इस रामनवमी पर एक चमत्कार हुआ

- यूसुफ किरमानी 



रामनवमी के सुखद संदेश...


रामनवमी का जुलूस कल हमारे घर के पास गुज़रा। मेरा घर दिल्ली  के मुहल्ले में है। मुहल्ले से मतलब घेटो में रहने वाला अब्दुल मत समझिएगा। 


ऐसा जुलूस हर साल गुज़रता है। 


इस बार कुछ बदलाव था।


इस बार शोभायात्रा या जुलूस में एक नया नारा था- मोदी योगी अमर रहें।


यह नारा जय श्रीराम के नारे का अग़ला चरण है।






जब हम नए नारे देते हैं तो सुखद अनुभूति होती है।


रामनवमी एक धार्मिक त्यौहार है।


भारत में रामनवमी पर इस नए नारे का लगना सनातन धर्म के लिए गौरवशाली पल होना चाहिए। 


आख़िरकार मोदी-योगी ज़िन्दा कौम की निशानी हैं। 


सनातन धर्म में दो राजनीतिक नेताओं का रामनवमी पर पूजा जाना एक धर्म के प्रगतिशील होने की निशानी ही कही जाएगी।


ऐसे धर्म को प्रणाम। वो दरबारी कवि, कथाकार, शायर, पत्रकार कहाँ हैं जो इन गौरवशाली पलों को कलमबंद नहीं कर रहे हैं।


ख़ैर, जाने दीजिए। मैं लिख रहा हूँ, क्या कम है? मेरा कंटेंट मुफ़्त है। कोई शुल्क नहीं। 


आप बोर हो रहे हैं। आप जो पढ़ना चाहते हैं वो माल हमारी दुकान में नहीं है।


आइए, विषय परिवर्तन करते हैं। ये विषय पसंद पाएगा।


भारत के कुछ हिस्सों में रामनवमी पर हिंसा की घटनाएँ भी हुईं। दरगाहों और मस्जिदों में घुसकर कुछ शरीफ तत्वों ने धार्मिक झंडे भी लहराए। झंडा लहराने वाले 5 शरीफ़ और उनकी सुरक्षा करते 15 पुलिस वाले। मुरादाबाद में तरावीह की नमाज़ पढ़ रहे टोपी वालों पर शरीफ तत्वों ने हमला कर दिया। एफआईआर टोपी वालों पर हुई।


यह होना ही था। अब हर रामनवमी पर इस तरह की घटनाएँ आम हैं। चूँकि रमज़ान चल रहा है तो मस्जिदों के सामने अगर पुरुषार्थ नहीं दिखाया तो धर्म ध्वजा कैसे लहराएगी?

हिन्दू समय में अगर पुरुषार्थ न दिखाया तो वो समय कब आएगा। पाँच सौ साल मुग़ल ले गए। तीन सौ साल अंग्रेज ले गए। कुछ दशक अंग्रेजों के मुखबिर अगर न ले पाए तो यह हिन्दू समय कैसे कहलाएगा। हिन्दू समय में शरीफ तत्वों का बोलबाला है।


इस हिन्दू समय को दर्ज कीजिए। किसी भी रूप में दर्ज कीजिए। चाहे सब याद रखा जाएगा वाले अंदाज में...


थोड़ा गंभीर बात करते हैं। कलमकारों के बहुरूपियेपन पर नज़र डालते हैं।


कवि अपनी कविताएं, कहानीकार अपनी कहानियाँ हिन्दू समय के अनुसार ढाल रहे हैं। सगर्व कम्युनिस्ट कहने वाले चतुर्वेदी, वाजपेयी, मिश्रा, वर्मा, शर्मा, अग्रवाल, गुप्ता, खान, वजाहत वग़ैरह सब हिन्दू समय के नए हस्ताक्षर बनने को आतुर हैं। वजाहत  गोडसे का नया प्रोटोटाइप पेश कर रहा है। गोडसे की संतानें केंचुल बदल कर आ रही हैं। वाजपेयी पेरिस में जाकर इंटरव्यू देता है और हिन्दी कविता में हिन्दू समय के न होने पर पछतावा करता है। 


छद्म कम्युनिस्ट क़लमकार  या “वामी कलमकार” निखर कर सामने आ रहे हैं। अकादमी पुरस्कारों के नए नियम गढ़े जा रहे हैं। 



बेचारे मुसलमान


 चंद लोग धर्मनिरपेक्षता और भाईचारा बचाने के लिए अभी भी सामने वाले के हर त्यौहार पर सदाशयता दिखाते रहते हैं। अब जैसे मैसूर के एक मंदिर के बाहर कुछ टोपी वाले “कोसाम्बरी” और “पन्नका” प्रसाद बांट रहे हैं। यह शहीद स्वतंत्रता सेनानी टीपू सुल्तान के समय से चली आ रही परंपरा को निभाया जा रहा है। वही टीपू सुल्तान जिसने अंग्रेजों से युद्ध किया था। आज उन्हीं अंग्रेजों के मुखबिर टीपू सुल्तान को गालियाँ देकर हिन्दू समय की रूपरेखा पेश कर रहे हैं।

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तो ऐसी धर्मनिरपेक्षता को ओढ़ें या बिछाएँ।  

हे राम...

गंगा जमुनी तहज़ीब के यकीनकर्ताओं चोले और टोले बदलिए। गंगा जमुनी तहज़ीब को पावन गंगा में बहा दीजिए। अगली राम नवमी का इंतज़ार कीजिए। कोई नया नारा ज़रूर आएगा। हिन्दुत्व के नए पोस्टर ब्वॉय भी आएंगे। पूजे जाएंगे। सनातन धर्म और प्रगतिशील बनेगा। लेकिन आप लोग टीपू सुल्तान पर निहाल हो रहे हैं। नए नायक तलाशिए।

@yusufKirmani यूसुफ किरमानी 







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