स्लमडॉग मिलियनेयर : इन खुशियों को साझा करें
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-अलीका
स्लम डॉग मिलियनेयर को 8 आस्कर पुरस्कार मिलने की खुशी कम से कम प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जबर्दस्त ढंग से दिखाई दे रही है। हालांकि यह मूल रूप से ब्रिटिश फिल्म है लेकिन हम भारतीयों को ऐसी खुशियां साझा करते देर नहीं लगती जिसमें भारत के लोगों का कुछ न कुछ योगदान रहता हो। रिचर्ड एडनबरो की फिल्म गांधी से लेकर स्लम डॉग... तक मिले पुरस्कारों से तो यही बात साबित होती है। लेकिन स्लम डॉग कई मायने में कुछ अलग हटकर है। जैसे इसके सारे पात्रों में भारतीय छाए हुए हैं और इस फिल्म की जान इसका संगीत तो बहरहाल खालिस देसी ही है। मुझे अच्छी तरह याद है कि इस फिल्म में ए. आर. रहमान के म्यूजिक को जब जारी किया गया था और गोल्डन ग्लोब अवार्ड जीतने के बाद तो लोगों ने मुंह बना लिया था और स्लम डॉग... के म्यूजिक को पूरी तरह रिजेक्ट कर दिया था। लोग आपसी बातचीत में कहते थे कि रहमान ने इससे बेहतर म्यूजिक कई फिल्मों में दिया है। यह उनका बेस्ट म्यूजिक नहीं है।
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मुद्दा तो यह उठना चाहिए कि इससे पहले मदर इंडिया जैसी फिल्म या बॉलिवुड की किसी भी फिल्म को आस्कर की जूरी ने पुरस्कार लायक क्यों नहीं माना। आमिर खान की बच्चों के मनोविज्ञान पर बनी सशक्त फिल्म तारे जमीन पर कम से कम एकाध आस्कर पुरस्कार लायक तो है ही लेकिन उसकी अनदेखी क्यों की गई। दरअसल, हम भारतीयों की पुरानी आदत रही है लकीर पीटने की और हम लोग भी उसी सिलसिले को आगे बढ़ाए चले जा रहे हैं। खुद नया करने की बजाय सारा वक्त दूसरों को कोसने में लगाते हैं।
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