सतीश मुख्तलिफ की कविता : हत्यारे और बलात्कारी, सब नुमाइंदे बन बैठे
खरोंच-खरोंच कर खा गए, खोखला बना दिया
चंद गुजरातियों ने मुल्क को ढोकला बना दिया
कहां तो देश सोने की चिड़िया हुआ करता था
जाहिलों ने इसे कौव्वों का घोंसला बना दिया
हत्यारे और बलात्कारी, सब नुमाइंदे बन बैठे
क़ानूनी तौर-तरीकों को ढ़कोसला बना दिया
मीडिया को पोपट और प्रवक्ताओं को जोकर
विपक्ष को गूंगा, जनता को तोतला बना दिया
विकास के नारे फक़त कुर्सी तक सिमट गए
चुनावी वादों को फ़क़त जुमला बना दिया
ज़ुर्म के ख़िलाफ़ बोलना भी अब ज़ुर्म हो गया
गलत - सही के फ़र्क़ को, धुंधला बना दिया
अरे अक़्ल के दुश्मनों, ज़रा अक़्ल से काम लो
अंधभक्ति ने तुम्हारी तुमको दोगला बना दिया
गर्दन पे लिए फिरते हो अपनी, सैकडों चेहरे
रीढ़ की हड्डी को अपनी, खोखला बना दिया
सतीश मुख़्तलिफ़
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