कश्मीर डायरी/ मुस्लिम पत्रकार
कांग्रेस और राहुल गांधी की हालत बेचारे मुसलमानों जैसी हो गई है।...जिन पर कभी तरस तो कभी ग़ुस्सा आता है।
राहुल का आज का ट्वीट ही लें...
वह फ़रमा रहे हैं कि भले ही तमाम मुद्दों पर मेरा सरकार के साथ मतभेद है लेकिन मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। पाकिस्तान आतंक को बढ़ावा देने वाला देश है और वह कश्मीर में भी यही कर रहा है।
राहुल के इस बयान की लाचारी समझी जा सकती है कि आरएसएस और भाजपा जिस तरह उनके पाकिस्तानी होने का दुष्प्रचार कर रहे हैं उससे आहत होकर उन्हें यह बयान देना पड़ा। हालाँकि राहुल चाहते तो बयान को संतुलित करने के लिए फिर से कश्मीर के हालात और वहाँ की जनता पर हो रहे अत्याचार पर चिंता जता देते।
अपने निजी जीवन में मैं भी मुसलमानों को इस पसोपेश से जूझते देख रहा हूँ। ...किसी दफ़्तर में अगर दो या तीन मुस्लिम कर्मचारी आपस में खड़े होकर बात कर लें तो पूरे दफ़्तर की नज़र उन्हीं पर होती है। अग़ल बग़ल से निकल रहे लोग टिप्पणी करते हुए निकलेंगे...क्या छन रहा है...क्या साज़िश हो रही है...यहाँ भी एकता कर रहे हो...लेकिन ऐसे लोगों को किन्हीं सुरेश-मुकेश की अकेले में बातचीत के दौरान यह सब नहीं दिखता। ख़ासकर किसी दफ़्तर में पाकिस्तान पर बातचीत यह बहस होने के दौरान मुस्लिम कर्मचारी को बार बार अपने भारतीय होने का सबूत देना पड़ता है। ऐसे सबूत तो अब तथाकथित सेकुलर और वामपंथी भी चाहने लगे हैं।
कल में प्रेस क्लब में था। मैंने देखा कि संयोग से एक ही टेबल तीन ऐसेपत्रकार बैठे थे जो एक ही समुदाय यानी मुसलमान थे। चौथी कुर्सी ख़ाली थी। इतने में वहाँ एक और पत्रकार पहुँचे और बोला कि क्या कश्मीर पर खिचड़ी पका रहे हो। मैं तो जाट हूँ, मुझे भी शामिल कर लो। ख़ैर कुछ मिनट के सांप्रदायिक हंसीमजाक के बाद वह साहब भी वहाँ बैठ गए।
प्रेस क्लब की कल की एक और घटना सुनिए। कश्मीर में अख़बारों पर रोक लगाने और मीडियाकर्मियों की आजादी छीने जाने के विरोध में कल तमाम पत्रकार वहाँ जमा हुए। एक पत्रकार ने अपने संबोधन में कहा कि वह साथी पत्रकारों के बीच जब कश्मीर में मीडिया की आजादी छीने जाने की बात करते हैं तो बाकी साथी पत्रकार उन्हें देशद्रोही औरपाकिस्तानी जैसी फब्तियों से नवाजते हैं।
कल एक अन्य दफ़्तर में गया तो वहाँ एक शख़्स जेटली के नाम पर फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम का नाम रखे जाने पर ऐतराज़ कर रहा था तो बाकी सारे न सिर्फ जेटली के नाम का समर्थन कर रहे थे बल्कि उससे यह तक कह रहे थे कि तुम तो हो ही पाकिस्तानी, तुम्हें तो देशभक्तों के नाम पर रखे जाने पर ऐतराज़ होगा ही। वे सारे के सारे गिनी पिग यह नहीं बता पा रहे थे कि आख़िर जेटली का दिल्ली के विकास में क्या योगदान है जो उनके नाम पर स्टेडियम का नामकरण कर दिया जाए।...और फिर जेटली तो कोई क्रिकेट खिलाड़ी भी तो नहीं थे।
बहुत पहले लखनऊ के एक संस्थान में मेरे एक बड़े अधिकारी मुझसे मिलने में नज़रें चुराते थे क्योंकि वह मुसलमान थे। जबकि उसी दफ़्तर के मेरे बाकी साथी यह मानते थे कि वह मुझे फ़ेवर करते थे। हालाँकि उनके किसी एक्शन से यह ज़ाहिर नहीं हुआ। क्योंकि पैसे और तरक़्क़ी में मैं ग़ैर मुस्लिमों के मुक़ाबले अंतिम पायदान पर रहता था।
यह घटनाएँ बता रही हैं कि किस रसातल में हम जा रहे हैं। अपने आप को बुद्धिजीवी कहने वाले एक पत्रकार ने हाल ही में मुझसे कहा कि किरमानी जी जानते हैं यह सब क्यों हो रहा है....मेरे नहीं कहने पर उन्होंने कहा कि इस बहुसंख्यक देश में मुसलमानों का तुष्टिकरण बहुत किया गया है। हिंदू अब जाग उठा है इसलिए ये हालात बने हैं।
फ़ेसबुक पर हमारे तमाम साथी इन नाज़ीवादी स्थितियों पर धीरे धीरे चुप्पी साध रहे हैं। वे अर्बन नक्सली बनने के कथित पाप से बचना चाहते हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि वे एक अंधे कुएँ की और बढ़ रहे हैं।...
नोट: मेरी कश्मीर डायरी लगातार लिखी जा रही है। इसी शीर्षक से मेरी पिछली पोस्ट देखने के लिए मेरा फ़ेसबुक पेज देखें। मेरे हिंदीवाणी ब्लॉक पर भी कुछ लेख देखे जा सकते हैं।
#RahulGandhi
#Kashmir
राहुल का आज का ट्वीट ही लें...
वह फ़रमा रहे हैं कि भले ही तमाम मुद्दों पर मेरा सरकार के साथ मतभेद है लेकिन मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। पाकिस्तान आतंक को बढ़ावा देने वाला देश है और वह कश्मीर में भी यही कर रहा है।
राहुल के इस बयान की लाचारी समझी जा सकती है कि आरएसएस और भाजपा जिस तरह उनके पाकिस्तानी होने का दुष्प्रचार कर रहे हैं उससे आहत होकर उन्हें यह बयान देना पड़ा। हालाँकि राहुल चाहते तो बयान को संतुलित करने के लिए फिर से कश्मीर के हालात और वहाँ की जनता पर हो रहे अत्याचार पर चिंता जता देते।
अपने निजी जीवन में मैं भी मुसलमानों को इस पसोपेश से जूझते देख रहा हूँ। ...किसी दफ़्तर में अगर दो या तीन मुस्लिम कर्मचारी आपस में खड़े होकर बात कर लें तो पूरे दफ़्तर की नज़र उन्हीं पर होती है। अग़ल बग़ल से निकल रहे लोग टिप्पणी करते हुए निकलेंगे...क्या छन रहा है...क्या साज़िश हो रही है...यहाँ भी एकता कर रहे हो...लेकिन ऐसे लोगों को किन्हीं सुरेश-मुकेश की अकेले में बातचीत के दौरान यह सब नहीं दिखता। ख़ासकर किसी दफ़्तर में पाकिस्तान पर बातचीत यह बहस होने के दौरान मुस्लिम कर्मचारी को बार बार अपने भारतीय होने का सबूत देना पड़ता है। ऐसे सबूत तो अब तथाकथित सेकुलर और वामपंथी भी चाहने लगे हैं।
कल में प्रेस क्लब में था। मैंने देखा कि संयोग से एक ही टेबल तीन ऐसेपत्रकार बैठे थे जो एक ही समुदाय यानी मुसलमान थे। चौथी कुर्सी ख़ाली थी। इतने में वहाँ एक और पत्रकार पहुँचे और बोला कि क्या कश्मीर पर खिचड़ी पका रहे हो। मैं तो जाट हूँ, मुझे भी शामिल कर लो। ख़ैर कुछ मिनट के सांप्रदायिक हंसीमजाक के बाद वह साहब भी वहाँ बैठ गए।
प्रेस क्लब की कल की एक और घटना सुनिए। कश्मीर में अख़बारों पर रोक लगाने और मीडियाकर्मियों की आजादी छीने जाने के विरोध में कल तमाम पत्रकार वहाँ जमा हुए। एक पत्रकार ने अपने संबोधन में कहा कि वह साथी पत्रकारों के बीच जब कश्मीर में मीडिया की आजादी छीने जाने की बात करते हैं तो बाकी साथी पत्रकार उन्हें देशद्रोही औरपाकिस्तानी जैसी फब्तियों से नवाजते हैं।
कल एक अन्य दफ़्तर में गया तो वहाँ एक शख़्स जेटली के नाम पर फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम का नाम रखे जाने पर ऐतराज़ कर रहा था तो बाकी सारे न सिर्फ जेटली के नाम का समर्थन कर रहे थे बल्कि उससे यह तक कह रहे थे कि तुम तो हो ही पाकिस्तानी, तुम्हें तो देशभक्तों के नाम पर रखे जाने पर ऐतराज़ होगा ही। वे सारे के सारे गिनी पिग यह नहीं बता पा रहे थे कि आख़िर जेटली का दिल्ली के विकास में क्या योगदान है जो उनके नाम पर स्टेडियम का नामकरण कर दिया जाए।...और फिर जेटली तो कोई क्रिकेट खिलाड़ी भी तो नहीं थे।
बहुत पहले लखनऊ के एक संस्थान में मेरे एक बड़े अधिकारी मुझसे मिलने में नज़रें चुराते थे क्योंकि वह मुसलमान थे। जबकि उसी दफ़्तर के मेरे बाकी साथी यह मानते थे कि वह मुझे फ़ेवर करते थे। हालाँकि उनके किसी एक्शन से यह ज़ाहिर नहीं हुआ। क्योंकि पैसे और तरक़्क़ी में मैं ग़ैर मुस्लिमों के मुक़ाबले अंतिम पायदान पर रहता था।
यह घटनाएँ बता रही हैं कि किस रसातल में हम जा रहे हैं। अपने आप को बुद्धिजीवी कहने वाले एक पत्रकार ने हाल ही में मुझसे कहा कि किरमानी जी जानते हैं यह सब क्यों हो रहा है....मेरे नहीं कहने पर उन्होंने कहा कि इस बहुसंख्यक देश में मुसलमानों का तुष्टिकरण बहुत किया गया है। हिंदू अब जाग उठा है इसलिए ये हालात बने हैं।
फ़ेसबुक पर हमारे तमाम साथी इन नाज़ीवादी स्थितियों पर धीरे धीरे चुप्पी साध रहे हैं। वे अर्बन नक्सली बनने के कथित पाप से बचना चाहते हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि वे एक अंधे कुएँ की और बढ़ रहे हैं।...
नोट: मेरी कश्मीर डायरी लगातार लिखी जा रही है। इसी शीर्षक से मेरी पिछली पोस्ट देखने के लिए मेरा फ़ेसबुक पेज देखें। मेरे हिंदीवाणी ब्लॉक पर भी कुछ लेख देखे जा सकते हैं।
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