इडियट्स का ही है ज़माना
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हुआ यह था कि आमिर खान की सुपरहिट फिल्म 3 इडियट्स (3 Idiots)के रिलीज होने के बाद जब चेतन भगत को क्रेडिट न देने का मामला उठा तो मैंने खुद को चेतन भगत के साथ खड़ा पाया। मैंने चेतन भगत को पूरा तो नहीं पढ़ा है लेकिन अपने अंग्रेजी उपन्यासों के अलावा उन्होंने यहां-वहां जो कुछ भी लिखा है, उस नाते मैं उनका प्रशंसक हूं। हालांकि अभी भी मैं उनको अरुंधति राय से ज्यादा गहरी समझ रखने वाला अंग्रेजी का भारतीय लेखक नहीं मान पाया हूं। बहरहाल, मुद्दा यह था कि 3 इडियट्स की कहानी चेतन भगत के अंग्रेजी उपन्यास (Five Point Someone) पर आधारित है। फिल्म रिलीज होने से पहले चेतन भगत से उस फिल्म के निर्माता-निर्देशक ने बात भी की लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई तो चेतन भगत का नाम ढंग से न देकर बहुत अंत में चालू अंदाज में दे दिया गया।
इस विवाद के उठने पर भारतीय मीडिया (Indian Media)भी चेतन भगत के साथ खड़ा था लेकिन अचानक इसी मंगलवार को चेतन भगत ने आमिर खान समेत 3 इडियट्स के निर्माता-निर्देशक से माफी मांग ली। उन्होंने यह तक कहा कि मेरी किसी बात से अगर उन लोगों को ठेस लगी है तो वह माफी मांगते हैं। साथ ही उन्होंने खुद को आमिर खान का सबसे बड़ा फैन भी घोषित कर दिया। चेतन का यह बयान नवभारत टाइम्स ने प्रमुखता से छापा है।
जाहिर है कि बयान झटका देने वाला था। भारत में जिस तरह से बौद्धिक संपदा अधिकार का खुला मजाक उड़ाया जाता है उससे तमाम कलाकार, लेखक, पत्रकार व्यथित हैं लेकिन बेचारे कुछ नहीं कर पाते। बौद्धिक संपदा अधिकार का मजाक उड़ा कर भारत ने जिस कंपनी से सबसे पहले अपनी जड़े मजबूत कीं, उस कंपनी का नाम टी-सीरीज है। हालांकि आज इस कंपनी को भारत में कैसेट और सीडी को सस्ता बेचने और संगीत को घर-घर पहुंचाने के लिए महिमा मंडित किया जाता है। लेकिन इस कंपनी ने शुरुआत में जो छिछली हरकतें कीं, उसका सिलसिला आज भी थमा नहीं है। इस कंपनी के मालिक गुलशन कुमार ने स्वर कोकिला लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी के पुराने गानों को नए गायकों से गवा कर कैसेट बाजार में उतार दी। फॉरमूला हिट रहा। रफी साहब तो जन्नत फरमा चुके थे लेकिन लता जी ने और एचएमवी कंपनी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत में पता नहीं क्या हुआ लेकिन टी-सीरीज का धंधा नहीं बंद हुआ। इसके बाद इस कंपनी ने तमाम क्षेत्रीय भाषाओं पर हाथ साफ किया। आज हमें पंजाबी, भोजपुरी, उड़िया जैसी भाषाओं के तमाम गायकों के नाम सुनने को मिलते हैं लेकिन इनके पीछे जो व्यथा है वह कोई नहीं जानता।
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ऐसा नहीं है कि सिर्फ उसी गायक के साथ ऐसा हुआ। सोनू निगम को उस कैंप से निकलने में कई साल लगे। लेकिन हर कोई सोनू निगम नहीं होता। तमाम ऐसे गायक मुंबई में खाक छान रहे हैं। कुछ को ए.आर. रहमान मिल जाते हैं तो वह सामने आ जाता है लेकिन बाकी गुमनामी की जिंदगी बसर कर रहे हैं। टी-सीरीज आज भी भारतीय बौद्धिक संपदा अधिकार को ताक पर रखे हुए है।
चेतन भगत वाली घटना से एक उम्मीद बंधी थी कि इस बार बॉलिवुड की इस तरह की हरकतों पर लगाम लगेगी लेकिन ऐसा हो न सका। एक और छोटी सी घटना से इस अफसोसनाक लेख का अंत करना चाहूंगा।
अंग्रेजी और उर्दू के पत्रकार, लेखक, निर्माता-निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास का नाम अब कम ही लोगों को याद होगा। अब्बास का इंतकाल बरसों पहले हो चुका था। वही ख्वाजा अहमद अब्बास जिन्होंने अमिताभ बच्चन को सबसे पहले 7 हिंदुस्तानी फिल्म में अभिनय का मौका दिया। प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक राजकपूर जब आखिरी फिल्म हिना बना रहे थे तो उसी दौरान उनका देहांत हो गया और वह फिल्म उनके लड़कों ने पूरी की। फिल्म जब आई तो उस पर प्रमुखता से जो बात दर्ज थी, उसकी स्टोरी के लिए अब्बास को श्रेय दिया गया था। बाद में राजकपूर के परिवार वालों ने बताया कि यह स्टोरी बरसों पहले अब्बास साहब ने राजकपूर को दी थी। राजकपूर को स्टोरी पसंद थी लेकिन फिल्म बनाने के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने स्टोरी रख ली। अब्बास के निधन के बावजूद राजकपूर चाहते तो स्टोरी के क्रेडिट से अब्बास साहब का नाम हटा देते और खुद ले लेते। लेकिन ऐसा न तो उन्होंने किया और न ही उनके लड़कों ने। हिना सुपरहिट फिल्म साबित हुई लेकिन अब्बास साहब के परिवार ने कपूर खानदान से उसके एवज में चवन्नी भी नहीं ली।
एक तरफ भारत में बौद्धिक संपदा की कदर करने वाले ऐसे भी हैं और दूसरी तरफ 3 इडियट्स भी हैं। बहरहाल, फिल्म अच्छी है...जरूर देखने जाएं।
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