अखंड राष्ट्र में रोहितों की पिटाई
सबसे पहले लेखक का डिसक्लेमर
इस सड़ेगले लेख से अगर किसी की भावनाएं आहत हो रही हैं तो उसे दिल पर मत ले। दरअसल इसे चुनावी
मिशन 2019 और उपमिशन यूपी 2017 के मद्देनजर लिखा गया है। यह एक पैगाम है, जहां तक पहुंचे...
................................................................................................................................................
अगर उन लोगों
की पिटाई न करते वे लोग तो क्या करते…
हिंदू
को मुसलमान से डर लग
रहा है...मुसलमान को
हिंदू से डर लग
रहा है...दोनों लड़
रहे हैं...इस लड़ाई
को रोहित वेमुला की
मौत कमजोर करती है,
खलल डालती है...रोहित
या अन्य खलल डालने
वालों की पिटाई राष्ट्रीय
कर्तव्य है। हिंदू - मुसलमान
का लड़ना, रोहित जैसों
का मरना इस महान
अखंड राष्ट्र की तरक्की के
लिए बहुत जरूरी है...लड़ो-लड़ो खूब
लड़ो...पर खबरदार...इनमें
से अगर किसी पक्ष
ने जन्मदाता मुख्यालय पर जाकर प्रदर्शन
किया.... वरना ऐसे ही
पिटोगे...देशद्रोहियो...। मैं भयंकर
खुशी से पागल हो
रहा हूं। विडियो देखकर
मजा रहा है कि
किस तरह रोहित के
पैरोकार लड़के-लड़कियां पीटे
जा रहे हैं, खाकी
वर्दी वाले और कुछ
राष्ट्रसेवक तसल्ली से उनकी
मरम्मत कर रहे हैं।
जिसने इस विडियो को
फेसबुक से लेकर जाने
कहां-कहां पहुंचा दिया,
उसे साधूवाद।...पद्म पुरस्कार पाने
का काम किया है
बंदे ने।
अ छूत लोगों को अकेले
लड़ने दो...पता नहीं
कहां से ये तथाकथित
बुद्धजीवी, सेकुलर लोग आ
जाते हैं और अछूतों
के साथ लग जाते
हैं। ये सारे मिलकर
कट्टर सोच वालों की
आपसी लड़ाई में रोड़ा
खड़ा करते हैं। मूर्खों
को इतना भी नहीं
मालूम कि अभी कुछ
राज्यों में चुनाव होने
हैं, तमाम रोहितों का
मरना और हिंदू-मुसलमान
का आपस में लड़ना
इन चुनावों के लिए कितना
जरूरी है। मेरा बस
चले तो खलल डालने
वालों को चलती चक्की
में या जलती भट्ठी
में डाल दूं। कमबख्त
ऐन मौके पर काम
खराब कर देते हैं।
इन बेवकूफों को इतना भी
नहीं मालूम कि मुसलमान-दलित अगर एक
मंच पर आ गए
तो राष्ट्रवादी ताकतें कितना कमजोर
हो जाएंगी। बेचारे हिंदू-मुसलमान
आपस में लड़कर जिस
ऊर्जा का संचार करते
हैं, ये कमबख्त सेकुलर
लोग आपस में मिलकर
उसे खराब कर देते
हैं।
...लेकिन
इस रोहित वेमुला का
क्या किया जाए...इस
को अभी क्यों मरना
था। कुछ दिन और
जी लेता तो क्या
जाता इसका। अरे इस
देश के बहरे लोग
वैसे भी हालात बदलने
को राजी नहीं हैं
तो ऐसे लोगों के
लिए क्या मरना लल्लू
प्रसाद। गलत किया। राष्ट्रवादियों
की लड़ाई को कमजोर
कर दिया। बताओ, ठीक
से ये भी नहीं
मालूम किसी को कि
तुम दलित थे या
नहीं...तुम्हें प्रमाणपत्र की जरूरत पड़
रही है। वो
राष्ट्र
को अखंड बनाने के
लिए रोहितों का जिंदा रहकर
हाशिए पर पड़े रहना
और हिंदू-मुसलमान का
लड़ना बहुत जरूरी है।
राष्ट्र तभी अखंड बनेगा,
जब लोग धर्म के
नाम पर लड़ मरेंगे।
वो कौन कह गया
था भला कि धर्म
नहीं बचेगा तो कुछ
भी नहीं बचेगा। देखा
नहीं, कैसे उस धर्म
के पैरोकारों ने नया राष्ट्र
खड़ा कर लिया और
उन पैरेकारों को खत्म करने
के लिए तमाम राष्ट्र
मिलकर नूरा कुश्ती लड़
रहे हैं। अकेला धर्म
ही अब अफीम नहीं
रहा, धर्म सत्ता के
साथ मिलकर सुपर अफीम
बन गया है। ...तो
राष्ट्र भक्तों तुम्हारा रास्ता
सही है। रोहितों को
पीटो, उन्हें खुदकुशी के
लिए मजबूर करो, इनके
पैरोकार स्टूडेंट्स को पीटो, सेकुलरों
को पाकिस्तान या जहन्नुमिस्तान भेजो।
तभी अपना राष्ट्र अखंड
बना रहेगा। तो आओ
इसी बात पर, अखंड
राष्ट्र के नाम पर
बाबा जी के कारखाने
में बने शरबत का
एक-एक जाम हो
जाए...
इस सड़ेगले लेख से अगर किसी की भावनाएं आहत हो रही हैं तो उसे दिल पर मत ले। दरअसल इसे चुनावी
मिशन 2019 और उपमिशन यूपी 2017 के मद्देनजर लिखा गया है। यह एक पैगाम है, जहां तक पहुंचे...
................................................................................................................................................
राष्ट्रवादी
देश की राजधानी में
साहब का विरोध अगर
कोई उसके जन्मदाता मुख्यालय
के सामने करेगा तो
क्या पुलिस हाथ पर
दही जमाकर बैठी रहेगी।...जन्मदाता मुख्यालय की रक्षा आखिरकार
पुलिस को ही तो
करना है...रोहित वेमुला
की आत्महत्या पर जिनका दिल
नहीं पसीजा...वे जन्मदाता मुख्यालय
की रक्षा कर रहे
हैं तो क्या गलत
कर रहे हैं...जनता
तो राष्ट्रवाद का पैग लेकर
नशे में डूब गई
है...तो कौन
बचाएगा
उस झंडे वाली गली
में बने मुख्यालय को...
तीन-चार दिन
से कलम के लठैत इस मुद्दे पर अखबार से लेकर चैनलों पर मछली बाजार लगाए बैठे हुए
हैं।…
आप लोगों को याद
होगा...अभी ज्यादा दिन
नहीं हुए। पुरस्कार वापसी
का सिलसिला इन्हीं बेवकूफों ने
चलाया था। उसमें भी
ये सारे और इनके
साथ मुसलमान और दलित लेखक,
पत्रकार, कलाकार मिलकर ढपली
बजाने लगे। साहब दबाव
में आ गए। मुख्यालय
दबाव में आ गया।
राष्ट्रवादी कमजोर होने लगे।
देश की अस्मिता खतरे
में पड़ गई। ...और
सामाजिक समरसता...उसे भी गंगा
मैया बहा ले गईं...
बार-बार बहरे देशवासियों
को बता रहे हैं
कि रोहित दलित नहीं
था...यानी जो लोग
इसे दलित बनाम कुछ
और लड़ाई का रूप
देना चाहते हैं, बहरे
देशवासी उनके बहकावे में
नहीं आएं। उनकी यह
कोशिश बहुत उचित है।
क्योंकि बहरे लोग कान
के कच्चे भी होते
हैं, न जाने किस
तरफ चल पड़ें। यानी
थैली के बैंगन की
तरह, जिधर भी लुढ़क
लिए।
टिप्पणियाँ