इसे जरूर पढ़ें - भारत मां के ये मुस्लिम बच्चे...

यह लेख सतीश सक्सेना जी ने लिखा है। हम दोनों एक दूसरे को व्यक्तिगत रुप से नहीं जानते। पर उन्होंने एक अच्छे मुद्दे पर लिखा है। इसके पीछे उनका जो भी उद्देश्य हो...बहरहाल आप इस लिंक पर जाकर इस लेख को जरूर पढ़े। अगर आपको आपत्ति हो तो भी पढ़ें और आपत्ति न भी हो तो भी पढ़ें। यह लेख एक नई बहस की शुरुआत भी कर सकता है। इससे कई सवाल आपके मन में भी होंगे। उन सवालों को उठाना न भूलें। चाहें दोबारा वह सवाल यहां करें या सतीश सक्सेना के ब्लॉग पर करें। पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं -

ब्लॉग - मेरे गीत, लेख - भारत मां के ये मुस्लिम बच्चे, लेखक - सतीश सक्सेना

टिप्पणियाँ

S.M.Masoom ने कहा…
सतीश जी ने एक बेहतरीन लेख़ लिखा है.
Satish Saxena ने कहा…

शुक्रिया भाई जी ,

"इसके पीछे उनका जो भी उद्देश्य हो..."
यह पंक्ति सरल स्वभाव एवं आम पाठक को दिग्भ्रमित कर सकती है, खुद मुझे नकारात्मक विचार आये क्योंकि ब्लाग जगत में लेखन अक्सर भिन्न उद्देश्यों को लेकर ही होता है !

बहरहाल मेरा उद्देश्य लोगो और समाज के मन में बैठे अविश्वास और अपने ही घर में हो रहे भेदभाव को मिटाने का प्रयत्न करना मात्र है ! मैं वही लिखता हूँ जो महसूस करता हूँ और अगर कुछ समझदारों का ध्यान आकर्षित करने में सफल हो पाऊँ तो यह लेखन मेरे लिए सुखद हो जायेगा फिलहाल तो सिर्फ तिरस्कार अधिक मिलता है !

भारतीय मुस्लिम समुदाय को सहयोग और उनके हित की चिंता केवल और केवल हिन्दू समुदाय को करनी चाहिए ऐसा मेरा मानना है ! अशिक्षित लोगों के इस देश में भीड़ को समझाने की हिम्मत करने वाले विरले ही हैं अधिकतर यह भीड़ के नेता अपने हाथ जलने से बचाने के लिए, दूर से ही कन्नी काटते नज़र आते हैं !

अफ़सोस है कि जब सही बात कहने वालों को गाली दी जाती है तो उन्हें सहारा देने उस ख़राब वक्त पर कोई नहीं खड़ा होता !

अच्छा लगा कि आपने बेबाकी से अपनी बात कही हालाँकि विषय बहुत लम्बा है !
Tausif Hindustani ने कहा…
वास्तविकता के बेहद करीब है ये लेख
dabirnews.blogspot.com
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
@ आदरणीय सतीश सक्सेना जी ! आपकी चिंता जायज़ है और इसके प्रति आपकी फ़िक्रमंदी भी सराहनीय है , लेकिन यह बात भी क़ाबिले ग़ौर है कि बहुत से ऐसे हिंदी लेखक भी हैं जो अपना जायज़ मक़ाम न पा सके हालाँकि वे हिंदू हैं ।
जब इस देश में हिंदी के हिंदू लेखक ही यथोचित सम्मान से वंचित हैं तो फिर मुसलमान लेखकों के साथ न्याय कैसे हो पाएगा ?
इससे भी ज्यादा क़ाबिले फ़िक्र बात यह है कि लेखकों की दुर्दशा की बात तो जाने दीजिए , खुद हिंदी को ही कौन सा उसका जायज़ मक़ाम मिल गया है ?
इस देश की बेटी होने के बावजूद हिंदी आज भी उपेक्षित है , हिंदी की दशा शोचनीय है ।
हक़ीक़त यह है कि एक भ्रष्ट व्यवस्था से किसी को भी कुछ मिला ही नहीं करता , न हिंदू को और न ही मुस्लिम को ।
मिलता है केवल उन्हें जो व्यवस्था की तरह खुद भी भ्रष्ट होते हैं । आज भ्रष्ट नेता, डाक्टर, इंजीनियर और जज 'आदर्श घोटाले' कर रहे हैं । IAS ऑफ़िसर्स देश के राज़ दुश्मनों को बेच रहे हैं ।
बिना व्यवस्था को बेहतर बनाए देशवासियों का भला होने वाला नहीं , यह तय है ।
देश की व्यवस्था को बेहतर कैसे बनाया जाए ?
बुद्धिजीवी इस पर विचार करें तो इसे बौद्धिक ऊर्जा का सही माना जाएगा ।
ahsaskiparten.blogspot.com
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
@ जनाब यूसुफ़ किरमानी साहब ! कम लोग होते हैं ठीक बात सही मौके पर बेखटके कहने का साहस रखते हैं ।
मुझे आपके विचार अच्छे लगे इसलिए आप भी अच्छे लगे ।
हो सके तो हमारे ब्लाग को भी अपनी आमद से ज़ीनत बख़्शें ।
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
@ जनाब यूसुफ़ किरमानी साहब ! कम लोग होते हैं ठीक बात सही मौके पर बेखटके कहने का साहस रखते हैं ।
मुझे आपके विचार अच्छे लगे इसलिए आप भी अच्छे लगे ।
हो सके तो हमारे ब्लाग को भी अपनी आमद से ज़ीनत बख़्शें ।
shahroz ने कहा…
bharat maa ke ek hindu bachche ke leh par aapki prtikirya achchi lagi!
Ayaz ahmad ने कहा…
यूसुफ़ साहब आपने बिल्कुल ठीक सवाल किया
VICHAAR SHOONYA ने कहा…
सतीश जी ने एक बहुत सुन्दर लेख लिखा है इसके लिए उन्हें बधाई. लेख में कही गयी सभी बातों से मैं सहमत हूँ बस मुझे हर जगह लोगों को उनकी धार्मिकता के हिसाब से बाटने की कोशिश अच्छी नहीं लगती. ये भारत माँ के हिन्दू बच्चे हैं ये मुस्लमान बच्चे ये सिख ये ईसाई ये बात सिर्फ वहीँ आनी चाहिए जब वे अपनी इबादतगाह में जा रहे हों. उसके अतिरिक्त और किसी भी जगह पर ये कोशिश मुझे कांग्रेसी कोशिश लगाती है. हिंदी में वो लिख रहा है जिसे हिंदी में लिखना और खुद को व्यक्त करना सहज लगता है. मैं तो नहीं समझता कोई अपनी माँ को छोड़ दुसरे की माँ की बेवजह और बिना लालच के सेवा करेगा.
Minoo Bhagia ने कहा…
i agree with dr jamal ' जब इस देश में हिंदी के हिंदू लेखक ही यथोचित सम्मान से वंचित हैं तो फिर मुसलमान लेखकों के साथ न्याय कैसे हो पाएगा ?'
Satish Saxena ने कहा…

@ विचारशून्य जी,
हर व्यक्ति की पसंद और नापसंद उसके नज़रिए पर ही निर्भर है !

नापसंद जाहिर करना आसान काम नहीं ! यह कुछ खास लोगों में, कुछ अधिक ही होता है ! हर व्यक्ति अपनी पहचान अपने विचारों से करा देता है और लोगों को इनकी पहचान है ! भेदभाव का विरोध करना ही मात्र उद्देश्य है जिन्हें लगता है कि मैं ठीक कह रहा हूँ वे इसे पसंद भी करेंगे !

और जिन्हें मेरा मत पसंद नहीं वे मुझे न पढने के लिए स्वतंत्र हैं ! मैं भी ऐसा ही करता हूँ ! आशा है आप बुरा नहीं मानेंगे और हाँ आप को पढना वाकई मुझे अच्छा लगता है !
सादर

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