क्या मुसलमानों का हाल यहूदियों जैसा होगा ...विदेशी पत्रकार का आकलन
मुसलमान भी यहूदियों की तरह साफ कर दिए जाएंगे...यह बात किसी सवाल की तरह नहीं आया है बल्कि तथ्यों के जरिए हालात की तरफ इशारा किया गया है। यह बातें उस वक्त की जा रही हैं जब कोरोना के दौरान तमाम साजिश वाली थ्योरी (conspiracy theories) पर बातें हो रही हैं। यहां मैं भी किसी conspiracy theories पर बात नहीं करूंगा बल्कि मैं जाने-मान पत्रकार सी जे वर्लमैन (C J Werleman) के उस लेख का जिक्र करना चाहता हूं जिसमें उन्होंने यहूदियों के खात्मे की तुलना मौजूदा दौर में पूरी दुनिया में मुसलमानों को खत्म किए जाने या उन्हें हाशिए पर भेजे जाने से की है। उनका यह लेख टीआरटी वर्ल्ड ने प्रकाशित किया है।
वह लिखते हैं - 14वीं शताब्दी में जब #काला-जार ( #BlackPlague) ने #यूरोप को अपनी चपेट में लिया तो करीब पचास फीसदी लोग इस बीमारी से मारे गए। उसी दौरान यह अफवाह फैलाई गई कि #यहूदी लोग इस बीमारी को फैला रहे हैं। वे कुओं में पीने के पानी के जरिए इसे फैला रहे हैं। इस अफवाह का नतीजा यह निकला कि चारों तरफ यहूदियों को मारा जाने लगा। उनका #नरसंहार (
anti-Semitic pogroms
) हुआ। गांव के गांव जिनमें यहूदी आबादी रहती थी वे साफ हो गए। एक भी यहूदी उन गांवों में जिंदा नहीं बचा।
इस घटना के करीब 600 साल बाद #हिटलर ने #नाजी #जर्मनी में यहूदियों का कत्ले आम किया। उन्हें गैस चैंबरों में डाल दिया गया। यानी नाजियों से भी बहुत पहले महज अफवाह की वजह से यहूदियों को मारा गया था।
रूटगर्स यूनिवर्सिटी के इतिहासकार मार्टिन जे ब्लासर कहते हैं कि जब भी कोई बड़ी महामारी पूरी दुनिया में फैलती है तो लोग बहुत ज्यादा डर जाते हैं। ऐसे में अफवाहें जन्म लेती हैं। लोग किसी चीज को या किसी स्थिति को उस महामारी के लिए जिम्मेदार ठहराने लगते हैं।
अब #कोविड19 (Covid19) या #कोरोना पर आते हैं। इस बार इस महामारी में यहूदियों की जगह #मुसलमान निशाने पर हैं। 14वीं शताब्दी में जिस तरह यहूदी विरोधी माहौल बना था, इस समय वैसा ही माहौल #इस्लामफोबिया को लेकर है। कोरोना हालांकि एक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दा (
health issue) है लेकिन मुसलमानों के खिलाफ बहुसंख्यक लोगों में पल रही नफरत ने उसे कोरोना से जोड़ दिया है।
#इस्राइल, #भारत, यूरोप, #ब्रिटेन और #अमेरिका में आप मुस्लिम अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किए जाने की घटनाओं का अध्ययन करें तो पाएंगे कि उनके खिलाफ #फेक_न्यूज चलाकर कोरोना को हथियार बनाया गया है।
इस्राइल में #नेतन्याहू सरकार ने कोरोना फैलाने के लिए #फिलिस्तीन के मुसलमानों को जिम्मेदार ठहाराय है। उन्होंने डॉक्टरों के एक प्रतिनिधिमंडल से कहा कि हमारा दुर्भाग्य है कि घुसपैठियों के जरिए हमारे इलाके में कोरोना आ रहा है। इसीलिए मैं इस्राइल की जनता से अपील करता हूं कि वे इसे रोकें। इसे सिर्फ आपकी मदद से रोका जा सकता है।
नेतन्याहू फिलिस्तीन के मुसलमानों को #घुसपैठिया कहता है। वह वहां की जनता से अपील इसलिए कर रहा है कि वो सड़कों पर निकलकर फिलिस्तीनी मुसलमानों से संघर्ष करें। यानी जनता से जनता लड़े। ऐसे में सरकार पर वर्ग संघर्ष का कोई आरोप नहीं लगेगा। अभी तक एक तरफ इस्राइली फौज होती है तो दूसरी तरफ फिलिस्तीनी होते हैं। इस्राइल की सारी जनता फिलिस्तीन की जनता के खिलाफ नहीं है। यह बात नेतन्याहू को बखूबी पता है। एक तरह से अपनी जनता को फिलिस्तीन की जनता के खिलाफ भड़काकर नेतन्याहू अपने खिलाफ उभरे असंतोष के माहौल और करप्शन के मामलों को भी दबाना चाहता है।
भारत में भी स्थितियां इस्राइल से भिन्न नहीं है। भारत में मुसलमानों द्वारा थूके जाने का इतना दुष्प्रचार हुआ कि लोगों को भीड़ ने कई मुस्लिम युवकों की अलग-जगहों पर हत्याएं कर दीं। इस तरह के फर्जी वीडियो चलाए गए जिसमें मुसलमान युवक को पुलिस वाले थूकते दिखाया गया। यह पुराना वीडियो था, जिसे मौजूदा संदर्भ से जोड़कर मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाया गया। यह सब बहुत सुनियोजित था। इसमें सरकार समर्थक #हिंदू_राष्ट्रवादी शामिल थे। जिसमें उन्होंने मुसलमानों पर कोरोना वाइरस फैलाने के आरोप लगाते हुए बयान जारी किए।
वॉयजर इन्फोसेक डिजिटल लैब ने एक जांच में पता लगाया कि तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर करीब 30,000 फर्जी वीडियो मुसलमानों को टारगेट करते हुए डाले गए।
हिंदू संगठनों ने #सोशल_मीडिया पर कोरोना जेहाद, बॉयो जेहाद जैसे हैशटेग ट्रेंड कराए। जैसे ही #दिल्ली में #तबलीगी_जमात वाली घटना हुई, इन समूहों को मनचाहा अवसर मिल गया। तबलीगी जमात की पूरी घटना को मुसलमानों को टारगेट करने के लिए भुनाया गया। इसके बाद तो फल बेचने वाले गरीब मुसलमानों पर कोरोना फैलाने का आरोप लगा। बंद #रेस्तरां में एक मुस्लिम वर्कर को खाने में थूकते हुए फर्जी वीडियो बनाया गया। यानी आप जहां तक सोच सकते हैं, वैसे फर्जी वीडियो बनाए गए।
भारत में इन #फर्जी_वीडियो बनाने वाले और फेक खबरें फैलाने वालों को एकमात्र मकसद है, भारत की एक बड़ी आबादी में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाना, उनके खिलाफ हिंसा भड़काना है। उनका मानना है कि एक समय बाद ऐसी स्थिति आ जाएगी कि भारत का मुसलमान खुद ही यह देश छोड़कर किसी और जगह पलायन का सोचेगा।
विर्लमैन लिखते हैं कि दरअसल ऐसे लोगों की सोच #आतंकी संगठन #आईएसआईएस की सोच से मेल खाती है। जिस तरह आईएसआईएस मुसलमान और गैर मुसलमान की बात कहता था और जिस तरह यूरोप के भी कुछ दक्षिणपंथी भी #दाइश जैसा सोचते हैं। इन लोगों के सोचने का तरीका एक जैसा है।
ब्रिटेन में वहां की काउंटर टेररिज्म पुलिस वहां के कुछ दक्षिणपंथी समूहों की जांच कर रही है जो मुस्लिम विरोधी भावनाओं को भड़का रहे हैं। इस संबंध में ब्रिटेन की हेट क्राइम मॉनिटरिंग ग्रुप #टेल_मामा (
Tell Mama) ने कई सारी घटनाओं को रिपोर्ट किया है। टेल मामा के मुताबिक इन #दक्षिणपंथी_उग्र_समूहों ने कोरोना वाइरस की आड़ में अपने संदेशों में मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाई है। इनमें वे भी शामिल हैं जो आए दिन मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए ब्रिटेन में जाने जाते हैं।
गार्डियन अखबार के मुताबिक #इंग्लिश_डिफेंस_लीग के नेता टॉमी रॉबिनसन ने #टेलिग्राम पर शेयर किए गए अपने वीडियो संदेश में कहा कि #बर्मिंघम शहर में मुसलमान गुप्त #मस्जिदों में बैठकें कर रहे हैं। यह घरों में रहने के आदेश का उल्लंघन है। यह सब मुसलमान #ब्रिटिश_सोसाइटी में कोरोना फैलाने के लिए कर रहे हैं। #गार्डियन के मुताबिक यह वीडियो दस हजार से ज्यादा बार शेयर किया गया। टॉमी रॉबिनसन अपने मुस्लिम विरोधी जहरीले विचारों के लिए पहले से ही कुख्यात है। गार्डियन के मुताबिक - सच तो यह है कि न तो कोई मुसलमान कहीं छिपा हुआ है और न ही मस्जिदों में कोई समूह कोरोना फैलाने के लिए गुप्त बैठकें कर रहा है।
दरअसल, कुछ तत्व डर और अस्थिरता का माहौल बनाकर इससे तमाम तरह के लाभ उठाते हैं। इसके जरिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लाभ उठाए जाते हैं। मुसलमानों के खिलाफ डर, आतंक का माहौल बनाकर किसको फायदा होगा, यह आसानी से समझा जा सकता है।
कल निशाने पर यहूदी थे आज निशाने पर मुसलमान हैं।
(Original Writer C.J. Werleman)
डिस्केलमरः यह लेख टीआरटीवर्ल्ड डॉटकॉम पर पत्रकार सी जे वर्लमैन के अंग्रेजी में प्रकाशित लेख का अनुवाद है। यह लेखक के विचार हैं। यह हिंदीवाणी के संचालनकर्ता यूसुफ किरमानी के विचार नहीं हैं।
डिस्केलमरः यह लेख टीआरटीवर्ल्ड डॉटकॉम पर पत्रकार सी जे वर्लमैन के अंग्रेजी में प्रकाशित लेख का अनुवाद है। यह लेखक के विचार हैं। यह हिंदीवाणी के संचालनकर्ता यूसुफ किरमानी के विचार नहीं हैं।
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