बुखारी पर चंद बातें


दो बातें...
ठेलना का मतलब जानते हैं...मीडिया यही कर रहा है। खासकर शाही इमाम अहमद बुखारी के मामले में...उनको जबरन ठेल-ठेल कर मुसलमानों का नेता बना दे रही है। कुछ लोगों की रहनुमाई करने का दावा करने वाला शख्स अपने निजी कार्यक्रम में किसी को बुलाए या न बुलाए, उसका निजी मामला है। इसमें मीडिया राजनीति क्यों खोज रहा है। बीजेपी भी मीडिया के सुर में बोल रही है और शाही इमाम को जबरन भारतीय मुसलमानों का नेता बना दे रही है...11 नवंबर से दिल्ली में विश्व हिंदू कॉन्फ्रेंस होने जा रही है...बहुत बड़ा आय़ोजन है। किसी मौलवी या धर्मगुरु को क्यों ऐतराज होना चाहिए कि विश्व हिंदू कॉन्फ्रेंस में उन्हें नहीं बुलाया गया।

दूसरी बात...
बुखारी ने बड़ी ही चालाकी से देश के मुसलमानों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है कि देखो तुम अब सारी पार्टियों से इतना पिट चुके हो कि अब मुझे अपना नेता मान लो...मैं ही तुम्हारा रहबर (रास्ता दिखाने वाला) हूं। मेरी शरण में आ जाओ। बताइए जिस शख्स ने अपने दामाद को मंत्री बनवाने के लिए समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव से हाथ मिलाया औऱ फिर उन्हें छोड़ दिया...बताइए जिस शख्स पर जामा मस्जिद की तमाम प्रॉपर्टी को लेकर आरोप हैं...वह शख्स अचानक देश के 35 करोड़ (सरकारी आंकड़ा...हालांकि यह ज्यादा है) मुसलमानों का नेता बनने का ख्वाब देखने लगा।

खतरनाक संकेत...
भारत का मुसलमान कभी सांप्रदायिक नहीं रहा लेकिन एक समुदाय विशेष का प्रतिनिधित्व करने वाली बीजेपी नामक धार्मिक पार्टी ने उसे सांप्रदायिक बना दिया। देश के मुसलमान किसी मुस्लिम लीग के पीछे जाकर नहीं खड़े हुए। ...जिन्होंने पाकिस्तान मांगा होगा, वे चले गए लेकिन जिन्होंने नहीं मांगा वो नहीं गए और ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा थी औऱ है। ...उन्होंने कभी कांग्रेस का दामन पकड़ा तो कभी मुलायम सिंह यादव का...जहां से उन्हें धोखा मिला। बीजेपी और उसके रहनुमा चाहते हैं कि मुसलमान अब उसके पाले में आएं...कभी उसे देशभक्त बताया जाता है तो कभी एक ऐसा पप्पी बताया गया कि वह गलती से किसी कार के नीचे आकर कुचल जाता है। ...कभी उसकी टोपी पहन ली जाती है और कभी उसकी टोपी को वापस कर दिया जाता है।

मौजूदा हालात
इन हालात का फायदा बुखारी और अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे लोग उठा रहे हैं। ये दोनों शख्सियतें जिस खतरनाक रास्ते पर बढ़ रही हैं वो बहुत डरावना है। ओवैसी की पार्टी ने ध्रुवीकरण के आधार पर महाराष्ट्र में 4 सीटें जीत लीं औऱ फूले नहीं समा रहे। वो अब देश के बारे में सोचने लगे हैं। ...बुखारी मुसलमानों को दिशाहीन पाकर उसका नेता बनने को आतुर हो गए हैं। ...बीजेपी खुश है, क्योंकि ये हालात उसको अपने लिए मुफीद लग रहे हैं। उसे मुसलमानों का साथ न तो चाहिए था और न आगे चाहेगा। वह अपनी विचारधारा पर अडिग है, उसमें बदलाव नहीं आएगा। आना होता तो लोकसभा में यूपी की कुछ सीटों से मुसलमानों को टिकट देकर वह इसका संकेत दे सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया। उसने मंत्रिमंडल में मुख्तार अब्बास नकवी को जगह तक नहीं दी, जो कभी मुखर हो जाते हैं तो कभी एकदम चुप। यानी पार्टी उन्हें जिस तरह इस्तेमाल करना चाहती है, वही उनको मंजूर है। शाहनवाज हुसैन की भी यही हालत है। नजमा हैपतुल्लाह एक मामूली सा विभाग पाने के बाद कंफर्ट जोन में हैं...भारतीय मुसलमान इन तथ्यों को जानते हैं, बेवकूफ नहीं। ऐसे में बुखारी और ओवैसी उनका फायदा नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा....हालात बदतर होने वाले हैं। इसे याद रखिएगा।
...तो इनका हल क्या है...आप लोगों की प्रतिक्रिया के बाद अगले लेख में इस पर बात कर सकते हैं।

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…
राजनीति की बाते समझ में नही आती ।
हिंदी में न्यूज़ देने के लिए धन्यवाद ।

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