जब आपको मिल जाए फुरसत

जब आपको मिल जाए हिंदू-मुसलमान से फुरसत
...और मिल जाए किसी महिला की हंसी का कोई बेहूदा जवाब
तो फर्जी राष्ट्रवाद पर भी कुछ सोचना जरूर
और सोचना कि शहादत के जख्म कभी जुमलों से नहीं भरते
जब आपको मिल जाए गाय-गोबर से फुरसत
...और मिल जाए पहलू खान की हत्या का कोई नया पहलू
तो गरीबों की भुखमरी पर भी कुछ कहना जरूर
और कहना कि जीडीपी ग्रोथ से किसी के पेट नहीं भरा करते
जब आपको मिल जाए तमाम साजिशों से फुरसत
...और मिल जाए गांधी की हत्या का कोई अफसोसनाक बहाना
तो गोडसे की संतानों पर भी कुछ बोलना जरूर
और बोलना कि नागपुर के एजेंडे से कभी देश नहीं चला करते
जब आपको मिल जाए आवारा पूंजीवाद को बढ़ाने से फुरसत
...और मिल जाए आदिवासियों की जमीन छीनने का भोंडा तर्क
तो उन मेहनतकशों को भी कहीं तौलना जरूर
और तौलना मजदूरों के फावड़ों को, जो कभी रुका नहीं करते
जब आपको मिल जाए इंसाफ को बंधक बनाने से फुरसत
...और मिल जाए कुछ लोगों को घरों में जिंदा जला देने का उत्तर
तो उन पुराने नरसंहारों का जिक्र करना जरूर
और जिक्र करना कि किसी जज के मरने से फैसले टला नहीं करते
जब आपको मिल जाए बेरोजगारी के झूठे वादों से फुरसत
...और मिल जाए अस्पतालों में दवा न होने की कोई कहानी
तो ऐसी कहानी में निर्भया को दोहराना जरूर
और दोहराना कि बेटी बचाने के थोथे नारों से बेटियां नहीं बचतीं



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