राहुल तोड़ दो इस सिस्टम को


राहुल गांधी के बारे में आपकी क्या राय है...शायद यही कि वह मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं और एक ऐसे खानदान से हैं, जिसके अनुकूल सारी परिस्थितियां हैं। उनकी मॉम देश की सत्ता को नेपथ्य से चला रही हैं। उनके आसपास जो कोटरी है वह राहुल को स्थापित करने में जुटी हुई हैं। पर, जनाब अगर आपकी दिलचस्पी भारतीय राजनीति में जरा भी है तो अपनी राय बदलिए। यह कोई जबर्दस्ती नहीं है लेकिन हां, कल आप अपनी राय जरूर बदलेंगे।

भारतीय राजनीति (Indian Politics) में होने जा रहे इस बदलाव का मैं चश्मदीद गवाह हूं। इन लम्हों के लिए मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं। जब मैंने पत्रकारिता शुरू की थी तो स्व. राजेंद्र माथुर सीख देते थे कि अगर भारत में पत्रकारिता करनी है तो भारत-पाकिस्तान बंटवारे से लेकर इंदिरा गांधी शासनकाल तक के घटनाक्रम को गहराई और बारीकी से जानना और समझना जरूरी है।...और आज जबकि भारतीय राजनीति में नेहरू के बाद स्टेट्समैन (Statesman) का खिताब पाने वाले अटलबिहारी वाजपेयी सीन से हट चुके हैं, आडवाणी की विदाई नजदीक है, मनमोहन सिंह की अंतिम पारी चल रही है और ऐसे में देश की दो महत्वपूर्ण पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी के पास एक दूसरे को काउंटर करने को दो ही शस्त्र हैं। कांग्रेस के पास राहुल टाइप राजनीतिक मिसाइल है तो बीजेपी के पास मोदी मार्का एटम बम है। दोनों ही पार्टियां आने वाले वक्त में इन्हीं दो हस्तियों के आसपास अपनी राजनीति को केंद्रित रखेंगी। चाहे आप राजनीति शास्त्र के स्टूडेंट हैं या फिर इस महान देश के लोकतांत्रिक मूल्यों (Democratic Values) में यकीन रखते हैं या साफ-साफ यूं कहें कि आप लेखक-पत्रकार ही क्यों न हों तो इन दो लोगों के मूवमेंट, इनके बयान इनकी कथनी-करनी पर नजर रखनी होगी।

अगर आप इन दो शख्सियतों की सामान्य तुलना करें तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे। पहले मोदी की बात। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विकास बीजेपी (BJP) या संघ (RSS) में कई चरणों में हुआ। मैं इस शख्स को तब से जानता हूं जब यह व्यक्ति पंजाब का प्रभारी हुआ करता था और चंडीगढ़ जैसे शहर में एक सामान्य जिंदगी गुजार रहा था। पंजाब में बीजेपी ने जो कुछ सीटें जीती थीं वह इसी आदमी के संगठन क्षमता की देन थी। पंजाब के एक मौजूदा मंत्री मनोरंजन कालिया तो आजतक इस आदमी के गुण गाते हैं। बीजेपी व संघ के गैर शादीशुदा नेताओं के बारे में आमतौर पर जो प्रचार (या कुप्रचार ही मान लेते हैं) चलता है, उसे लेकर मोदी भी अछूते नहीं रहे। मोदी को जब गुजरात का नेतृत्व मिला तो उन्होंने उसे संघ की प्रयोगशाला बनाकर बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं की बोलती बंद कर दी। यह अलग बात है कि बीजेपी को अब उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है और आगे भी चुकानी पड़ेगी। लेकिन मोदी के समर्थक इसे ही उनकी सफलता मानते हैं। गुजरात में हुए नरसंहार (Gujarat Genocide – Gujarat Massacre ) का सबसे बड़ा दाग भी इसी आदमी के माथे पर है। अभी एक दिन पहले जब इस शख्स ने कमांडो के शस्त्रों को लेकर उसकी पूजा (Worship of Weapon) की तो इस व्यक्ति की मनोवृत्ति (Thinking) का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।


दूसरी तरफ राहुल गांधी हैं जो मोदी के मुकाबले राजनीति में न तो परिपक्व हैं और न ही किसी पार्टी के कैडर (Party Cadre) ने उन्हें खड़ा किया है। यही बात उनके पक्ष में भी जाती हैं। मोदी जब अपने रात-दिन शस्त्रों की पूजा में लगा रहे हैं तो राहुल के दिन-रात दलितों के साथ बीत रहे हैं। शुरुआत में यही कहा गया कि यह सब सस्ती लोकप्रियता पाने का जरिया है लेकिन अब वही टिप्पणीकार अपनी राय बदल रहे हैं। राहुल के इस एक एक्शन ने यूपी की दलित मुख्यमंत्री मायावती की नींद उड़ा दी है जो दलितों को वोट बैंक के रूप में काफी दिनों से ट्रीट कर रही हैं। कांग्रेस का यह अकेला सांसद है जिसने नरेगा के फंड पर बारीक नजर रखी हुई है कि किस गांव में कौन सा राज्य कितना खर्च कर रहा है। इस नेता के पास ताजा आंकड़ा हमेशा उपलब्ध रहता है। मंगलवार (29 सितंबर) की रात दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू JNU) में जो कुछ हुआ, वह खबर शायद अभी आपकी नजरों से नहीं गुजरी होगी। पता नहीं खबरिया चैनल उसे दिखा रहे हैं या नहीं मुझे नहीं मालूम।

क्या हुआ जेएनयू में

मंगलवार की रात राहुल गांधी जेएनयू गए थे स्टूडेंट्स से सीधा संवाद करने लेकिन वहां हंगामा हो गया। इस मीटिंग में सिर्फ जेएनयू के ही स्टूडेंट्स को ही आने की अनुमति थी। किसी भी तरह के मीडिया को यहां आने की मनाही थी। बहरहाल, मीडिया तक छनकर खबरें पहुंच गईं। राहुल जैसे ही वहां बोलने के लिए खड़े हुए कुछ स्टूडेंट्स काले झंडे लेकर वहां नारेबाजी करने लगे। हालांकि 1984 के सिख विरोधी दंगों में गरीब राहुल या उनके पिता राजीव की कोई भूमिका नहीं थी लेकिन स्टूडेंट्स नारे लगा रहे थे- एक धक्का और दो, 84 के दोषियों को फेंक दो।

राहुल ने इस विरोध से मुंह चुराना या वहां से खिसकना मुनासिब नहीं समझा। वह वहीं डटे रहे। उन्होंने उन स्टूडेंट्स से कहा कि वे उनसे आकर बात करें। जब हंगामा नहीं थमा तो राहुल ने उनसे कहा कि अब मेरे पास दो विकल्प हैं- या तो मैं स्टेज पर खड़ा रहूं या फिर नीचे आकर आपसे बात करूं। इसके बाद राहुल स्टेज से उतरे और सीधे जाकर उन स्टूडेंट्स के बीच में जाकर खड़े हो गए। धीरे-धीरे नारे शांत हो गए।

पर, जेएनयू के बुद्धिजीवी टाइप स्टूडेंट्स जो ठानकर आए थे कि राहुल से तमाम मुद्दों पर सवाल पूछना है, वे कहां मानने वाले थे। उन्होंने सवालों की बौछार कर दी। राहुल ने उनका सामना किया। राहुल ने कहा – आप मुझे चुप कराने का इरादा लेकर आए होंगे, हो सकता है आप कामयाब भी हो जाएं लेकिन इससे क्या दुनिया बदल जाएगी, दुनिया बदलेगी हमारे और आपके मिलकर काम करने से। उन्होंने बताया – मैं अभी कई दलित घरों में गया था। मैंने उनसे पूछा कि आपके जीवन में सबसे ज्यादा खुशी का दिन कौन सा था, उन दलितों ने जवाब दिया कि जिस दिन हमारे कर्ज माफ किए गए। राहुल ने कहा – मैं नेता हूं, लोगों से मिलना मेरा फर्ज है। बाकी 99 नेता किसी के घर नहीं जाते। लेकिन उनसे कोई सवाल नहीं पूछा जा रहा है। मेरे जाने पर हंगामा किया जा रहा है।

राहुल के पास एक चिरपरिचित सवाल आया जो आपका भी हो सकता है और मेरा भी क्योंकि मैंने अपनी बात वहीं से शुरू की थी। एक स्टूडेंट ने राहुल से कहा कि आप बिना कुछ किए धरे (यानी संघर्ष किए बिना ही) यूथ आइकन (Youth Icon युवाओं की पहचान) बन गए हैं। राहुल का जवाब सुनिए – मैं इसी सिस्टम से आया हूं। मेरे पास दो रास्ते थे, मैं घर बैठ जाता तो आप लोग मुझे कायर कहते। तो मैं इस सिस्टम का हिस्सा बना क्योंकि इस सिस्टम में रहकर ही मुझे इसे खत्म करना होगा। मैं इस सिस्टम (Corrupt System) का उतना ही विरोधी हूं, जितने आप हैं लेकिन मेरी इस बात पर आप लोगों को यकीन शायद नहीं होगा।

...अगर आप राहुल की बातों पर गौर फरमाएं तो पाएंगे कि यह शख्स कांग्रेस संस्कृति (Congress Culture) से थोड़ा हटकर बात कर रहा है। ऐसी उम्मीद है कि जब कभी सत्ता की बागडोर उसे मिलेगी तो वह इस सिस्टम को तोड़ेगा। हालांकि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन कौन नहीं जानता कि राजीव गांधी ने अल्प समय में भारत के युवाओं के लिए जो कुछ किया, आज उसका असर चारों तरफ दिखाई दे रहा है। मौजूदा पीढ़ी के लिए भी राहुल एक उम्मीद हैं। तमाम राजनीतिक अपरिपक्वता के बावजूद वह मोदी के व्यक्तित्व पर भारी पड़ रहे हैं।

टिप्पणियाँ

Saleem Khan ने कहा…
राजनीती पर अच्छा लिखते हैं.

सलीम खान
hamarianjuman.blogspot.com
जोर लगा के-----ऐसा, तोड़ दे सिस्टम----ऐसा.......हा-हा-हा-हा,..... भाईसाहब, इतना आसान नहीं इसे तोड़ना...ये लोग चलती ट्रेन पर पत्थर फ़ेंक कर दो चार शीशे ही तुड़वा सकते है ! आपको याद होगा कि अभी कुछ दिनों पहले पूर्वी दिल्ली में कई स्कूली छात्राए भगदड़ में मर गई थी, उसके बाद अगर इन्होने दिल्ली में रहते हुए उस सिस्टम को सुधारने की इमानदारी से भी ज़रा सी कोशिश की होती तो कल की घटना क्यों होती ? वो तो भगवान् का शुक्र था कि सीइंजी बस के सिलेंडर नहीं फटे, वर्ना कई लोग कल फिर इनके सिस्टम की भेंट चढ़ जाते ! ! ५०-५५ साल pooravjo ने राज किया तब जाके यहाँ तक पहुंचे हो ! वो भी तोडा बहुत वे कर गए जिन्हें इस देश की जनता ने पूरा समय ही नहीं दिया, कुछ करने के लिए ! मुझे चिंता हो रही है कि भारतीय राजनीति में कोई बुनियादी ईमानदारी रही भी है ? राहुल एक उदाहरण स्थापित करने की बात करते है , वह एक लोकतांत्रिक तरीके से कांग्रेस के आंतरिक ऑपरेशन को बदलने की बात करते है, He speaks of not promoting himself on Gandhi platform - then why is he lynching onto cheap politics and cheap publicity stunt ? As usual Congress makes use of poor and vote bank on muslims to get elected. as simple as that. He's a good boy, nothing more nothing less apart from having a Gandhi surname. He won't be where he is had he not been a Gandhi. आपको याद होगा कि जब मुलायम सिंह उ.प्र के मुख्यमंत्री थे तो वहाँ घूम-घूम कर राहुल जी ने क्या क्या सपने दिखाए थे, मुलायम जी गए तो उसके बाद क्या हुआ, वही दोस्त बन गए और वही उस सारे सिस्टम को आज मायावती जी चला रही है ? या यूँ कहू कि और बदतर हो गयी स्थिति !
berojgar ने कहा…
chalo bhagwan kare sorry alla kare aap ko bhi rahul ki chaploosi men kuch mil jaye.
http://berojgarkidayri.blogspot.com/
Unknown ने कहा…
राहुल बाबा ने कहा - "मैं इस सिस्टम (Corrupt System) का उतना ही विरोधी हूं, जितने आप हैं लेकिन मेरी इस बात पर आप लोगों को यकीन शायद नहीं होगा…"…

कैसे होगा बबुआ, जब आपकी मम्मी, क्वात्रोची को बचाने के लिये देश की हर एजेंसी को सरेआम ठेंगा दिखा सकती हैं? आज तो बबुआ आपकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता कांग्रेस में, जरा बताईये ना कि पिछले एक साल में किस कांग्रेसी को आपने भ्रष्टाचार करने के लिये लताड़ लगाई है?

सबक- लफ़्फ़ाजी और नौटंकी छोड़ें कुछ ठोस करके दिखायें, अपना घर (कांग्रेस) पहले साफ़ करें…
ऐसी नौटंकियां इन्दिराजी के जमाने से ही चल रही हैं, इसमें नया कुछ भी नहीं है जिससे उम्‍मीद जगे कि सिस्‍टम बदल जाएगा। इन नौटंकियों से तो विश्‍वास पक्‍का होता है कि एक और नाटकबाज आ गया भारत को बेवकूफ बनाने के लिए।
dr.rakesh minocha ने कहा…
sab natak aur bevkoof banane ke tareeke hain ,janta ko
dr.minocha
Neel J ने कहा…
मैं गोदियालजी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ | राहुल गाँधी बहुत महान हैं, देखिये महान लोग दो तरीके से महान होते हैं, एक वो जो महान होते हैं अपने कर्मों से, और दुसरे वो जिन पर महानता थोपी जाती है, तो राहुल गाँधी पर महानता थोपी गयी है, और ये महानता इन पर, सोनिया जी का पुत्र होने की वजह से थोपी गयी है , ऐसी ही महानता प्रियंका गाँधी पर भी थोपी गयी है , उन्ही की पार्टी के कुछ नेताओ ने उन्हें महान बना दिया है, यह बोल बोलकर की राहुल गाँधी महान हैं प्रियंका गाँधी महान हैं , ये जो दलितों के यहाँ जा जाकर अपनी महानता दिखाना है, ये सस्ती लोकप्रियता के लिए stunts है |
अरे भाई जब देश की राजधानी मैं ही सिस्टम ठीक नहीं है, तो देश के बाकी हिस्सों मैं कैसे सुधरेगा, आज बलात्कार के मामले में दिल्ली no. 1 state है | अभी पिछले कुछ महीने मैं spurious liquor पीने से सबसे ज्यादा मौतें दिल्ली मैं हुई हैं, हमारे देश मैं दिल्ली ही एक ऐसा राज्य है, जहाँ महिलायें सबसे ज्यादा असुरक्षित है, तो सबसे पहले ज़रुरत है, जहा से कानून बनाकर पूरे देश मैं apply किया जाएगा, पहले वहां तो कानून का पालन हो |
यहाँ मैं केवल कांग्रेस के लीडर के बारे मैं नहीं कह रहा हुईं, सभी राजनीतिक पार्टियों की एक सी हालत है, ये सभी शासन करना चाहते हैं, और इसके लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं, और खुद को महान बताना चाहते हैं, जैसा की उत्तर प्रदेश की सी. एम. मायावती अपनी मूर्तियाँ लगवाकर कर रही है, जिसमें जनता का हजारों करोड़ धन लगा हुआ है, ये हमारे देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है |
Unknown ने कहा…
Very true Neel, either one is born Great or he is made. In case of Rahul Gandhi, I also believes that Indians are trying to make something out of nothing. But it's not true that the leader of a democracy like India, must definitely be a great public speaker, or an intelligent economist. He could be Rahul Gandhi also :) ie a man with charm and charm alone. Rest the country may run on it's own, as it is running from all these years.
हिन्दीवाणी ने कहा…
आप सभी मित्रों के अपने विचार हैं और एक लोकतांत्रिक देश में ऐसा होना स्वाभाविक है। एक मित्र ने मुझे राहुल गांधी का चापलूस भी कहा है और उनका कहना है कि शायद अब मुझे भी कुछ हासिल हो जाएगा।
...मैं चाहता तो इसे व्यवस्था से ऊबे हुए लोगों का प्रलाप मानकर जवाब न देता। वे लोग जो कभी सकारात्मक सोच ही नहीं सकते। वे लोग जिन्हें रोशनी कहीं से आती नहीं दिखाई देती...ऐसे लोगों का प्रलाप...तो क्या हम सभी लोग जस की तस स्थिति से समझौता कर लें।
आप लोगों के मुताबिक परिवर्तन संभव ही नहीं है फिर तो। वह चाहे राहुल गांधी करना चाहें या फिर नरेंद्र मोदी। पर, आप लोगों ने देखा कि परिवर्तन इंसान ही किया करते हैं, अल्लाह मियां या भगवान राम दोबारा अवतार लेकर किसी और लंका को जीतने नहीं आने वाले।
...अभी हाल की ही बात है। कांशीराम ने परिवर्तन किया। दिखा दिया कि दलित चेतना क्या होती है। आपने देखा इराक के एक मामूली पत्रकार के जूते ने अमेरिकियों को भी बुश के खिलाफ खड़ा कर दिया।
गांधी जयंती आ पहुंची है। आप जैसे कुछ लोग महात्मा गांधी को भी गाली देने से नहीं चूकने वाले। लेकिन आपने देखा कि उस इंसान ने क्या किया।
भगत सिंह ने भी जो किया, वह बतौर इंसान ही किया, वह फरिश्ता नहीं थे।
राहुल गांधी महात्मा गांधी या भगत सिंह न सही...लेकिन इंसान तो हैं न आखिर। कुछ न कुछ सोच तो होगी उस बेचारे की। वह यही तो कह रहा है कि दलित मुख्यमंत्री के राज में दलितों का उत्पीड़न क्यों...उसके लिए आने वाला बजट बीच में कौन खा रहा है...
...अगर हमारे घर के सामने की सड़क खराब हो जाए तो हम व्यवस्था को कोसते हुए चुप होकर बैठ जाएं। या फिर आवाज उठाएं...क्या करना चाहिए हमको...
इस देश पर किसी न किसी पार्टी को राज तो करना ही था। कांग्रेस ने सबसे लंबा राज किया। बीच में विपक्ष को भी मौका दिया गया...लोग क्यों नहीं उन्हें दोबारा मौका देना चाहते। अगर हम व्यवस्था को कोसते हैं तो उसे बदलते क्यों नहीं। जरूरी नहीं कि राहुल गांधी की पार्टी को वोट दिया जाए। पर, भाई गोदियाल जी, चिपलूनकर जी, बेरोजगार जी, डॉ. स्मिता गुप्ता, डॉ. मिनोचा, नील जैसे लोग उस दिन घर से बाहर वोट देने नहीं निकलते। वीकएंड मनाने पहाड़ पर चले जाएंगे और वहां से व्यवस्था को गाली देते हुए लौटेंगे। व्यवस्था को बदलो मेरे भाई...या जो लोग बदलना चाहते हैं, उनका हौसला ही बढ़ा दो।
गाली देना, कोसना आसान है...कुछ लगता नहीं। लेकिन राहुल जैसा नाटक करना थोड़ा मुश्किल काम है।
हममें से ऐसे कितने हैं जिसे इस देश की जाति व्यवस्था से नफरत हैं। शहरों में बैठकर इंटरनेट पर डींगे मारना और ब्लॉग पर लफ्फाजी और मक्कारी भरी बातें करना आसान है...व्यवस्था को कोसने से भी आसान...एक रात गांव में किसी दलित के घर बिताना पड़ेगी तो नानी-दादी सब याद आ जाएगी मित्रो।
आप राहुल को मसीहा बनाना चाहते हैं तो बनाइए, हमें इससे कोई एतराज नहीं। लोकतंत्र में सभी को अधिकार है अपनी स्‍वतंत्र राय देने का। यह भारत है, तालीबान नहीं, जो आपने लिख दिया उसे हम स्‍वीकार कर लें। आपने लिखा कि हम जैसे लोग वोट डालने नहीं जाते, यह आपने किस आधार पर लिखा। आपको मैं बता दूं, कि हम के केवल वोट डालने जाते हैं अपितु अपनी जेब से खर्चा करके लोगों को अपील करते हैं कि लोकतंत्र को बचाने के लिए वोट अवश्‍य डाले। रही बात दलित गाँव में जाने की, तो आप मेरे साथ आइए, मैं आपको मेरे और राहुल गाँधी के आंकडे बताऊंगी कि कौन कितना गाँव जाता है। लेकिन हम साथ में मीडिया को लेकर नहीं जाते। अपना केमरा भी कभी-कभार ही साथ होता है। हम नेट पर ब्‍लाग लिखते हैं इसका अर्थ यह नहीं हो गया कि हम अभिजात्‍य वर्ग हैं। एक रात किसी गरीब के झोपडे पर बिताने से गरीबी दूर नहीं हो जाती। हमने तो न जाने कितनी राते बितायी हैं। पोस्‍ट लिखते हैं तो दूसरों के विचारों की कद्र करना भी सीखे।
dr.rakesh minocha ने कहा…
ऐसा लगता है की सिर्फ और सिर्फ आप ही देश के सच्चे सिपाही है, बाकि बेवकूफ. सब की बात्तें समझने की कोशिश की जाये, तभी मजा है, डॉ. मिनोचा
shan ने कहा…
yusuf bhai kaha hai
हिन्दीवाणी ने कहा…
डॉ. मिनोचा, मैं ऐसा दावा नहीं करता कि मैं देश का सच्चा सिपाही हूं। लेकिन आप जैसे बुद्धिमान आदमी मुझे ऐसा समझते हैं तो यह आपका बड़प्पन है।
बाकी साथियों से भी मैं कुछ कहना चाहता हूं...
मैं न तो कांग्रेस का कार्यकर्ता हूं और न ही दूर-दूर तक उस पार्टी से संबंध है। यहां बात हो रही है व्यवस्था परिवर्तन की। अगर राहुल वाकई व्यवस्था बदलना चाहते हैं और उसके लिए कुछ पहल कर रहे हैं तो उस पर बहस होनी चाहिए। क्या आप हम जैसे लोगों से बहस का भी हक छीनना चाहते हैं। मैं आपसे राहुल गांधी के लिए वोट नहीं मांग रहा हूं।

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