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पाकिस्तान में कट्टरपंथी पुराने अजेंडे पर ही चल रहे हैं

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पाकिस्तान में चंद दिन पहले वहां के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या कर दी गई। वह पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून (ब्लासफेमी) के गलत इस्तेमाल व इसमें से सजा-ए-मौत की धारा को खत्म किए जाने के प्रमुख पैरोकार थे। बीना सरवर पाकिस्तान की जानी-मानी पत्रकार और डॉक्युमेंटरी फिल्ममेकर हैं। वह इस समय वहां के प्रमुख समचारपत्र जंग ग्रुप में संपादक – स्पेशल प्रोजेक्ट्स (अमन की आशा) हैं। उन्होंने ब्राउन यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी आफ लंदन के अलावा हॉरवर्ड यूनिवर्सिटी से भी पढ़ाई की है। बीना सरवर से पाकिस्तान के मौजूदा हालत पर मैंने बातचीत की है...यह इंटरव्यू नवभारत टाइम्मस अखबार में 20 जनवरी,2011 को प्रकाशित हुआ है और उसकी वेबसाइट पर आनलाइन भी उपलब्ध है... पाकिस्तान में उदारवादी नेता व पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या को आप राजनीतिक या कट्टरपंथियों की करतूत मानती हैं? दोनों ही। जिस व्यक्ति ने उनकी हत्या की है, वह दिखता तो कट्टरपंथी है लेकिन दरअसल इस हत्या का मतलब और मकसद कुछ और भी है। हत्यारे मलिक मुमताज कादरी की ड्यूटी एलीट फोर्स में सिर्फ पंजाब के गवर्नर की सुरक्षा के लिए लगाई गई। हालांकि इससे पहले उसे

तेरा जाना

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रुपया-पैसा, बड़ा कारोबार होने के बावजूद वह मौत से हार गए। मौत को वह चुनौती नहीं दे सके। हालांकि उन्होंने समय-समय पर न जाने कितनों को चुनौती दी और हर लड़ाई को जीतते रहे लेकिन मौत से हुई इस लड़ाई में उन्हें पराजित होना पड़ा। 3 जनवरी की दोपहर जब मैं जीटी रोड पर ड्राइव कर रहा था और मेरा मोबाइल एसएमएस झेलते-झेलते शायद गुस्से में गरम हो चुका था, तभी एक जानी-पहचानी आवाज ने ध्यान सड़क से कहीं और भटका दिया। उन्हीं की मौत की खबर थी। हतप्रभ...कहां पुष्टि हो, क्या किया जाए। एक मित्र को रिंग किया तो उन्होंने पुष्टि की। तमाम यादें,मुलाकातें एक-एक कर याद आने लगीं। उनका सिगरेट के हर कश के साथ कुछ कहने का बेलौस अंदाज, फिर फैसला लेने का ऐलान होंठ काटकर ऐसे बयान करना मानों इसे बदल पाना मुश्किल होगा।...कुछ गलत फैसले, कुछ सही फैसले... पता नहीं उनकी नेतृत्व करने की क्षमता से मैं इस कदर क्यों प्रभावित था कि मित्र लोग इसे चाटुकारिता तक मानते रहे। हालांकि उनसे मुझे निजी लाभ या अन्य किसी तरह का लाभ कभी नहीं मिला। लेकिन जिस तरह कंपनी की बैठकों में वह मेरी ईमानदारी का प्रचार करते तो मुझे लगता कि इतना बड़ा पूंजीपत

पिछड़ों की राजनीति अब पीछे नहीं आगे बढ़ेगी

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बिहार किसे चुनता है, इसका इंतजार सभी को था। तमाम नेता चमत्कार की उम्मीद कर रहे थे। राजनीतिक विश्लेषक भी अपनी-अपनी धारा में बह रहे थे। जाने-माने राजनीतिक टिप्पणीकार और दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रफेसर महेश रंगराजन की नजर भी इस चुनाव पर थी। नतीजे आने के बाद मैंने उनसे बात कीः क्या नीतिश को वाकई विकास के ही नाम पर वोट मिला बिहार के लोगों ने सिर्फ विकास के लिए वोट नहीं दिया है। भागलपुर, लातेहार, जैसे कई नरसंहार झेल चुका बिहार पहले से ही राजनीतिक रूप से जागरूक था और उसने हर बार विकास के लिए ही वोट दिया था लेकिन जिस सामाजिक न्याय को उससे छीन लिया गया था, इस चुनाव में उसे वापस लाने की छटपटाहट साफ नजर आ रही थी। नीतिश कुमार ने जनकल्याण की नींव तो पिछले ही चुनाव में डाल दी थी। लालू प्रसाद यादव के वक्त से भी पहले बिहार अपना राजनीतिक चेहरा बदलने के लिए परेशान था लेकिन गुंडो और बाहुबलियों की सेना उसे ऐसा करने से बार-बार रोक रही थी। पर उन्होंने ऐसा क्या किया नीतिश आए तो उन्होंने 50 हजार ऐसे गुंडों को सीधे जेल भेज दिया। भागलपुर के हत्यारों को सजा दिलाई। नीतिश ने बिहारी अस्मिता का नारा दिया

इसे जरूर पढ़ें - भारत मां के ये मुस्लिम बच्चे...

यह लेख सतीश सक्सेना जी ने लिखा है। हम दोनों एक दूसरे को व्यक्तिगत रुप से नहीं जानते। पर उन्होंने एक अच्छे मुद्दे पर लिखा है। इसके पीछे उनका जो भी उद्देश्य हो...बहरहाल आप इस लिंक पर जाकर इस लेख को जरूर पढ़े। अगर आपको आपत्ति हो तो भी पढ़ें और आपत्ति न भी हो तो भी पढ़ें। यह लेख एक नई बहस की शुरुआत भी कर सकता है। इससे कई सवाल आपके मन में भी होंगे। उन सवालों को उठाना न भूलें। चाहें दोबारा वह सवाल यहां करें या सतीश सक्सेना के ब्लॉग पर करें। पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं - ब्लॉग - मेरे गीत, लेख - भारत मां के ये मुस्लिम बच्चे, लेखक - सतीश सक्सेना