यूसुफ किरमानी का कवितासन
तुम करो आसन
हम करें शासन
भाड़ में जाए जनता का राशन
गरीब हो तो भूखे पेट ही करो शीर्षासन
कंगाल हो तो टमाटर पर करो ताड़ासन
सरकार और संतरी भी करें योगासन
न आए कुछ समझ तो करें चमचासन
दाल के रेट पर मत करें क्रोधासन
आलू के दाम पर करें पद्मासन
बैंगन पर करें स्वार्गं आसन
लौकी पर करें सर्पासन
जी हां, योग अब 100 पर्सेंट धंधा है
काले को सफेद करने वाला बंदा है
कैसे उस ब्रैंड को मार भगाया
और कैसे अपना पैर जमाया
जो न समझे खेल को वो अंधा है
सत्ता की आड़ है, धर्म की बाड़ है
गऊ माता के देश में बाबा ही सांड़ है
जागो मेरे भारत जागो अभी सवेरा है
यूसुफ तुम भी जुटो जहां बहुत अंधेरा है
फिर मत कहना, दरवाजे पर खड़ा लुटेरा है
कुछ बातें, कुछ संदर्भ
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मेरी इस कविता की पहली दो लाइन रिटायर्ड आईपीएस जनाब Vikash Narain Rai (वीएन राय) के सौजन्य से
है। उन्होंने पिछले साल योग दिवस पर दिल्ली के राजपथ पर हुए
तमाशे के मौके पर वो दो लाइने अपने फेसबुक स्टेटस में लिखी थीं। आज फिर योग दिवस
था और उनकी वही दो लाइनें मुझे फिर से दिखीं तो मैंने उसी पर ये कविता कह डाली।
...स्थापित कवि-लेखक बिरादरी इस कविता को न तो हिदी साहित्य की कसौटी पर कसें और न
कोई रदीफ-काफिया तलाशें।
मौजूदा दौर के हालात पर आपकी नज़र जरूर होगी।
यह कविता उसी की अभिव्यक्ति है।... जनता को रोटी चाहिए...रोजगार चाहिए... तो उसे एक
तमाशे में उलझाकर पहले निरोग रहने का भाषण पिलाया जा रहा है। अदालतें नरसंहार,
आतंकवाद के फैसलों में अपना नजरिया बहुत संकीर्ण बनाती जा रही हैं। प्रिंट मीडिया
की भूमिका सीमित हो गई है। इलेक्ट्रानिक मीडिया छिनरई और दलाली पर उतर आया है।...ऐसे
में अपनी बात कहने और पहुंचाने का कोई तरीका तो खोजना ही होगा। ...ये कविता मेरे फेसबुक पेज पर भी उपलब्ध है।
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