मुल्ला जी की दाढ़ी पर सवाल



-अलीका
मध्य प्रदेश के एक मुस्लिम स्टूडेंट को उसकी दाढ़ी कटाने का आदेश देकर एक स्कूल ने फिर से इस बहस को जन्म दे दिया कि आखिर इस देश में किसी अल्पसंख्यक के मूलभूत अधिकार की व्याख्या क्या फिर से करनी चाहिएय़ क्योंकि इस मामले में जिस तरह हाई कोर्ट ने भी स्कूल का साथ दिया है, उससे इस तरह के सवाल तो खड़े ही किए जाएंगे।
पहले जानिए कि पूरा मामला क्या है। मध्य प्रदेश में विदिशा जिले के निर्मला कॉन्वेंट हायर सेकेंडरी स्कूल स्कूल में 10 वीं कक्षा के छात्र मोहम्मद सलीम ने धार्मिक कारणों से दाढ़ी रखी और जब वह स्कूल में आया तो स्कूल की ईसाई प्रिंसिपल ने उसे नोटिस जारी करते हुए कहा कि या तो वह अपनी दाढ़ी कटाकर स्कूल में आए या फिर इस स्कूल से अपना नाम कटाकर कहीं और चला जाए। इस नोटिस का छात्र पर गहरा असर हुआ। उसने अदालत की शरण ली। हाई कोर्ट तक मामला पहुंचने के बाद हाई कोर्ट ने भी स्कूल का ही साथ दिया औऱ कहा कि अल्पसंख्यकों को अपने स्कूल के नियम खुद बनाने का अधिकार है। इसलिए इस बारे में कोर्ट उस स्कूल को कोई नोटिस जारी नहीं कर सकता। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आ गया है और 30 मार्च को इस मामले की अगली सुनवाई होनी है। (पूरी खबर पढ़ें- The Hindustan Times dated 24th March 2009 Page 11)हालांकि भारत में इस तरह के मामलों को कोर्ट में कम ही चुनौती दी जाती है। यह तो सभी को पता है कि ईसाईयों के अलावा इस देश में सिख और मुसलमानों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा मिला हुआ है। भारतीय संविधान में यह बात बहुत साफ-साफ दर्ज है कि इस देश में हर समुदाय के व्यक्ति को पूरी धार्मिक आजादी है और यह उसके मूलभूत अधिकारों में आता है।
देश के दो बड़े मुस्लिम शिक्षण संस्थान जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में तमाम ऐसे हिंदू छात्र पढ़ते हैं जो बालों में जटा (पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे चुरकी भी कहा जाता है) रखते हैं और जनेऊ पहनकर यूनिवर्सिटी या उससे जुड़े कॉलेज में जाते हैं। यह तो हुई इन दो संस्थानों की बात। सिख बच्चे आपको हर स्कूल में मिल जाएंगे। जिनके सिर पर पगड़ी होना तो सबसे आम बात है लेकिन प्रोफेशनल पढ़ाई करने वाले सिख युवक तो दाढ़ी भी रखते हैं। पिछले दिनों फ्रांस में जब वहां के स्कूलों में पगड़ी डालकर आने वाले सिख स्टूडेंट्स से कहा गया कि उन्हें अपने लंबे-लंबे बाल कटाने होंगे और बिना पगड़ी स्कूल-कॉलेज में आना पड़ेगा तो इस पर विश्वव्यापी प्रतिक्रिया हुई और भारत ने सरकारी तौर पर इस मामले में नाराजगी प्रकट की। अमेरिका और इंग्लैंड में इस तरह की कोई पाबंदी नहीं है। इंग्लैंड में ही पिछले दिनों मुस्लिम लड़कियों के स्कॉर्फ अथवा चादर (रिदा) ओढ़कर आने पर पाबंदी लगाने की कोशिश की गई लेकिन भारी विरोध के चलते ब्रिटेन की सरकार को यह आदेश वापस लेना पड़ा।
कुछ ऐसा ही मामला दिल्ली पुलिस में एक मुस्लिम पुलिसकर्मी के दाढ़ी रखने पर हुआ था। उसकी दाढ़ी के कारण कई अफसर उसका मजाक उड़ाते थे और इस वजह से उसकी तरक्की नहीं हुई। उसे सुप्रीम कोर्ट में इंसाफ मिला।
बड़ा सवाल...
भारत में सदियों से गुरुकुल की पढ़ाई बहुत मशहूर रही है। अब भी देश में कुछ स्थानों पर गुरुकुल बचे हुए हैं। वहां पर एक खास ड्रेस और जटा रखवाकर पढ़ाई कराई जाती है। वहां जिन बच्चों को एडमिशन मिलता है, वे और उनके मां-बाप इसे बहुत बेहतर तरीके से जानते हैं कि उन्हें गुरुकुल के नियमों का पालन करना होगा। यहां पर सवाल यह है कि क्या देश के किसी भी ईसाई स्कूल ने अपने नियमों में यह शामिल कर रखा है कि वहां बना दाढ़ी रखने वालों को ही एडमिशन मिलेगा। ऐसा उनकी किसी भी बुकलेट या एडमिशन के नियमों में नहीं लिखा है।
मेरा भाई और कई रिश्तेदारों के बच्चे तमाम ईसाई कॉन्वेंट स्कूलों से पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन ऐसे किसी भी नियम की जानकारी मुझे नहीं है जिसमें यह पहले से शर्त के तौर पर शामिल हो। इन सभी स्कूलों में सिख बच्चे भी हैं और वे बाकायदा पगड़ी पहनकर आते हैं। इन स्कूलों में ईसाई चर्च के अनुरूप प्रार्थना रूम हैं जहां बच्चों को प्रार्थना के लिए ले जाया जाता है। बच्चे वहां ईसा मसीह की तस्वीर के सामने अपने सिर झुकाते हैं और कई बार उनसे एक खास तरह की प्रार्थना कराई जाती है। लेकिन इसका किसी तरह का विरोध मेरे परिवार ने या अन्य लोगों ने कभी नहीं किया। यही नहीं इन तमाम स्कूलों में कई ऐसे परिवारों के बच्चे भी हैं जिनके पिता कट्टर हिंदूवादी संगठन आरएसएस के सदस्य हैं और शाखा में भी जाते हैं। लेकिन उनमें से किसी ने भी इन स्कूलों में ऐसी किसी बात का विरोध नहीं किया।
यह समझ से परे है कि आखिर हाई कोर्ट ने भारतीय संविधान की मूलभावना को समझे बिना कैसे यह फैसला दे दिया कि ईसाई स्कूल का फैसला सलीम के बारे में सही है। मेरा इरादा हाई कोर्ट के फैसले की आलोचना का नहीं है लेकिन यह सवाल उठना तो जायज है कि क्या इस देश में अल्पसंख्यकों के मूलभूत अधिकारों की व्याख्या फिर से होनी चाहिए। क्या भारतीय जनता पार्टी जिस संविधान संशोधन की बात करती है, वह कुछ इसी तरह का होगा। अगर ऐसा हुआ तब तो सभी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं को फिर से विचार करना होगा और उन्हें अपने नियम नए सिरे से बनाने होंगे।
अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले का निपटारा किस तरह करता है। अगर वह ईसाई स्कूल के स्टैंड को सही ठहराता है तब तो एक मिसाल कायम हो जाएगी और कई सारी बातें फिर से परिभाषित होंगी लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट सलीम नामक छात्र के स्टैंड को ही सही ठहराता है तब तो भारतीय संविधान के मूलभूत अधिकारों की जिस बात को मैंने उठाया है, वह सही है।

-अलीका

टिप्पणियाँ

बिना बात का बबाल खडा हो रहा है . सिखों की नजीर दी गई ठीक है यदि हर मुस्लिम शरियत के हिसाब से रहे तो दाढ़ी सब रखे किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए पर यह कोई लागु करवाएगा तो आप ही तालिबानी कहोगे .
Dr. Amar Jyoti ने कहा…
दाढ़ी,चोटी,जनेऊ के झगड़ों से कब उबरेंगे हम लोग!
पता नहीं कब तक उलझे रहेंगे हम इन सब फ़िजूल बातों में. सुन्दर आलेख.बधाई.
Unknown ने कहा…
Again it is a rival example between Islam & Christianity .MP is ruled by the BJP(a hindu minded people). so the Govt is also involved somehow directly or indirectly

Hannan

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