइनैंस बिल द्वारा विदेशी अंशदान (नियमन) अधिनियम (एफसीआरए) 2010 में संशोधन किया गया है यह अधिनियम राजनीतिक दलों को विदेशी कंपनियों द्वारा मिले चंदे पर रोक लगाता है। वैसे तो भारत सरकार ने वित्त विधेयक 2016 के जरिए एफसीआरए में संशोधन कर राजनीतिक दलों के लिए विदेशी चंदा लेने को आसान बनाया था लेकिन अब ताजा संशोधन के बाद पार्टियों को 1976 से मिले विदेशी चंदे की जांच की कोई गुंजाइश नहीं रह जाएगी।
ध्यान दीजिएगा 1976 से , यानी इससे बीते 42 वर्ष में राजनीतिक दलों को हुई तमाम विदेशी फंडिंग वैध हो गई है।
कानून की भाषा मे इसे भूतलक्षी प्रभाव से किया गया संशोधन कहा जाता है इस तरह के संशोधन की अनुमति बहुत विषम परिस्थितियों में ही दी जानी चाहिए।
इस तरह के रेयर किस्म के प्रावधान को लागू क्यो करना पड़ा ?
2017 की शुरुआत में गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने एक याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की। याचिका में एडीआर ने केंद्र सरकार पर अदालत की अवमानना करने का आरोप लगाया।
दरअसल 2014 में दिल्ली हाई कोर्ट ने पाया था कि भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने ब्रिटेन स्थित कंपनी वेदांता रिसोर्सेज की भारतीय सहायक कंपनियों से चंदा लेकर फॉरेन कॉन्ट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) का उल्लंघन किया था।
एफसीआरए की धारा-4 राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधियों पर विदेशों से चंदा लेने पर रोक लगाती है। उस वक्त दिल्ली हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्रीय गृह मंत्रालय को छह महीने के भीतर कांग्रेस और भाजपा दोनों के खातों की जांच करने और उन पर कार्रवाई करने का आदेश दिया था। लेकिन न तो चुनाव आयोग ने कुछ किया और न ही गृहमंत्रालय द्वारा कोई कदम उठाया गया।
जुलाई 2017 में एडीआर की याचिका पर कार्यवाही करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के रवैए पर सवाल उठाया। अदालत ने पूछा कि आखिर केंद्र सरकार इस मामले में कोई कदम क्यों नहीं उठाना चाहती.सरकार ने उस वक्त अदालत में दलील दी थी कि उसे रिकॉर्ड खंगालने के लिए 31 मार्च 2018 तक का वक्त दिया जाए।
अदालत ने 8 अक्टूबर 2017 मामले में कार्रवाई करने के लिए केंद्र को आखिरी छह हफ्ते का समय दिया था लेकिन यह छह हफ़्तों की अवधि यानी लगभग डेढ़ महीना तो दिसम्बर 2017 में ही खत्म हो गयी थी।
तो सवाल उठता है कि उसके बाद अदालत ने क्या किया ? बहुत ढूंढने पर भी जवाब तो नही मिला पर यह जरूर मालूम पड़ा कि दिल्ली हाई कोर्ट की कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल जो जस्टिस सी हरिशंकर के साथ मिलकर यह मुकदमा सुन रही थीं, उन्हें केंद्र सरकार ने 8 मार्च 2018 को नारी शक्ति पुरस्कार से नवाज दिया।
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