वर्क फ्रॉम होम के प्रस्तावित कानून में क्या होगा
Work from Home क़ानून में किसके मन की बात होगी?
-यूसुफ किरमानी
तमाम कंपनियों में घर से काम (वर्क फ्रॉम होम Work from Home) करने का सिलसिला बढ़ने के बाद भारत सरकार अब इसके मद्देनजर कायदे-कानून बना रही है। इन नियमों के लागू होने के बाद कंपनी मालिकों पर अपने कर्मचारियों या स्टाफ की क्या जिम्मेदारियां होंगी, उसे कानून के जरिए परिभाषित कर दिया जाएगा। अभी कोई नहीं जानता कि केंद्र सरकार की कानूनी परिभाषा का दायरा क्या होगा। वर्क फ्रॉम होम में स्टेकहोल्डर स्पष्ट तौर पर तो दो ही हैं – कंपनी और कर्मचारी। लेकिन कुछ और भी स्टेकहोल्डर हैं जो अप्रत्यक्ष हैं। जैसे कर्मचारी का परिवार। वर्क फ्रॉम होम की परिभाषा के दायरे में कर्मचारी का परिवार होगा या नहीं, इस पर श्रम मंत्रालय की कोई राय अभी तक सामने नहीं आई है। सरकार ने तमाम मजदूर संगठन से भी इस संबंध में किसी तरह की सलाह नहीं मांगी है। कम से कम उसे सरकार समर्थित भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) से ही पूछ लेना चाहिए था।
घर से काम (Remotely Working) पर प्रस्तावितकेंद्रीय कानून एक नए मॉडल की तरह पूरे देश में लागू होगा। कोविड -19 (Covid 19) महामारी या ओमिक्रॉन(Omicron) की वजह से जो हालात बने हैं या आगे भी बन सकते हैं, उसमें यह कानून खासकर प्राइवेट कर्मचारियों की मदद करेगा। घर से काम (WFH or WFA) करना या कंपनी के दफ्तरों में जाकर हाइब्रिड सिस्टम से काम करना आदि हालात से यह कानून बेहतर ढंग से निपटेगा। मसलन जो कर्मचारी कॉल सेंटर में काम करते हैं, अगर वे घर से काम करते हैं तो उनकी ड्यूटी कितने घंटे की होना चाहिए, प्रस्तावित कानून से तय हो जाएगा। अगर कोई कंपनी ओवरटाइम कराती है तो उसकी समय सीमा कितने घंटे की होगी।
कुछ अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है जिसमें काम के घंटे तय करने के अलावा और घर से काम करने के कारण बिजली और इंटरनेट के उपयोग के लिए उनके द्वारा किए गए अतिरिक्त खर्चों का भुगतान शामिल है। एक मीडिया रपट के मुताबिक केंद्र सरकार के एक बड़े अधिकारी ने कहा है कि सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में वर्क फ्रॉम होम को रेगुलेट करने के तरीकों का पता लगाने के लिए चर्चा शुरू हो गई है, आगे चलकर नियम-कानूनबनने की उम्मीद है। इस अधिकारी ने कहा कि इस काम को करने की जिम्मेदारी एक कंसल्टेंसी फर्म को सौंपी गई है।
ताज्जुब है कि केंद्र सरकार ने इस बारे में उन कंपनियों के कर्मचारियों के मन की बात जानने की कोशिश नहीं की, जो घर से काम (Remote Work)करने में तमाम तरह के प्रतिकूल हालात का सामना कर रहे हैं।
भारत में घर से काम करने वाले कर्मचारियों की तादाद करोड़ों नहीं तो लाखों में जरूर है। तमाम बातों के लिए कानून संसद में बनते हैं और कर्मचारियों के मामले में कंसल्टेंसी फर्म की सलाह लेकर सरकार कानून बनाया जाएगा, यह सुनने में अजीब लग रहा है।। केंद्र सरकार की गंभीरता का पता इसी से चलता है। सरकार के पास नीति आयोग है, श्रम मंत्रालय के काबिल बाबुओं की पूरी फौज है। आखिर सरकार ने इनसे सलाह लेने की बजाय कंसल्टेंसी फर्म से क्यों सलाह मांगी। वह कंसल्टेंसी फर्म सोशल मीडिया के जरिए सर्वे वगैरह कराकर अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपकर मोटी फीस ले लेगी।
यह ठीक है कि केंद्र सरकार प्राइवेट सेक्टर को कड़े कानून बनाकर नाराजनहीं करना चाहती है लेकिन सरकार को पहले कर्मचारियों की परेशानियों परव्यावहारिक ध्यान देना होगा।
सरकार ने इस साल जनवरी में एक स्थायी आदेश के माध्यम से सेवा क्षेत्र के लिए वर्क फ्रॉम होम को औपचारिक रूप दिया था, जिससे कंपनी मालिकों को कर्मचारियों के काम के घंटे और अन्य सेवा शर्तों पर निर्णय लेने की अनुमति मिली। हालाँकि, तब यह माना गया था कि यह थोड़े समय की बात है। इसलिए अगर काम के घंटे ज्यादा हैं तो क्या हुआ, चंद दिनों में सब ठीक हो जाएगा। लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी (IT Companies) क्षेत्र की कंपनियों ने WFH or WFA कर्मचारियों के साथ मनमानी शुरू कर दी। वेतन एकदम से घटा दिए गए, काम के घंटे बढ़ा दिए गए। दस घंटे की ड्यूटी खत्म होने के बाद भी वाट्सऐप और ईमेल के जरिए भी कर्मचारियों को निर्देश देकर काम कराया गया।
भारत सरकार के अधिकारी ने कहा कि सरकार अब सभी क्षेत्रों के लिए एक व्यापक औपचारिक ढांचा लाना चाहती है। नवीनतम कदम इस तरह के ढांचे को रखने वाले अन्य देशों की तरह होने की उम्मीद है। जैसे पुर्तगाल ने अभी हाल ही में एक कानून के जरिए नियम बनाया कि कोई भी कंपनी ड्यूटी का समय पूरा होने के बाद अपने कर्मचारी कोन तो टेक्स्ट मैसेज और न ही कोई ईमेल करके दिशा निर्देश देगी। पुर्तगाल सरकार ने इसे अपने नए श्रम नियमों में शामिल कर लिया है। उस अधिकारी ने कहा कि वर्क फ्रॉम होम को कानूनी समर्थन देने के लिए कानून लाने पर सरकार के भीतर भी आम सहमति है।
कंसल्टेंसी फर्म जब सुझाव देगी, तब देगी लेकिन इस संबंध में प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारी प्रतिक्रिया देने लगे हैं। गुड़गांव की एक बड़ी आईटी कंपनी में मैनेजर उर्वशी पाहवा का कहना है कि यदि कर्मचारियों को प्रस्तावितसरकारी कानून के अनुसार अपनी कंपनी के आधिकारिक कार्य समय के अनुसार समय से पहले तेजी से लॉगिन करना है, तो लंच का समय, ब्रेक का समय और लॉगआउट का समय भी तय किया जाना चाहिए। लेकिन मुझे यकीन है कि आईटी कंपनियां रोएंगी और अपने कर्मचारियों को ऑफिस के बाद आराम से रहने देने पर चुप्पी साध लेंगी या मना कर देंगी। वे 'ग्लोबल मार्केट' 'लागत लाभ', 'कम्पटिशन' जैसे शब्दों का प्रयोग जारी रखेंगी और सरकार को उन्हें छूट देने के लिए मजबूरकरेंगी। आईटी कर्मचारी फिर से अपनी मांद में घुस जाएंगे और बस हाय-हाय करेंगे। वजह यही है कि आईटी कंपनियों के कर्मचारी कभी न तो संगठित हो पाते हैं और न ही अपनी आवाज बुलंद कर पाते हैं। किसी आईटी कंपनी में कर्मचारियों का संगठन नहीं है जो उन्हें उनके अधिकारों के बारे में बता सके। अलबत्ता सप्ताह में होने वाली शराब पार्टियों, बाइक टूरिज्म के लिए उनके क्लब बने हुए हैं लेकिन अधिकारों को लेकर कोई चेतना नहीं है।बहुत ही कोफ्त की बात है कि रेव पार्टियों में मस्त युवकों को इन सब की चिन्ता नहीं है।
गुड़गांव की एक और बड़ी कंपनी में आईटी इंजीनियर विवेक सुराणा का कहना है कि सरकार सुनिश्चित करे कि घर से काम करने वाले कर्मचारियों के पास काम बाकायदा कहीं दर्ज होकर आए, जुबानी जमा खर्च बिल्कुल भी न हो। यानि कर्मचारियों पर जिस तरह काम लाद दिया जाता है, उसका उल्लेख कहीं नहीं होता। ड्यूटी खत्म होने के बाद इनबॉक्स चेक करने का मौखिक प्रावधान खत्म होना चाहिए। काम खत्म होने के बाद फोन, कंप्यूटर, लैपटॉप और टैबलेट जैसे डिवाइस को बंद करने का कानून हो। न ही कोई मैसेज ईमेल पर आए और न जवाब देने के लिए व्हाट्सएप करने को कहा जाए । प्रस्तावित कानून मेंफर्नीचर जैसे कुर्सी, टेबल पर खर्च, हार्डवेयर, फोन,इंटरनेट, सॉफ्टवेयर, बिजली, वाई-फाई सर्विस, भोजन आदि के खर्च को कवर किया जाना चाहिए। यह भी तय हो कि कंपनियां मनमाने तरीके से किसी महामारी की आड़ में वेतन नहीं काटें। कई कंपनियों ने कर्मचारियों की सैलरी ही आधी कर दी है। तमाम कंपनियां दिल्ली में न होकर गुड़गांव, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद, पलवल में हैं यानी उन्हें बड़े मेट्रो सिटी के मुकाबले कम किराये पर दफ्तर उपलब्ध हैं। कोई कैब नहीं देता है या अब देना बंद कर दिया है। इस तरह कंपनियों का पैसा बच रहा है। क्योंकि अगर कोई कंपनी अपना दफ्तर कर्मचारियों के साथसंचालित करेगी तो उसे बिल्डिंग का किराया, बिजली बिल, इंटरनेट बिल, कार्यालय सहायक कर्मचारी, भोजन कैंटीन, परिवहन सेवाएं, एयर कंडीशनर, वाणिज्यिक संपत्ति कर सबकुछ भरना पड़ेगा। वर्क फ्रॉम होम में उनका सब बच रहा है। तो कंपनियों को इस बचत का लाभ कर्मचारियों को देना चाहिए। अगर सरकार इस तरह का कर्मचारी हितैषी कानून लाए तो ज्यादा बेहतर होगा।
नोएडा के एक बड़े कॉल सेंटर में लीड मैनेजर कल्पना शर्मा ने कहा कि जो लोग वर्क फ्रॉम होम चुन रहे हैं, उनके मुकाबले दफ्तर आने वाले कर्मचारियों से एक जैसा व्यवहार हो। दोनों के साथ कंपनी के व्यवहार में कोई असमानता नहीं होनी चाहिए। ये न हो कि दफ्तर आने वाला कर्मचारी कंपनी का डॉर्लिंग ब्वॉय हो और घर से काम करने वाले कर्मचारी को नीची नजर से देखा जाए। दोनों ही तरह के कर्मचारियों को उचित वेतन और मेडिकल सुविधा देने पर विचार किया जाना चाहिए।
कल्पना कहती हैं कि प्रस्तावित कानून में दोनों की यानी कंपनी और कर्मचारी की जवाबदेही को स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए। लेकिन असली कहानी काम के घंटे को लेकर है। घर से काम करने वाले कर्मचारियों को ज्यादा समय देना पड़ रहा है। दस-बारह घंटे घर से काम कराकर कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा है। ऐसे में पुर्तगाल सरकार ने जो फैसला लिया है कि ड्यूटी खत्म होने के बाद न कोई वाट्सऐप न कोई मेल। सब कुछ बंद। यह एक साहसिक कदम है। भारत सरकार को पुर्तगाल सरकार से कुछ सीखना चाहिए। भारत सरकार को अभी अंदाजा नहीं है कि बुरे हालात की वजह से तमाम कर्मचारी डिप्रेशन में चले गए हैं।
नोएडा की एक आईटी कंपनी में इंजीनियर सुपरवाइजर शैलेन्द्र दीक्षित का कहना है कि अगर सचमुच भारत सरकार ऐसा कोई कानून बना रही है तो इससे कर्मचारियों के साथ-साथ कंपनियों का भला होगा। अभी तो भारत में यह चलन है कि ज्यादातर सरकारी कानून कंपनियों के पक्ष में होते हैं। पूंजीवादी व्यवस्था तो कंपनियों के साथ ही रहती है। बहरहाल, सरकार जल्द से जल्द कानून बनाए। लंबे समय से, हम किसी कर्मचारी को उसके द्वारा खर्च किए गए समय से माप रहे थे, न कि परिणामों से। यानी यह देखा जा रहा था कि इस कर्मचारी ने 15 घंटे रोजाना कंपनी को दिए। लेकिन उस कर्मचारी की कद्र नहीं की गई जो कम समय में बेहतर नतीजे दे रहा था।
बहरहाल, एक सवाल यह है कि कर्मचारियों द्वारा घर परकिए गए खर्च को कौन भरेगा। दफ्तर के मुकाबले उनका घर पर ज्यादा खर्च हो रहा है। इसलिए घर से काम करने वाले कर्मचारियों को अलग से कुछ इंसेंटिव पर भत्ते के रूप में मिलना ही चाहिए। घर से काम करने वाले कर्मचारियों की सेहत का खास ख्याल रखा जाना चाहिए। क्योंकि वे घर पर किसी भी कंपनी को ज्यादा समय दे रहे हैं। इसलिए इसकी भरपाई तो कंपनियों को ही करना चाहिए।
कर्मचारियों की टिप्पणियां बता रही हैं कि वे प्रस्तावित कानून को लेकर अंधेरे में हैं। इसके बावजूद अगर वे सुझाव दे रहे हैं तो सरकार को उन्हें जरूर सुनना चाहिए। वैसे भी इस सरकार पर जब यह आरोप लग रहे हैं कि वो देश के कुछ उद्योगपतियों के इशारों पर काम कर रही है तो सरकार प्रस्तावित कानून में इतनी कड़ाई करे कि कर्मचारियों के मन में सरकार की छवि बदल सके। सरकार कर्मचारियों के मन की बात समझे और तभी कर्मचारी भी सरकार के मन की बात समझेंगे।
@Copyright yusuf kirmani and Hindivani
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