महिला दिवस की बधाई देने वालों के किरदार तो देखें
आज महिला दिवस की बधाई वे लोग भी दे रहे हैं जिनकी अवधारणा में - वीर भोग्या वसुंधरा - शामिल है। इस अवधारणा के तमाम क्रूरतम इंटरपेटेशन (मीमांसा) आप लोगों ने पढ़े होंगे।
चलिए, हम वीर भोग्या वसुंधऱा की अवधारणा पर बहस नहीं करते। हम महिलाओं की आजादी पर बात करते हैं।
वीर भोग्या वसुंधरा वाले वे लोग हैं जिन्होंने गढ़ी गई छवियों वाली महिलाओं के अपने सनातनी कुनबे से बाहर निकल कर कभी उन महिलाओं की जीवनगाथा का अध्ययन नहीं किया, जिन्होंने वास्तविक क्रांतियां कीं या समाज को नई दिशा दी।
भाजपा-आरएसएस ने जो नैरेटिव सेट कर दिया, बस उन्हीं महिलाओं के गुणगान से सनातनी पीढ़ी निहालोनिहाल है। इन सनातनियों के मुंह से कभी सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख का नाम नहीं निकलता। इनका इतिहास लेखन इन दो महिलाओं पर मौन है।
इनके अनुषांगिक (फ्रंटल) संगठनों के नाम पौराणिक महिलाओं के नाम पर हैं, इतिहास में जीवित किरदारों से एक भी संगठन नाम नहीं है।
सुंदर लाल बहुगुणा न बताते तो हम लोग जान ही नहीं पाते कि उत्तराखंड में महिलाओं ने पेड़ों को बचाने के लिए क्या कुर्बानियां दीं।
इन्हें ग्रेटा थनबर्ग (#GretaThunberg), दिशा रवि (#DishaRavi), नवदीप कौर (#NavdeepKaur), गुरमेहर कौर (#GurmeharKaur) जैसी लड़कियां अर्बन नक्सलाइट लगती हैं। इन्हें मेधा पाटकर, अरुंधति रॉय भी अर्बन नक्सलाइट लगती हैं।
आरएसएस-भाजपा के पास आज से 1400 साल पहले तक तथ्यात्मक इतिहास तक नहीं है जिससे वे किसी महिला का उदाहरण देकर सनातनी लोगों को गौरवान्वित महसूस करा सकें।
पौराणिक ग्रंथ महाभारत में द्रौपदी की दास्तान जब आज की पीढ़ी पढ़ती है तो वो हैरान रह जाती है कि किसी महिला के साथ हमारे पूर्वजों ने ऐसा भी किया होगा। जिनके इतिहास में कोख में ही बच्चियों की हत्या और सती प्रथा जैसी कुप्रथाएं गौरवगाथा के रूप में दर्ज हों, वो भी महिला दिवस की बधाइयां दे रहे हैं।
जबकि 1400 साल पहले ईसाईयों, यहूदियों और इस्लाम में ऐसी सैकड़ों महिलाओं के जीवंत नाम हैं जिन्होंने अपने समय की विपरीत परिस्थितियों में उस समय जमाने की दिशा ही बदल दी।
सनातियों के झंडाबरदार अपनी पीढ़ी को सही इतिहास पढ़ने की सलाह नहीं देते। वे अपना वो रक्तरंजित इतिहास पढ़ाना चाहते हैं जिसमें 1947 के बाद नफरत भरी है।
राष्ट्रवाद की बात करने भर से कोई राष्ट्र बड़ा या महान नहीं बन जाता।
उसके लिए ऐसे किरदार तैयार करने पड़ते हैं जो अपनी कुर्बानी से उस राष्ट्र को सींचते हैं।
आरएसएस-भाजपा अपने किसी एक भी किरदार का नाम लेकर बताएं जिसने अपनी कुर्बानी से इस देश को सींचा हो।
ताजा उदाहरण मिठुन चक्रवर्ती का है जो घाट-घाट का पानी पीने के बाद भाजपा में आया, जिसके लड़के के खिलाफ रेप का संगीन केस दर्ज है।
ये ऐसा केस नहीं है, जिसमें बॉलिवुड में एक्ट्रेस बनने की चाहत में किसी महिला ने चलता-फिरता आऱोप लगा दिया हो।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उस महिला विरोधी मिठुन के कुनबे को भाजपा में शामिल कर पार्टी गदगद महसूस कर रही है। लव जिहाद कानून और रोमियो स्क्वॉड बनाने वाले या इनके पैरोकार आज महिला दिवस की बधाई देने पर जरा भी शर्म महसूस नहीं कर रहे हैं।
इसी कड़ी में हालांकि उन प्रधान जी का जिक्र करना ओछापन माना जाएगा, जिन्होंने राष्ट्र के लिए कथित तौर पर अपनी पत्नी को छोड़ दिया था। लेकिन दूसरी महिलाओं की जासूसी कराते रहे या करा रहे हैं।
आज वो लोग इस सवाल पर विचार करें कि जो महिला दिवस की बधाइयां तो दे रहे हैं लेकिन उन लोगों ने अपनी महिलाओं को उस किरदार के सांचे में ढलने ही नहीं दिया जहां सावित्री बाई फुले, फातिमा शेख, झलकारी बाई, विद्यावती कौर, एनी बिसेन्ट, चांद बीबी, सरोजिनी नायडू, बेगम हजरत महल जमाने के हुक्मरानों से टकरा रही थीं।
आज उसी तरह बिल्कीस दादी, नवदीप कौर, दिशा रवि, अरुंधति रॉय, गुरमेहर कौर, अल्ला सालेह (#AllaSalah), सफूरा जरगर (#SafooraZargar) वक्त के हुक्मरान से टकरा रही हैं। इसलिए इनके तुफैल में ही महिला दिवस की अनंत बधाइयां....
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