शिकार की तलाश में सरकार
शिकार की तलाश में सरकार
सरकार कोरोना वायरस में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए शिकार तलाश रही है...
जब हम लोग घरों में बैठे हैं कश्मीर से कन्या कुमारी तक सरकार अपने एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ रही है...
ये भूल जाइए कि अरब के चंद लोगों से मिली घुड़की के बाद फासिस्ट सरकार दलितों, किसानों, आदिवासियों, मुसलमानों को लेकर अपना एजेंडा बदल लेगी।
जेएनयू के पूर्व छात्र नेता और जामिया, एएमयू के छात्र नेताओं के खिलाफ फिर से केस दर्ज किए गए हैं। यह नए शिकार तलाशने के ही सिलसिले की कड़ी है।
इस शिकार को तलाशने में पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है।
कश्मीर में प्रमुख पत्रकार पीरज़ादा आशिक, गौहर जीलानी और फोटो जर्नलिस्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। कश्मीर में अन्य पत्रकारों को भी धमकी दी गई है। यह भी फासिस्ट सरकार के एजेंडे का हिस्सा है।
रमज़ान शुरू होने वाला है और सरकार ने अपने एजेंडे को तेज़ी से लागू करने का फैसला कर लिया है। ....क्या आपको लगता है कि अरब से कोई शेख़ आपको यहाँ बचाने आएगा? हमें अपने संघर्ष की मशाल खुद जलानी होगी। कोई न कोई रास्ता निकलेगा...
यह देश का दुर्भाग्य है कि देश के इतने बड़े सोशल एक्टिविस्ट और क़ाबिल शख़्स आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ़्तारी हुई और दलित विचारक घरों में कोरोना भगाने के उपाय तलाशते रहे। दलित महारानी नेत्री किसी अन्य दलित नेता पर कार्रवाई होने पर इसलिए नहीं बोलतीं कि कहीं वो उनकी जगह न ले ले। इसी तरह सहारनपुरी दलित नेता एक ट्वीट करके सीन से ग़ायब है।...आख़िर दलित नेताओं को हो क्या गया है...आनंद तेलतुम्बड़े पर उनकी चुप्पी मुझे अखर रही है।
अब आप लोग पूछेंगे कि कोरोना में संघर्ष कैसे मुमकिन है?
क्या आपने वह खबर पढ़ी या आपकी नज़र उस फोटो पर पड़ी जिसमें इस्राइल के तानाशाह प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ हज़ारों इस्राइली तेल अबीब में सड़कों पर निकल आए...उन्होंने सोशल डिस्टेंस बरक़रार रखते हुए वहाँ प्रदर्शन किया। हर प्रदर्शनकारी के बीच छह फ़िट की दूरी थी। ...और जानते हैं यह प्रदर्शन नेतन्याहू के उस ज़हरीले बयान के बावजूद हुआ, जिस बयान के ज़रिए उसने इस्राइलियों का ध्यान भटकाने की कोशिश की थी। नेतन्याहू ने बयान दिया था कि मुसलमान इस्राइल में कोरोना भेज रहे हैं और फैला रहे हैं। इस्राइल के लोगों ने उसे प्रदर्शन के ज़रिए थप्पड़ मारा और जवाब दे दिया।
ब्राज़ील और अमेरिका में लोग प्रदर्शन के नए तरीक़े तलाश रहे हैं। ट्रंप के खिलाफ तमाम ऐसे लोग हैं जो अकेले ही प्रदर्शन करने निकल आते हैं। ...लोकतंत्र में एक अकेले शख़्स के प्रदर्शन का महत्व कम नहीं होता है।
इस बीच अमेरिका और सऊदी अरब से भारत के हालात को लेकर वहाँ रह रहे लोगों की आवाज़ें तेज़ होती जा रही हैं। वहाँ रह रहे ऐसे भारतीय जो अब वहाँ के नागरिक भी हैं उनकी आवाज़ों को वहाँ के राजनीतिक दल और नागरिक संगठन गंभीरता से लेते हैं। यूएन के किसी संगठन को सरकार यह बयान देकर ख़ारिज नहीं कर सकती कि यह हमारा अंदरूनी मामला है।
अगर हम अपने किसी भारतीय नागरिक को इंसाफ दिलाने के लिए यूएन कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं तो हम किस मुँह से भारत के हालात पर यूएन के बयान को ख़ारिज कर सकते हैं?
बहरहाल, एक भारतीय अमेरिकी मोहिब अहमद ने सोशल मीडिया पर जो लिखा है उसने वहाँ हलचल मचा दी है। उनका लिखा मैं अनुवाद कर यहाँ पेश कर रहा हूँ....
मोहिब अहमद ने लिखा है-
भारतीय मुसलमानों ने कभी भी अपनी दुर्दशा के बारे में कहीं और नहीं बताया। वे भारतीय संविधान में विश्वास करते हैं। उन्होंने मतदान किया। उन्होंने इंसाफ पाने की मामूली उम्मीद में अदालतों के ज़रिए लड़ाई लड़ी।
वे महसूस करते रहे कि यदि आप खुद को शिक्षित करते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं, तो आप आगे बढ़ सकते हैं। इसीलिए उन्होंने कॉलेज खोले, यूनिवर्सिटियाँ खड़ी कीं।
उन्होंने ग्लोबल समुदाय से कभी भी अपने घरेलू मुद्दों को सुलझाने में मदद करने की अपील नहीं की। हालात कभी बेहतर नहीं थे, लेकिन हालात कभी खराब भी नहीं थे। फिर भी, मुसलमानों को उनकी हैसियत बता दी गई।
हत्यारी भीड़ का नेतृत्व करने वाले लोग अब सत्ता में हैं। एक चुनावी जीत जनसंहार में बदल जाती है।
महामारी की आड़ में भी हिंसा, बहिष्कार और मारपीट...
मीडिया ज्यादातर आग लगाने वाला है। अदालतें पक्षपाती हैं। पुलिस का रवैया घृणित है। भीड़ हमेशा लिंच के लिए तैयार रहती है।
जब हम बोलते हैं, तो कहा जाता है हम ज्यादा ही बोल रहे हैं। जब हम विरोध करते हैं, तो हमें हिंसक करार दिया जाता है। जब हम विनती करते हैं, तो हमारी नागरिकता पर सवाल उठाए जाते हैं, हम गद्दार कहलाते हैं। हमारे विश्वविद्यालयों में छापे मारे जाते है। लाइब्रेरी रौंदी जाती है। हमारे छात्रों पर हमला किया जाता है।
कितने ही बच्चे माँ की गोदियों में दम तोड़ देते हैं। हमारे नारों पर एनएसए लगा दिया जाता है।हद तो यह है कि हमारे आर्ट पर स्याही पोत दी जाती है।
इसलिए, अगर आप अपने दोस्तों से हल्की आलोचना के स्वर सुनते हैं, तो मुसलमानों की तरफ न देखें। इस हद तक आप उन्हें यहां ले आए हैं।सिर्फ आप, आप और आप ही। हम नहीं।
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