मार्क जुकरबर्ग...हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी


बड़ी कंपनियों के विज्ञापन बहिष्कार के फैसले ने फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग (#MarkZukerberg) को घुटनों पर खड़ा कर दिया है। सोमवार को अपने वीडियो संदेश में जुकरबर्ग ने कहा कि अब से फेसबुक उन राजनीतिक दलों के नेताओं के पोस्ट या कंटेंट पर फ्लैग लगाकर चेतावनी देगा, जो नफरत या साम्प्रदायिकता, झूठ फैलाएंगे। उनका इशारा अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के विवादास्पद बयानों और ट्वीट को लेकर बनने वाली खबरों या कंटेंट की तरफ था। इस समय अमेरिका में ट्रंप के फर्जी, नफरत फैलाने और छल कपट वाले बयानों को लेकर जनता में बहुत गुस्सा है। इसे देखते हुए अमेरिका की तमाम बड़ी कंपनियों ने फेसबुक पर अपने विज्ञापन दिखाने पर रोक लगा दी है। 




क्या भारत की किसी कंपनी की इतनी औकात है कि वह किसी अखबार, किसी चैनल या फेसबुक समेत तमाम सोशल मीडिया साइटों से कह सके कि तुम लोग नफरत को फैलाते हो, एक राजनीतिक दल की विचारधारा को पालपोस रहे हो, जाओ हम तुम्हें विज्ञापन नहीं देते। एक भी कंपनी ऐसा नहीं कर पाएगी। यहां तक कि जिन कंपनियों का नियंत्रण तमाम सेकुलर लोगों के पास है, वे भी ऐसा नहीं कर पाएंगे। लेकिन अमेरिका में कुछ कंपनियों ने यह जुर्रत वहां के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्र्ंप के खिलाफ कर दिखाई है। 

 अमेरिका की करीब 90 कंपनियों ने फेसबुक, इंस्टाग्राफ, ट्विटर समेत तमाम सोशल मीडिया साइट्स पर अपने विज्ञापन रोक दिए हैं। करीब दो दिन से चल रहे इस अभियान में रोजाना कोई न कोई कंपनी शामिल हो रही है। इस वजह से फेसबुक (#Facebook) को 56 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। अमेरिका में डिजिटल विज्ञापन का करीब 30 फीसदी हिस्सा अकेले फेसबुक को मिलता है। 2019 में फेसबुक को 69.7 बिलियन डॉलर की कमाई की थी। सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि 90 कंपनियों के कदम से फेसबुक को कितना बड़ा नुकसान हुआ होगा।


कौन लोग हैं इस लड़ाई के पीछे
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कोकाकोला, पेप्सीको, यूनिलीवर, स्टारबक्स, लेवी, डियॉजियो, डब, वेरिजोन, हेलमेन मेयोनेज समेत अनगिनत कंपनियां ऐसे ही रातोंरात विज्ञापन रोकने को तैयार नहीं हो गईं। इसके पीछे कई ब्लैक संगठनों की पर्दे के पीछे जोरदार भूमिका रही है। हाल ही में जब जॉर्ज फ्लॉयड नामकर एक शख्स को पुलिस वाले ने अमेरिका में इसलिए मार डाला कि वह ब्लैक था। पूरे अमेरिका में आंदोलन चला और लोग सड़कों पर आ गए। इस आंदोलन में ब्लैक (#BlackLivesMatter)भी शामिल हुए। लेकिन ब्लैक यहीं तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने अपने-अपने चैट ग्रुपों में यह संगठित आंदोलन छेड़ा कि कंस्यूमर प्रोडक्ट्स बनाने वाली उन कंपनियों के उत्पादों का बहिष्कार किया जाए जो नफरत को बढ़ावा देने वाली सोशल मीडिया साइट फेसबुक, इंस्टाग्राम, वाट्सऐप पर अपने विज्ञापन देती हैं। इसकी भनक जब बड़ी कंपनियों को लगी तो वो फौरन सतर्क हो गईं। अमेरिका के एक एडवोकेसी ग्रुप एडीएल ने भी कंपनियों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने कैंपेन का नाम दिया - स्टॉप हेट फॉर प्रॉफिट (#StopHateForProfit)।



इन बड़ी कंपनियों ने सबसे पहले फेसबुक पर दवाब बनाया कि वो अपनी साइटों से नफरत (#Hate) और साम्प्रदायिकता (#Communalism)  फैलाने वाले कंटेंट हटाए। ट्रंप का प्रचार माध्यम न बने। लेकिन फेसबुक ने इन कंपनियों को टका सा जवाब दे दिया कि उसके नियम बहुत कड़े हैं। उसकी नजर बराबर ऐसे कंटेंट की तरफ रहती है। इसलिए वो इन कंपनियों के कहने पर कोई कदम नहीं उठाएगी। एक तरह से फेसबुक ने साफ कर दिया कि वो ट्रंप के मामले में किसी तरह का दखल नहीं देगी। इसके बाद इन कंपनियों ने वो कदम उठाया, जिसकी उम्मीद नहीं थी। उन्होंने फेसबुक पर विज्ञापन बंद करने का ऐलान कर दिया।


भारत के लिए इसके क्या मायने हैं
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जिन बड़ी कंपनियों ने अमेरिका में फेसबुक पर अपने विज्ञापन रोके हैं, उनमें से काफी कंपनियों का काम भारत में भी है। ...और भारत में भी तो सत्तारूढ़ दल और उससे जुड़े संगठन नफरत और साम्प्रदायिकता फैलाने का काम कर रहे हैं। नफरत का कारोबार भारत में इतने चरम पर है कि उसने यहां के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ दिया है। लिंचिंग में किसी की जान ले लेना, सामान्य बात हो गई है।  नफरत का जहर इतना भर दिया गया है कि एक समुदाय दूसरे का अस्तित्व बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। हर किसी के लिए उसका धर्म और उसके पूजास्थल महत्वपूर्ण हो गए हैं।

देश में धार्मिक स्थलों को तोड़ा जाना, उन्हें जला देना, उनमें मूर्तियां स्थापित कर देना रोजमर्रा की घटनाएं बन गई हैं। दंगे में पिसे लोग ही मुलजिम ठहरा दिए गए हैं। यहां के जिम्मेदार नेता आए दिन ऐसे फिजूल बयान देते हैं, जिससे चिंगारी भड़कती है। जब जहां जिस राज्य में चुनाव होते हैं, उस समय नफरत को चरमसीमा पर सत्तारूढ़ दल के नेता ही ले जाते हैं। ...जूते मारों सालों को, ...जोर का करंट लगना चाहिए जैसे बेहूदा नारे और जुमले समुदाय विशेष को लेकर लगाए गए, कहे गए।

तो भारत के लिए इसके मायने बहुत कुछ हैं। अगर इस देश में सेकुलर संगठन, राजनीतिक दल एक मुहिम चलाएं कि जो कंपनियां सत्तारूढ़ दल की साम्प्रदायिकता फैलाने वाली खबरों को स्पांसर करेंगी, छापेंगी, दिखाएंगी, सोशल मीडिया पर फैलाएंगी, उन चैनलों और कंपनियों के सामानों का बहिष्कार सभी सेकुलर लोग, सभी दलित-मुस्लिम लोग शुरू करें। तमाम अंतरराष्ट्रीय संगठनों और यूएन के मानवाधिकार संगठन के मुताबिक आरएसएस-भाजपा (#RSS #BJP)और उससे जुड़े संगठनों पर मुख्य रूप से नफरत फैलाने का आरोप है। भाजपा इस बात को बहुत गर्व से कहती है कि वह 34 फीसदी लोगों के वोट से चुनकर आई है, सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। इसलिए उसे विरोधियों की परवाह नहीं है। लेकिन इस देश में 66 फीसदी ऐसे भी जनता है जिसने भाजपा को वोट नहीं दिया है। यानी नफरत का धंधा करने वाले के मुकाबले उनकी तादाद ज्यादा है जो इसके विरोध में हैं।



 क्यों न हर भारतीय जिसके लिए देश महत्वपूर्ण है, वो इन कंपनियों के उत्पादों के बहिष्कार की घोषणा करे। क्यों देश में ऐसा संगठन खड़ा हो जो 66 फीसदी लोगों का प्रतिनिधित्व करता हो। जिसकी एक आवाज पर सभी सेकुलर, सभी दलित-मुस्लिम एक होकर ऐसी ताकतों और इन्हें मदद करने वाली कंपनियों के सामान का बहिष्कार कर दें। यह बहुत आसान है। बड़े-बड़े घुटनों पर आ जाते हैं। अभी हमने फेसबुक का हाल देख ही लिया है। सोचिए कि अगर देश के 66 फीसदी लोग इस बात पर अड़ जाएं कि वे भाजपा को फंडिंग करने वाली कंपनी एयरटेल, रिलायंस जियो के सामान का बहिष्कार करेंगे....कल्पना कीजिए कि आप लोगों ने तय कर लिया कि रिलायंस फ्रेश से सब्जी न खरीदकर अपने इलाके की सब्जीमंडी से सब्जी खरीदेंगे...सोचिए कि पतंजलि की जगह डाबर या हमदर्द का उत्पाद लोग खरीदने लगें तो इन बड़ी कंपनियों का क्या होगा। अगर आप कोकाकोला और पेप्सी पीना बंद कर देंगे तो ये कंपनियां अपनी दुकान कितने दिन चला पाएंगी। ...अगर आपकी खबरें किसी पूंजीपति का अखबार ठीक ढंग ने छापता और उसका चैनल उस खबर को सही ढंग से नहीं दिखाता तो आपके बहिष्कार का असर उस पूंजीपति की सांसें फुला देगा।

याद रखिए, ये सारी कंपनियां, ये सारे मीडिया हाउस सिर्फ आप और सिर्फ आप के दम पर मलाई काटते हैं।

क्या आज से ही आप अपने चैट ग्रुप में, अपने सोशल मीडिया (#SocialMedia)प्रोफाइल में ऐसी कंपनियों के उत्पादों की मुहिम छेड़ेंगे। भारत में अमेरिका के एडीएल जैसा कोई एडवोकेसी ग्रुप नहीं है, जो इस दिशा में कुछ काम कर पाए, इसलिए यह मुहिम हर देशवासी को अपने स्तर पर छेड़नी होगी। आप किसी चौपाल में बैठे हैं, आप इसके बारे में वहां बात करके लोगों को जागरुक कर सकते हैं। आप अपने मोहल्ले में दोस्तों से इस पर बात कर सकते हैं। आप अपने दफ्तर में लंच समय में इस पर हल्की फुल्की चर्चा रोजाना किसी न किसी बहाने आगे बढ़ा सकते हैं। आप अपने घर में ऐसी कंपनियों के सामान लेने की मनाही कर सकते हैं। जैसे मेरे घर में पतंजलि का कोई भी उत्पाद, केएफसी का भी कोई उत्पाद, पेटीएम का इस्तेमाल पूरी तरह प्रतिबंधित है। एयरटेल की जगह वोडाफोन हमारी पहली प्राथमिकता होती है। बहुत मजबूरी में एयरटेल लेना होता है। पे चैनलों में जी न्यूज, इंडिया टीवी और आजतक पूरी तरह प्रतिबंधित है।

छोटी शुरुआत कीजिए, बड़ी लकीर अपने आप खिंच जाएगी।






































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