चीन की दीवार के पार गूगल
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गूगल का चीन (Google China) में 35 फीसदी मार्केट शेयर है और आंकड़े बताते हैं कि वह लगातार बढ़ रहा था। यानी गूगल ने यह घोषणा ऐसे समय की है जब उसका कारोबार बढ़ रहा है। उसने चीन से कारोबार (Google China Business) समेटने की धमकी देने के पीछे जो खास वजह बताई है, उसके मुताबिक चीन में उसके कारोबार पर साइबर अटैक (Cyber Attack) हो रहे थे, वहां के टेक्नीशियन या आईटी एक्सपर्ट (IT Experts) गूगल के डेटा बेस (Google China Data Base) (आंकड़ों के भंडार में) में सेंध लगाकर उस डेटा को हैक (Data Hacking) कर रहे थे। गूगल के पास जिन कंपनियों का डेटा था, गूगल ने उन्हें उनसे फौरन अवगत करा दिया। वहां की सरकार भी गूगल को सहयोग नहीं कर रही है। गूगल की शिकायतों के बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने सारी शिकायतों को अनसुना और अनदेखा कर दिया।
गूगल ने 2006 में चीन में कदम रखा था। उस समय वहां की सरकार ने सबसे पहली शर्त यही लगाई थी कि उसे सेंसरशिप (Censorship) माननी होगी। जब गूगल ने उस शर्त को मान लिया तो उसे कारोबार की इजाजत दे दी गई। मेरा इस तथ्य को बताने के पीछे कतई यह मकसद नहीं है कि मैं चीन में गूगल के खिलाफ जो कुछ हो रहा है, उसका समर्थन करता हूं। यह निहायत ही घटिया है और इसकी जितनी निंदा की जाए वह कम है। कम्युनिस्टों की तानाशाही के जो उदाहरण दिए जाते हैं यह घटना उसकी ताजा मिसाल है।
पर, गूगल पर भी चीन में कई गंभीर आरोप हैं। उस पर यह आरोप अमेरिका में भी लगे हैं और वहां इसे लेकर मुकदमा भी लड़ा जा रहा है। यह मामला है कॉपीराइट कानून (Copyright Law) के उल्लंघन का। गूगल पर इस तरह के आरोप कई देशों में लगे हैं और इसके खिलाफ बाकायदा लॉबी बन गई है जो इसका विरोध भी कर रही है। ऐसा ही आरोप चीन में भी लगा, वहां की एक लेखिका के किताब के अंश उडा़कर गूगल ने उसे डिजिटल प्रकाशित कर दिया। इस पर वहां की लेखिका ने सख्त ऐतराज जताया और चीन सरकार ने भी इस पर आपत्ति की। लेकिन अमेरिका में गूगल पर यह आरोप एक-दो लेखकों ने नहीं लगाया, बल्कि तमाम लेखकों ने लगाए और उन्होंने गूगल पर कई करोड़ डॉलर रॉयल्टी लेने का मुकदमा भी कर दिया। गूगल आज तक अमेरिका में इस आरोप पर अपनी सफाई पेश नहीं कर पाया है।
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गूगल के संस्थापकों में से एक सर्गेई ब्रिन (Sergey Brin) तो पूर्व के कम्युनिस्ट देश रूस में पैदा हुए और वहीं बड़े हुए। वह बहुत नजदीक से कम्युनिस्टों के बारे में जानते होंगे और जरूर अपनी राय रखते होंगे। सर्गेई के परिवार ने वहां कम्युनिस्ट सरकार का खात्मा होने के बाद रूस छोड़ दिया था और अमेरिका आ गए थे। वहां उन्होंने अपने दोस्त लैरी पेज (Larry Page) के साथ गूगल का बीज रोपा।
मार्क्सवादियों को सोचना होगा। चाहे वे चीन के माओ वाले कम्युनिस्ट हों या फिर बंगाल के। मार्क्स की नीतियां बुरी नहीं हैं, आप लोग जो प्रयोग और खिलवाड़ उसके साथ कर रहे हैं, उससे उसका अंत निकट दिखाई दे रहा है। क्या आप लोग भूल गए कि लेनिन ने बोल्शेविक क्रांति किस तरह लोगों को इकट्ठा कर की थी। सोचो, मित्रो सोचो। बिजनेस पर डाका पड़ने पर आज तो चीन में सिर्फ गूगल (Google China) बिलबिलाया है, कल को सारी पब्लिक ही बिलबिलाने लगेगी तो क्या करोगे। रोजगार तो चीन के युवकों को भी चाहिए। थ्यानमन चौक पर कब तक कुचलोगे उनको...
टिप्पणियाँ
गूगल ने देर से ही सही, वहशियत के विरोध का एक सशक्त उदाहरण पेश किया है. चीन के गाल पर यह ऐसा तमाचा है जिसकी गूँज बहुत दूर तक गूंजेगी.