बुरे समय की कविताएं और उपवास का नाटक
।।बुरे समय की कविताएं।।
(एक)
छिपता है राम की ओट मे बलात्कारी
हत्यारा कंधे पर हाथ रखे करता है अट्टहास
घायल कबूतर का लहू सूखता जाता है माथे पर
लुटेरा तूणीर से निकलता है तीर और सर खुजाता है
मूर्तियों के समय में कितने निरीह हो तुम राम
और कितने मुफ़ीद
(दो)
तिरंगा उसके हाथों मे कसमसाता है
रथ पर निःशंक फहराता है भगवा
एक पवित्र नारा बदलता है अश्लील गाली में
और ढेर सारा ताज़ा ख़ून नालियों का रंग बदल देता है
इन नालियों के कीट
तुम्हारे राष्ट्र की पहचान हैं अब
(तीन)
लड़की की उम्र आठ साल
देह पर अनगिनत चोटों के निशान
योनि से बहता ख़ून
कपड़े फटे
आँखें फटीं
प्रतिवाद करता है हत्यारा
लेकिन उसका नाम तो आसिफा है न!
(चार)
भूखी है जनता आधी
आधी की देह पर धूल के कपड़े
आधी जनता पिटती है रोज़
आधी बिना अपराध जेल में
आधी की इज़्ज़त न कोई न कोई घर
आधी जनता उदास है
बाक़ी आधी जनता की ख़ुशी के लिए
बस इतना काफी है।
-अशोक कुमार पाण्डेय
अब मेरी बात
..................
तुम लोगों का उपवास वाक़ई एक नाटक है क्योंकि तुम लोग
उन्नाव के रेप और कठुआ की बेटी के रेप में फ़र्क़ कर रहे हो।
रेप का केस दर्ज होने पर आरोपी की गिरफ़्तारी सामान्य बात है लेकिन यूपी के डीजीपी ने आज सुबह कहा कि मामला सीबीआई को सौंपा जा रहा है इसलिए उन्नाव के विधायक को गिरफ़्तार नहीं किया जा रहा। अब सीबीआई देखेगी। ... योगी सरकार और यूपी पुलिस के लिए आख़िर निंदा का कौन सा शब्द इस्तेमाल किया जाए।...
जिस प्रदेश में अपराध के मद्देनज़र नही बल्कि अपराधी के जाति और धर्म के नाम पर दंड तय किया जा रहा हो...भाजपा और संघ के तमाम अनुशासनप्रिय लोगों को चूल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।
अगर आज भी भाजपा विधायक की गिरफ़्तारी नहीं होती है तो यूपी में सभी विपक्षी दलों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहाँ कहीं भी हों उनका घेराव तब तक करना चाहिए जब तक वह पुलिस को अपने विधायक की गिरफ़्तारी का आदेश न दे दें।
कठुआ में जिस बेटी के साथ मंदिर में रेप कर ज़मीन पर पटक कर मार डाला गया...उस पर पूरा भारत चुप है। उसका नाम आसिफा है और इस अपराध को भी मज़हब की कसौटी पर कसा जा रहा है। आसिफा के बलात्कारियों का समर्थन करने वाले वक़ीलों को ज़रा भी शर्म नहीं आई।
कितनी सड़ी हुई जेहनियत के साथ ऐसे लोग इस पेशे में उतरते हैं। यह एक मिसाल है।
उन्नाव और कठुआ इतनी दूर हैं कि निर्भया के पैरोकारों को दिल्ली में मामूली प्रोटेस्ट करने का भी दिल नहीं किया। क्या भारत इसी संघी मानसिकता के साथ जीना चाहता है ???? क्या आप हम सब ...गर्व से इंसान कहलाने लायक हैं...
टिप्पणियाँ