अटल बिहारी वाजपेयी को ज़बरन स्वतंत्रता सेनानी बनाने की कोशिश
बहरहाल, उन्हीं दिनों वाजपेयी के गांव बटेश्वर में एक घटना घटी. 27 अगस्त, 1942 को ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ गांव के बाज़ार में 200 की संख्या में लोग इकट्ठा हुए. बाद में उन्होंने वन विभाग की एक इमारत में तोड़फोड़ की. रिपोर्ट के मुताबिक़ उस समय अटल बिहारी वाजपेयी अपने भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी के साथ वहां से कुछ दूर खड़े थे. इस घटना के अगले दिन पुलिस ने गांव में छापामारी की और कई लोगों को गिरफ़्तार कर आगरा जेल भेज दिया गया. वाजपेयी और उनके भाई भी उनमें शामिल थे.
इस घटना के बाद एक सितंबर, 1942 को वाजपेयी ने मजिस्ट्रेट एस. हसन के सामने एक बयान दिया. उन्होंने कहा, ‘27 अगस्त, 1942 को बटेश्वर बाज़ार में प्रदर्शनकारी इकट्ठे हुए थे.’ उन्होंने बताया कि ‘दोपहर क़रीब दो बजे ककुआ उर्फ़ लीलाधर वाजपेयी और महुआ वहां आए और भाषण दिया. उन्होंने लोगों को वन क़ानूनों का उल्लंघन करने को राज़ी किया. (उसके बाद) 200 लोग वन विभाग के यहां गए. मैं अपने भाई के साथ उस भीड़ में शामिल था. मैं और मेरा भाई पीछे खड़े रहे. बाक़ी लोग इमारत में घुस गए. मैं वहां ककुआ और महुआ के अलावा किसी को नहीं जानता... मुझे लगा कि (इमारत की) ईंटें गिरने वाली हैं. मुझे नहीं पता दीवार कौन गिरा रहा था, लेकिन उसकी ईंटें निश्चित ही गिर रही थीं... मैं और मेरा भाई मयपुरा जाने लगे. भीड़ हमारे पीछे थी. जिन लोगों (ककुआ और महुआ) का ज़िक्र पहले किया वे मवेशियों के बाड़े से होते हुए बाहर निकल आए थे. उसके बाद भीड़ बिचकोली की तरफ़ जाने लगी. वन विभाग में दस-बारह लोग थे. मैं 100 ग़ज़ की दूरी पर खड़ा था. सरकारी इमारत गिराने में मेरा कोई हाथ नहीं था. उसके बाद हम अपने-अपने घर वापस लौट गए.’
इस बयान के बाद जज एस हसन ने अपनी टिप्पणी दर्ज कराई. उसमें उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी को स्पष्ट कर दिया गया था कि वे बयान देने के लिए बाध्य नहीं हैं, और अगर वे ऐसा करते हुए कोई बात स्वीकार करते हैं तो उसका इस्तेमाल उनके ख़िलाफ़ हो सकता है. जज हसन ने कहा, ‘मुझे यक़ीन है कि यह बयान स्वेच्छा से दिया गया. यह मेरी सुनवाई के दौरान लिया गया और अटल बिहारी को पढ़ कर सुनाया गया. उन्होंने माना कि बयान सही है और पूरी ज़िम्मेदारी के साथ दिया गया है.’ वाजपेयी के उस बयान को उर्दू में लिखा गया था. दस्तावेज़ पर उनके हस्ताक्षर भी थे.)) (यह अंश साभार फ्रंटलाइन पत्रिका)
बेहद दिलचस्प और ऐसे हुई पुष्टि
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1998 में जब यह रिपोर्ट छपी तो उस समय स्वतंत्रता सेनानी लीलाधर वाजपेयी ज़िन्दा थे। उन्होंने उस समय फ्रंटलाइन पत्रिका को इंटरव्यू दिया था। जो आज भी मौजूद है। लीलाधर ने उस समय कहा था - अटल के बयान से अभियोजन पक्ष को उनके ख़िलाफ़ केस बनाने में काफ़ी मदद मिली और उन्हें सज़ा हुई। महुआ उर्फ़ शिवकुमार को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। लीलाधर ने यह भी बताया कि उनके नाम का ज़िक्र करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी अकेले नहीं थे। गांव के और लोगों ने भी पुलिस को उनके नाम बताए थे। लेकिन वे सभी अनपढ़ थे, जबकि अटल और उनके भाई अच्छे पढ़े-लिखे थे। जब 2004 में लोकसभा चुनाव हो रहे थे तो उस समय वाजपेयी के ख़िलाफ़ जाने-माने वकील राम जेठमलानी चुनाव लड़ रहे थे। उस दौरान वे एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में लीलाधर वाजपेयी को ले आए और वही दावा किया कि अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वतंत्रता सेनानियों के ख़िलाफ़ गवाही दी थी।
क्यों परेशान रहते हैं दक्षिणपंथी
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दरअसल, किसी देश की आजादी की लड़ाई सबसे बड़ी होती है। अगर आप कोई संगठन हैं और उस आंदोलन में शामिल नहीं हैं तो वर्षों बाद वो बातें और घटनाएँ आपका पीछा करती हैं। आरएसएस और भाजपा के साथ यही हो रहा है। उनके पास भगत सिंह, बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सर सैयद अहमद, बाबा साहब आंबेडकर जैसे चरित्र नहीं हैं जिससे वे अपना योगदान साबित कर सकें। हैरानी होती है कि जिस तानाशाह इंदिरा गांधी को अटल ने कभी दुर्गा की उपाधि दी थी, आज अटल को एक बड़े व्यक्तित्व के रूप में पेश करने की कोशिश हो रही है। वो अटल जो गुजरात दंगों के दौरान लाचार रहा और दबी ज़बान से मोदी को राजधर्म याद दिलाता रहा।
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