एक भाषा के विरोध में


ये अमित शाह को क्या हो गया है...क्या उन्हें देश के भूगोल का ज्ञान नहीं है...

आज सुबह-सुबह बोल पड़े हैं कि एक देश एक #भाषा होनी चाहिए। जो देश एक भाषा नहीं अपनाते वो मिट जाते हैं...

अगर वो - एक देश - तक अपनी बात कहकर चुप रहते तो ठीक था लेकिन जिस देश में हर पांच कोस पर भाषा (बोली) बदल जाती है, वहां एक भाषा लागू करना या थोपने के बारे में सोचना कितना अन्यायपूर्ण है।
हालांकि मैं खुद जबरदस्त हिंदीभाषी हूं और #हिंदी का खाता-बजाता हूं लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि जबरन कोई भाषा किसी पर थोपी जाए।

दक्षिण भारत के तमाम राज्यों के लिए भाषा अस्मिता का प्रश्न है। क्या कोई मलियाली अपनी भाषा की पहचान खोना चाहेगा...

क्या कोई #बंगाली अपनी भाषा पर किसी और भाषा को लादे जाते हुए देखना चाहेगा...
क्या कोई #मराठी, क्या कोई #उड़िया, क्या कोई गारो-खासी, क्या कोई तमिल, क्या कोई गुरमुखी बोलने वाला पंजाबी अपनी भाषा की बजाय हिंदी को प्राथमिकता देना चाहेगा...

दरअसल, यह सब - एक ड्रामा प्रतिदिन - के हिसाब से दिया जाने वाला बयान है। #अमितशाह का कोई बयान बेरोजगारी, गरीबी, किसानों की हालत, गिरती अर्थव्यवस्था पर नहीं आता लेकिन एक भाषा लागू करने के नाम पर जरूर आ जाता है। ...कुछ दिन इस पर बयानबाजी होगी, टीवी एंकर गला फाड़कर राष्ट्रवाद के नाम पर एक भाषा की हिमायत में उतरेंगे। जब लोगों का ध्यान इस मुद्दे से ऊब जाएगा तो फिर किसी और संतरी का नया बयान आ जाएगा।...नया ड्रामा।

कोई अमित शाह से पूछेगा कि उन्होंने अपने बेटे जय शाह को इंग्लिश मीडियम वाले स्कूलों में क्यों पढ़ाया...कोई पूछेगा कि #जयशाह ने बीटेक की डिग्री इंग्लिश मीडियम में क्यों हासिल की...

कोई ताज्जुब नहीं कल को कोई #भाजपाई या #संघी नेता अमित शाह से भी आगे जाकर बयान दे दे कि - एक भाषा, एक देश, एक धर्म...

देश के चिंतन को जब कुछ नेता पशु, धर्म, भाषा पर ही केंद्रित रखना चाहते हैं तो ऐसे में गलती उनकी नहीं है। दरअसल, हमारे आप जैसे अंध भक्त इन हालात के लिए जिम्मेदार हैं। जो बोया है वो काटना तो पड़ेगा ही।


राजनीतिक क्षेत्र में नाकाम हिंदी के कुछ मंचीय #कवि भी आज हिंदी के समर्थन में बयान देते नजर आ रहे हैं। अच्छी बात है लेकिन ये मक्कार मंचीय कवि किसी प्रोग्राम में आने के नाम पर जब पैसे का मुंह खोलते हैं तो इनका भाषा प्रेम और देशप्रेम सब हवा हो जाता है।

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