दारूल उलूम देवबंद के इस फ़तवे को कूड़ेदान में फेंकें
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दारूल उलूम देवबंद का ताज़ा फ़तवा कि मुसलमान ऐसे परिवारों में रिश्ता न करें, जहां
लोग बैंक में काम करते हैं....यह बहुत ही घटिया, ज़ाहिल और रूढ़िवादी सोच है। ऐसे फ़तवों को कूड़ेदान में फेंका जाना चाहिए...
क्या दारूलउलूम देवबंद का अब यही काम रह गया है कि वह मुसलमानों को प्रोग्रेसिव सोच की बजाय मध्ययुगीन सोच में ले जाए। ऐसे फ़तवे से पहले दारूल उलूम अपना सामानान्तर बैंकिंग सिस्टम लाए और मुसलमानों को उसे अपनाने को कहे। लेकिन यह उसके बूते की बात नहीं है।
आले सऊद की मदद पर पलने वालों को ऐसे फ़तवे नहीं देने चाहिए ख़ासकर जिस आले सऊद के पैसे अमेरिकी बैंकों में रखे हुए हैं।
दारूल उलूम ही एक बार में तीन तलाक़ जैसी कुप्रथा के लिए भी ज़िम्मेदार है। जब उससे हमारे जैसे लोग कह रहे थे कि अहलेबैत के हिसाब से इस्लामी चीज़ों को लागू करो तब उनका जवाब होता था यह तो शरीयत में है लेकिन आज तक उसको साबित नहीं कर सके। उनका यह भी जवाब होता था कि हमारे फ़िरक़े में यह नहीं है। अगर इस्लाम एक है तो आप लोग तीन तलाक को क़ुरान के हिसाब से क्यों नहीं होने देते।
मुस्लिम संस्थाओं की ज़िम्मेदारी मुसलमानों को संकट से उबारने की है ना कि उन्हें और गर्त में ढकेलने की है।
अगर आप लोग टीवी पर ख़बरें देखते होंगे तो पाते होंगे कि चंद दाढ़ी वाले तमाम उलूल जूलूल दलीलों से अपना मज़ाक़ बनवाने और मुसलमानों को नीचा दिखाने में जुटे रहते हैं। क्यों नहीं सुन्नी और बरेलवी संस्थाएँ अपने अपने मौलवियों के लिए कोड आफ कंडक्ट बनातीं कि कौन मौलाना टीवी पर धर्म के मामले में क्या बोलेगा...
एक उदाहरण से मेरी बात समझें...
हाल ही में एक बच्ची ने गीता का पाठ किया। मौलाना चैनल पर पहुँचे और कहा कि यह इस्लाम विरोधी है। ...उस अहमक मौलाना से पूछिए कि जिस इस्लाम का पैगंबर इल्म हासिल करने पर ज़ोर दे रहा है उस इस्लाम में दूसरी भाषा पढ़ना या जानकारी रखना कैसे ग़ैर इस्लामी हो गया...आख़िर ये मौलाना वक़्त के बदलने के साथ ख़ुद को क्यों नहीं बदल रहे। क्या दारूल उलूम और बरेलवी मसलक को इसे रोकने की पहल नहीं करनी चाहिए।
मेरा तो मानना है कि बरेलवी और देवबंदी अपने धर्मगुरुओं की एक कॉन्फ़्रेंस बुलाएँ और उसमें किसी शिया धर्मगुरु को जज बनाएँ और ऐसे सारे मसलों को सुलझाएं...क्योंकि टीवी मीडिया पर दूसरे लोगों का क़ब्ज़ा है। वो लोग किसी भी मौलवी मौलाना को बुलाकर डिबेट में बैठा देते हैं और उनके मुँह में माइक देकर कुछ भी कहलवा लेते हैं। वो मौलाना अपनी पब्लिसिटी मानकर कुछ भी बक देते हैं। मौलानाओं पर लगाम लगाने की यह पहल फौरी तौर पर देवबंदी और बरेलवी मसलक के धर्मगुरुओं को करनी चाहिए। ...अगर ऐसे मौलानाओं को टीवी के लेहाज से किसी ट्रेनिंग की ज़रूरत है तो वह काम मैं या मेरे जैसे कई और पत्रकार करने को तैयार हैं। लेकिन बराए मेहरबानी मुसलमानों को मीडिया में नीचा दिखाने या उनकी ग़लत तस्वीर पेश न करें।
...आप इस बात को समझिए कि आप ऐसा करके आरएसएस और भाजपा का एजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं। आप इस्लाम को ज़बरन जितना कट्टर बनाकर पेश करते रहेंगे ऐसी ताक़तों को खाद पानी मिलता रहेगा।
टिप्पणियाँ
Behtareen lekh.....