मां की कहानी...कुछ कहना है उनका



मां मुझे भी एक कहानी सुनाओ...पर एनजीओ उदय फाउंडेशन ने कुछ ऐतराज उठाया है। हालांकि उन्होंने यह ऐतराज फोन पर किया है और लिखकर संक्षेप में जो भेजा है उसमें यह नहीं बताया कि दरअसल उन्हें ऐतराज किस बात पर है।

पहले तो उनका पत्र पढ़ें जो उन्होंने लिखा है और नीचे उससे जुड़े लिंक भी देखें...

Dear Sir

It is really shocking that how come a senior journalist like you can write some thing without going through the correct facts. It doest matter that it was published any paper or not . What really matter is hurting a sentiments of grass roots workers like us.

As u asked today to sent you any news item where govt hospital details are being mentioned.

Warm Regards

Rahul Verma
Founder
The Uday Foundation

पहली बात यह बता दूं कि वह लेख उदय फाउंडेशन (Uday Foundation) के खिलाफ नहीं था। उसमें मैंने एक मुद्दा उठाया था कि आखिर क्यों तमाम एनजीओ (NGO) प्राइवेट अस्पतालों में ही अपनी सारी गतिविधियां चलाते हैं। उन्हें सरकारी अस्पताल क्यों नहीं दिखाई पड़ते, जहां आम आदमी सबसे ज्यादा पहुंचता है। कुल मिलाकर यही मुद्दा उस लेख के केंद्र में था। उदय फाउंडेशन ने अस्पतालों में जाकर विभिन्न रोगों से ग्रस्त बच्चों को कहानी सुनाने की शुरुआत की। प्रोग्राम निश्चित रूप से अच्छा है और इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है लेकिन हमारा मुद्दा अब भी वही है कि आखिर सरकारी अस्पतालों में एनजीओ क्यों नहीं पहुंच रहे हैं। उनकी सरकारी गतिविधियां अपोलो हॉस्पिटल, मैक्स, एस्कार्ट्स फोर्टिस अस्पतालों तक ही क्यों सीमित हैं।

एनजीओ चलाने वालों की अपनी दिक्कतें हो सकती हैं। जैसा कि मुझे कुछ एनजीओ वालों ने ही बताया कि वे अपना कोई भी प्रोजेक्ट शुरू करने से पूर्व सबसे पहले सरकारी एजेंसियों से बात करते हैं लेकिन उनकी कार्रवाई पूरी होने में कभी तीन महीने तो कभी छह महीने भी लग जाते हैं। ऐसे में एनजीओ इतने दिन कैसें रूकें और क्या करें। मुझे भी सही मायने में उनकी यह दिक्कत समझ आती है और सरकारी एजेंसियों का जो हाल है, वह सभी को पता है। लेकिन इस संबंध में मेरा यह कहना है कि ठीक है आप प्राइवेट अस्पतालों में अपनी गतिविधियां चलाएं लेकिन अगर तीन या छह महीने में ही किसी सरकारी अस्पताल या डिस्पेंसरी में जाने के लिए आपके प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलती है तो आप मौका न चूकें। अगर साल भर में आप दस प्राइवेट अस्पतालों में जाते हैं तो कम से कम एक सरकारी अस्पताल में तो तमाम लालफीताशाही ( Red tapism )के बावजूद पहुंचा जा सकता है।



उस लेख में उदय फाउंडेशन की नीयत (Objectives) और गतिविधियों में किसी प्रकार का संदेह नहीं किया गया था। अगर आप उनकी वेबसाइट पर जाएं तो पाएंगे कि यह एनजीओ काफी कुछ कर रहा है और वाकई सोसाइटी (Society) को उसकी सख्त जरूरत भी है। चाहे वह रेयर ब्लड (Rare Blood Group) मुहैया कराना हो या फिर तमाम अजीबोगरीब रोगों से ग्रस्त बच्चों को इलाज मुहैया करना हो, उदय फाउंडेशन ने इस क्षेत्र में काफी कुछ किया है। अगर उस वेबसाइट में राहुल वर्मा, जो इस एनजीओ को चला रहे हैं, उनकी और उनके बच्चे की कहानी पढ़ेंगे तो प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे।

लेकिन यहीं पर कुछ रुककर मैं कुछ और कहना चाहूंगा।

उदय फाउंडेशन ने पिछले दिनों एक गंभीर मुद्दा उठाया था कि पिछले दिनों अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स AIIMS) में किस तरह कुछ समय के अंतराल में काफी बच्चों की मौत हो गई थी। इस मुद्दे पर राष्ट्रव्यापी बहस (National Debate) भी हुई। हालांकि मैं न तो एम्स से जुड़ा हूं और न ही उसकी वकालत करना चाहता हूं। लेकिन मेरा यह कहना है कि सरकारी अस्पताल में इस तरह के मुद्दे तो मिल ही जाते हैं लेकिन प्राइवेट अस्पतालों की लूटखसोट के खिलाफ कौन सा एनजीओ खड़ा होता है। पिछले दिन अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स आफ इंडिया ने प्राइवेट अस्पतालों की लूटखसोट के खिलाफ बाकायदा सीरिज चलाकर खबरें छापीं लेकिन किसी एनजीओ ने इसे मुद्दा बनाने की कोशिश नहीं की। एम्स देश का जाना-मान संस्थान है। देशभर से लोग यहां इलाज कराने आते हैं और यहां पर उन्हें काफी विश्वास है। एम्स ने यह प्रतिष्ठा एक दिन में विज्ञापनों और अखबारों में चमत्कारिक सर्जरी की पॉजिटिव खबरें छपवाकर नहीं हासिल की है। देश में और खासकर राजधानी दिल्ली में प्राइवेट अस्पतालों को यह रुतबा पाने के लिए अभी मीलों यह सफर तय करना है।

मेरा मकसद क्या है...

इस सारी बहस के पीछे मेरा मकसद यह है कि चैरिटी वाली संस्थाओं और प्राइवेट संस्थाओं को जनता के प्रति जवाबदेह (Accountability) बनाना। यह बहुत जरूरी है। अगर आप ने कॉरपोरेट सेक्टर (Corporate Sector) से या पब्लिक से डोनेशन लिया है या फिर सरकार से सस्ती जमीन लेकर गरीबों के इलाज के नाम पर फाइव स्टार अस्पताल खड़ा कर दिया है तो आपको पब्लिक के प्रति जवाबदेह तो होना ही पड़ेगा।

मैं तो अपने सभी ब्लॉगर साथियों और इसके पाठकों से अपील करता हूं कि अगर उन्हें भी इस तरह की जवाबदेही में कहीं कोई कमी नजर आती है तो वे इन विषयों पर कलम चलाएं। दिल्ली में तमाम एनजीओ और अस्पातालों के बारे में लिखना आसाना है। जरूरत है कि दूरदराज के इलाकों में जो संस्थाएं इस तरह का काम कर रही हैं, उन पर भी लिखा जाए। अगर कोई एनजीओ वाकई लोगों के जीवन में कुछ सार्थक बदलाव ला सका है तो वह बात भी सामने आनी चाहिए।

इस लेख का संदर्भ समझने के लिए मेरा यह लेख भी पढ़ें...

http://hindivani.blogspot.com/2009/09/blog-post_06.html


अपने ईमेल में राहुल वर्मा द्वारा भेजे गए कुछ लिंक....

Please go through following news item on IANS

http://www.sindhtoday.net/news/1/44354.htm

also you can learn read more news about the same on our website

http://www.udayfoundationindia.org/news-room.php


Please also do read who i am, who is uday the name behind Uday Foundation at following link

http://www.udayfoundationindia.org/about-us.php

टिप्पणियाँ

Ek ziddi dhun ने कहा…
NGO ki dhandhebaji jyadatar saf-suthree jaghon par hi chal pati hai.

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